Sädhanä of a true Gauòéya Vaiñëava

भक्त− महाराज जी ! गौड़ीय वैष्णव की क्या साधना होती है ?

महाराज जी− हम गौड़ीय वैष्णव हैं ? हाँ जी ! हमारा प्रश्न है…कैसे ? हम इसलिये गौड़ीय वैष्णव हैं क्योंकि हम गौरा महाप्रभु के अनुयायी हैं । और तो कोई इसका अर्थ नहीं होता या इसका भी कोई और अर्थ निकल सकता है ? कि भाई ! हम गौड़ीय वैष्णव हैं क्योंकि हमारे institution में ऐसा किया जाता है…इसलिये हम गौड़ीय वैष्णव हैं ? नहीं नहीं ! हम गौड़ीय वैष्णव इसलिये हैं क्योंकि हम महाप्रभु के भक्त हैं और उनके द्वारा, जो उन्होंने कहा है, उसका हम पालन कर रहे हैं इसलिये हम गौड़ीय हैं, नहीं तो हम गौड़ीय ही नहीं हैं, बड़ी सीधी सी बात है ।

चैतन्य चरितामृत में वर्णन आया है, महाप्रभु की मुख वाणी है । महाप्रभु क्या कह रहे हैं−
“बाह्य, अन्तर,—इहार दुइ त’ साधन ।
‘बाह्ये’ साधक देहे करे श्रवण-कीर्तन ॥”

महाप्रभु क्या कह रहे हैं ?
हम किसके भक्त हैं ? महाप्रभु के । और ये बोल कौन रहे हैं ? महाप्रभु बोल रहे हैं । तो इनकी बात तो माननी ही पड़ेगी । प्रश्न नहीं है कि, option नहीं है कि मानूँ या न मानूँ । अब वो institution कुछ बोल रहा है, महाप्रभु कुछ और बोल रहे हैं शायद । देखो, क्या बोल रहे हैं महाप्रभु ।
महाप्रभु बोल रहे हैं−
बाह्य, अन्तर,—इहार दुइ त’ साधन
देखो, साधन न दो प्रकार के होते हैं । क्या ? एक बाहर का और एक अन्दर का । बाह्य अन्तर । अच्छा…बाह्य का क्या होता है, बाहर का ?
‘बाह्ये’ साधक देहे करे श्रवण-कीर्तन, भाई ! भगवान् का नाम सुनो, भगवान् का कीर्तन करो । यह साधक देह…जो आपका शरीर है, इससे करो । अच्छी बात है । बोलोगे…वो तो हम कर रहे हैं… । हाँ half part आप ज़रूर कर रहे हैं । महाप्रभु दूसरी बात बोल रहे हैं । कह रहे हैं−
‘मने’ निज सिद्धदेह करिया भावन
मन से अपने निज सिद्ध देह की भावना करो कि मैं, अमुक, राधाकृष्ण की इस प्रकार से दासी हूँ । और
रात्रि दिने करे व्रजे कृष्णेर सेवन
वो कह रहे हैं दिन-रात…। दिन-रात का मतलब २५ घण्टें होता है न…दिन-रात में । तो २५ घण्टें ब्रज में व्रजे कृष्णेर सेवन । अपने ब्रज स्वरूप, मञ्जरी स्वरूप से युगल सरकार की उपासना करो…दिन-रात ।

आप कहते हैं राधाकृष्ण के ग्रन्थ सुनते ही आप unqualified हो जाते हो । राधा नाम लेते ही आप सहजीय हो जाते हो । महाप्रभु कह रहे हैं…पहले तो समझो, कि यह करना है रात्रि दिने । रात्रि-दिन करना है । दिन-रात, रोज़ करना है । क्या ? राधाकृष्ण की उपासना । Clear हो गयी ? राधाकृष्ण की उपासना करनी है रात-दिन । अच्छा कैसे करनी है ? दो तरीके से– बाह्य और अन्तर । श्रवण, कीर्तन करते हो ? हाँ करते हैं । वो तो ठीक है । समस्या कोई नहीं ।

अन्तर…बाह्य अन्तर…‘मने’ निज सिद्धदेह करिया भावन, अपने निज देह, जो गुरु प्रदत्त सिद्ध देह है, जो गुरुदेव ने अपने ध्यान से, समष्टि गुरु के द्वारा, सम्पर्क के द्वारा, निर्धारित किया है कि आपका ब्रज में राधाकृष्ण की सेविका के रूप में अमुक नाम है, अमुक आपकी सेवा है, अमुक आपका कुञ्ज है…तो जो सिद्ध देह आपको गुरुदेव द्वारा प्रदत्त है, उस सिद्ध देह के द्वारा भावना करो कि मैं इस सिद्ध देह से राधाकृष्ण की सेवा कर रही हूँ और बाहर जो आपका देह है…इससे श्रवण कीर्तन करो ।

अगर हम गौड़ीय वैष्णव हैं, और ये दोनों साधना ही नहीं कर रहें, जो कि महाप्रभु ने बोली हैं और किसी ने नहीं बोली…। अब महाप्रभु को कोई काट दे और वो फिर भी बोल दे कि मैं गौड़ीय वैष्णव हूँ, क्या यह सम्भव है ? बोले, अब आप नहीं बोलते…? “लेकिन हमारे यहाँ तो ऐसा…।” हमारे यहाँ मतलब ? आप गौड़ीय नहीं हो ? गौड़ीय के यहाँ तो ऐसा ही होता है । अन्तर और बाह्य दो साधन होते हैं ।