Rägänugä Bhakti…after Bhäva stage?

भक्त− महाराज जी ! Iskcon Mayapur से श्रुतिधर दास जी हैं; वह पूछ रहे हैं कि क्या भाव की stage पर आकर ही रागानुगा भक्ति कर सकते हैं, उससे पहले नहीं ?

महाराज जी− इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिये आपको समझना पड़ेगा कि भाव की stage क्या होती है और रागानुगा भक्ति क्या होती है । दोनों का उत्तर जान लेंगे, तो आप निर्णय कर लेंगे ।

यदि कोई व्यक्ति बोल रहा है कि भाव की स्थिति में आकर रागानुगा भक्ति प्रारम्भ करनी चाहिये, तो समझना चाहिये कि वह व्यक्ति १००% ignorance में है । आप पूछेंगे− क्यों ?

देखिये, भाव की stage पर आना है, तो कौन सी भक्ति की भाव की stage पर आना है ? अनर्थ निवृत्ति, रुचि, आसक्ति, भाव, ये भगवान् कृष्ण के दास्य रस में भी होते हैं । तो यानी कि कृष्ण के दास्य रस में अनर्थ निवृत्ति के पश्चात् भाव की स्थिति में आना । या भगवान् के सख्य रस में अनर्थ निवृत्ति के बाद रुचि, आसक्ति, भाव । और फिर आप कह रहे हो कि भगवान् के साथ चाहे गोपी भाव हो या मञ्जरी भाव हो, सबमें अनर्थ निवृत्ति के बाद रुचि, आसक्ति, भाव । फिर भाव के बाद प्रेम आता है ।

तो आप कह रहे हो कि भाव के बाद रागानुगा भक्ति start करनी है । तो हम यह पूछना चाहते हैं कि भाव की स्थिति तो रागानुगा भक्ति करके ही आयेगी । तो भाव की स्थिति के बाद रागानुगा भक्ति start करनी है, इसका क्या मतलब है ??

कोई व्यक्ति इस प्रश्न का मतलब भी explain नहीं कर सकता, जो इस प्रश्न का उत्तर दे रहा है । क्योंकि कोई generic भाव की स्थिति तो होती नहीं है, कि यह generic कृष्ण भक्ति के भाव की स्थिति है ।
भाई ! भाव क्या होता है ?

भगवान् के प्रति भाव उमड़ना । एक रस में भगवान् के प्रति भाव उमड़ना, इसको ही तो भाव की स्थिति बोलेंगे या कुछ और होती है ?
भगवान् के सख्य रस में भाव उमड़ रहा है,
या भगवान के वात्सल्य रस में भाव उमड़ रहा है,
या गोपी भाव में भाव उमड़ रहा है,
या मञ्जरी भाव में भाव उमड़ रहा है;
तो भाव की स्थिति में आप पहुँच गये, तो किसी भाव की वजह से ही तो पहुँचे हो । भाव विहीन होकर भाव की स्थिति में कैसे पहुँचा जाता है ? बताओ !

आप भाव विहीन होकर उपासना करो और आप भाव की स्थिति में कैसे पहुँचोगे ? और आप हमें बताओ, ऐसी कौन सी भाव की स्थिति होती है, जिसके बाद रागानुगा भक्ति start होती है ? ऐसे कोई generic भाव भी होता है ?

कृष्ण के प्रति दास्य भाव करते-करते भाव की स्थिति आयी− यह तो सुना, समझा ।
सख्य भाव में भक्ति करते हुए भाव की स्थिति आयी, ठीक है ।
गोपी भाव करते हुए, वात्सल्य भाव इत्यादि सबकी भक्ति करते हुए भाव की स्थिति आयी− रुचि, आसक्ति, भाव ।

तो यह कौन से भाव की स्थिति के बाद रागानुगा भक्ति करेंगे ? जबकि कृष्ण के दास बनने की जो भक्ति होती है, उसके भाव की स्थिति में, already रागानुगा में ही आप हो ।

कृष्ण भगवान् की हर प्रकार की भक्ति जो होती है पाँचों रस में, चाहे आपका मञ्जरी भाव हो, गोपी भाव हो, वात्सल्य भाव हो, सख्य भाव हो, दास्य भाव हो, वे तो सारी ही रागानुगा भक्ति हैं । भगवान् कृष्ण की वैधी भक्ति होती ही नहीं है ! होती ही नहीं है ! सारी ही रागानुगा भक्ति हैं ।

आप कह रहे हो पहले भाव stage में आयेंगे !
भाई ! कौन से रस की भाव stage में ? Generic भाव stage तो होती नहीं है कोई ।

तो आप कह रहे हो कि अभी हम वैधी भक्ति कर रहे हैं, बाद में रागानुगा में आयेंगे । इसका मतलब क्या है, आपको पता है आप क्या बोल रहे हो ?? आप कह रहे हो, हम वैधी भक्ति कर रहे हैं । भाई ! कृष्ण की तो कोई वैधी भक्ति होती ही नहीं है । जिस मर्ज़ी से, बुद्धिमान व्यक्ति से जा कर पूछ लो !

अगर आप कह रहे हो हम वैधी भक्ति कर रहे हैं, तो इसका मतलब कि आप अभी नारायण की भक्ति कर रहे हो । उसके बाद आप कृष्ण की भक्ति में आ जाओगे, रागानुगा में । इस बात की कोई sense बनी ? वैधी भक्ति मतलब जो नारायण भगवान् की भक्ति की जाती है । आप कह रहे हो− मैं नारायण की भक्ति करते-करते कृष्ण भक्ति मैं आ जाऊँगा ।

आप कहोगे, नहीं-नहीं, हम तो कृष्ण भक्ति कर रहे हैं, ठाकुर की मंगला आरती भी attend करते हैं, राधाकृष्ण की, राधामदनमोहन की, राधाश्यामसुन्दर की ।

अच्छा ! तो आप कह रहे हो कि आप कृष्ण की भक्ति कर रहे हो ? आप कह रहे हो कि हम कृष्ण की भक्ति कर रहे हैं और आप भाव की स्थिति में आकर रागानुगा करोगे । अगर आप कृष्ण की भक्ति कर रहे हो, तो यह बता दो कि कौन से रस में कृष्ण की भक्ति कर रहे हो ? क्योंकि सभी रस रागानुगा भक्ति ही हैं !

और अगर किसी रस में नहीं कर रहे, तो कृष्ण की भाव विहीन भक्ति तो होती ही नहीं है । कृष्ण की भक्ति तो भाव-युक्त होती है । कोई न कोई भाव को लेकर ही कृष्ण भक्ति होती है । या दास्य भाव ले लो या सख्य भाव । आप कोई भाव को लेकर कृष्ण की भक्ति कर रहे हो ?

कृष्ण का सामान्य दास्य भाव कोई नहीं होता । कृष्ण का दास्य भाव भी विशेष दास्य भाव होता है । रक्तक-पत्रक जैसे भक्ति और सेवा करते हैं, उनके अनुगमन में, आनुगत्य में रहकर भक्ति करना, यह कृष्ण की दास्य भक्ति है ।

अगर आप कह रहे हो हम कृष्ण की वैधी भक्ति कर रहे हैं, तो आप यह कह रहे हो− कृष्ण की वैधी भक्ति करके हम कृष्ण की रागानुगा भक्ति करेंगे ? आप बोल रहे हो न कि हम भाव की stage पर आकर रागानुगा भक्ति करेंगे । पर आप कह तो रहे हो− पर हम कृष्ण की ही भक्ति कर रहे हैं । आप कृष्ण की भक्ति कर रहे हो, और कोई generic stage of भाव आयेगी, उससे आप कोई अजीब सी रागानुगा भक्ति करोगे !?!

अच्छा, आप कौन सी रागानुगा भक्ति करोगे उसके बाद ? यही बता दो । सख्य भाव में रागानुगा भक्ति करोगे, दास्य भाव में करोगे, गोपी भाव में करोगे, मञ्जरी भाव में, वात्सल्य भाव में, कौन से भाव में रागानुगा भक्ति करोगे ? आपको कोई बात समझ आ रही है, आप क्या बोल रहे हो ??

भाव-विहीन होकर भाव stage पर पहुँचना !?! कभी सुना है आज तक ?? कभी सुना है कि आप भाव stage पर पहुँच रहे हो, भाव-विहीन होकर !?! आप कृष्ण की किसी भी भाव से भक्ति कर रहे हो, गोपी भाव, मञ्जरी भाव ?
नहीं ।

तो भाव stage पर कैसे पहुँचोगे ? आप ही तो भाव stage की बात कर रहे हो !
आप बताओ, कैसे पहुँचोगे भाव stage पर, भाव विहीन होकर ? यह तो वही बात है− बाल्टी में पानी विहीन हो कर, पूरी बाल्टी भर दूँगा पानी से ! पानी विहीन होना चाहिये बाल्टी को, पर मैं पूरी बाल्टी भर दूँगा !

भाव stage का मतलब है− भरा हुआ, पूरे एक भाव में रचा-पचा हुआ । भाव stage का मतलब समझो ! भाव stage मतलब कि एक रस में आपका मन, आपका अहम्, आपका चित्त, पूरा भर गया है । दास्य stage में भाव हो सकता है या सखा stage में भाव का स्तर या वात्सल्य में या गोपी भाव ।

एक stage ऐसी है भाव की, वह stage ऐसी है कि देह को बिल्कुल भूल जाते हो और केवल एक रस में डूब जाते हो । Generic stage of भाव कोई नहीं होती । Generic मतलब एक general भाव stage, जो अनर्थ निवृत्ति के बाद आती है; उसके बाद switch over कर लेना !?! किसी शास्त्र में कोई switch over भक्ति नहीं होती है । रागानुगा भक्ति शुरु से रागानुगा होती है, वैधी भक्ति शुरु से वैधी होती है ।

और आप कह रहे हो कि भाव की stage पर आने के बाद मैं रागानुगा भक्ति करूँगा ।

पहली बात तो ऐसी कोई आयेगी नहीं भाव की stage, भाव विहीन होकर ! मान लो आप, imaginary आप मान लो कि आप पहुँच गये भाव की stage पर आपकी वाली, जो अभी आप कल्पना कर रहे थे । अच्छा ! आप यह तो बता दो, उसके बाद कौन सी रागानुगा भक्ति करोगे ? इतना बता दो सिर्फ ।

अगर आप कहो कि, मैं तो सख्य रस की रागानुगा भक्ति करूँगा । कोई रामदास कहेगा कि मैं वात्सल्य रस की करूँगा । कोई कहे कि मुझे तो गोपी भाव पसन्द है । कोई कहेगा− भाई ! मुझे तो मञ्जरी भाव पसन्द है ।

तो अनेक, हज़ारों भक्त हैं Iskcon में; वे बोलेंगे− मुझे यह पसन्द है, वह पसन्द है । तो, मतलब कि आप यह कह रहे हो कि आप कोई भाव स्तर पर आने के‌ बाद choose कर लोगे; जैसा मन करेगा, वह रागानुगा भक्ति कर लोगे आप ।

प्रभु जी ! महाराज ! आपको समझना चाहिये कि सम्प्रदाय का मतलब होता है, जिसमें एक ही रस की उपासना की जाती है । Choose out of the four− किसी सम्प्रदाय में नहीं होता; आपके मन में जो आये, आप choose कर लेना । भाव stage पर पहुँचकर choose कर लेना, ऐसा नहीं है ! पहले दिन से लेकर आखिरी दिन तक रागानुगा, रागानुगा रहेगी; और वैधी, वैधी रहेगी । और एक ही रस की उपासना पूरे सम्प्रदाय में होगी ।

या तो पूरा सम्प्रदाय वात्सल्य रस की उपासना कर रहा है, या पूरा सम्प्रदाय सख्य रस की उपासना कर रहा है । अभी भी सख्य रस के सम्प्रदाय हैं । वात्सल्य रस के हैं । पूरा सम्प्रदाय सख्य रस की उपासना करेगा । पूरा सम्प्रदाय वात्सल्य रस की उपासना करेगा । आपको तो यह नहीं पता कि आप बोल क्या रहे हो !

अच्छा कौन सी रागानुगा ? पाँच प्रकार की रागानुगा होती हैं । कौन सी करोगे ? और आप कहते हो, जो मेरे मन में आयेगा, वह choose कर लूँगा । तो आप गलत हो जाते हो, क्योंकि सम्प्रदाय का मतलब है कि आपको choose नहीं करना । सम्प्रदाय के अन्तर्गत भाव आपको प्रदान किया जाता है, कि इस भाव में पूरा सम्प्रदाय भक्ति करता है । Bhäva is bestowed, not choosen ! सम्प्रदाय का मतलब ही है कि मैं choose करने के लिये नहीं आया हूँ । जो एक सम्प्रदाय में, एक भाव की उपासना हो रही है, मैं उस भाव में भक्ति करना चाहता हूँ, इसलिये उस सम्प्रदाय में आया हूँ ।

तो गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय में आकर कोई सोचे कि, हाँ मैं सख्य रस चाहता हूँ, तो आपको यहाँ पर नहीं आना चाहिये । यहाँ तो राधाकृष्ण की उपासना होती है ।

अनर्थ निवृत्ति के बाद भाव की stage पर पहुँचकर मैं रागानुगा कर लूँगा । अरे ! आप बता दो कौन सी रागानुगा ? रागानुगा तो ५ होती हैं, रागानुगा भक्ति ५ प्रकार की होती हैं ।

और सख्य रस में भक्ति करना या दास्य, इसमें आपको अनर्थ निवृत्ति चाहिये पहले ? खुद सोचो ! काम क्रोध से मुक्त हो जाओगे, तो भगवान् के सखा बनोगे ? और काम क्रोध युक्त होकर नारायण के भक्त बन सकते हो ? कोई logic है इसका ? काम क्रोध युक्त होकर हम भगवान् नारायण के दास बन सकते हैं, पर भगवान् कृष्ण के दास नहीं बन सकते काम क्रोध युक्त होकर । कमाल की बात है आपकी !!
अच्छा, एक बात बताओ ! भगवान् के दास बनना चाहते हो, तो पहले कौन सी वाली भाव stage पर आओगे जिससे आप रक्तक-पत्रक के जैसी भगवान् की दास्य भक्ति करोगे ??

मान लो, आप गोलोक में भगवान् के दास बनना चाहते हो । बताओ, भगवान् की उस एक general भाव stage में कैसे आते हैं जिससे रागानुगा में प्रवेश होगा ? आप बता दो, वह कैसे होता है ? भाई ! ऐसी कौन सी general भाव stage है ?

हम भगवान् के दास बनना चाहते हैं । साधना करो दास की । दास की अलग प्रकार की मंगला होती है । वह अलग प्रकार से भगवान् को देखता है, भोग लगाता है । जो सखा बनना चाहते हैं, उनकी अलग प्रकार की साधना होती है । जो वात्सल्य भाव चाहते हैं, वे लड्डु गोपाल की, बाल गोपाल की उपासना करेंगे ।

साधना ही सारी अलग-अलग हैं । रागानुगा में मंगला आरती सबकी अलग होगी ।
अभी आप एक general मंगला आरती करोगे, बाद में एक specific मंगला आरती करोगे ? आप कुछ सोच रहे हो कि आप क्या बोल रहे हो ?
रागानुगा मतलब कि रोज़ एक particular मंगला आरती करना ।
वात्सल्य वाले एक प्रकार की करेंगे ।
सख्य वाले एक प्रकार की ।

किसी सम्प्रदाय में पाँच प्रकार की मंगला आरतियाँ नहीं होती, एक ही प्रकार की होती है ! वह एक भाव के अनुसार होती है । आपको पता है कि मंगला आरती भाव के अनुसार की जाती है । General मंगला आरती कोई नहीं होती ।

और ‘संसार दावानल’ इसलिये मंगला आरती नहीं है क्योंकि वह गुरु वन्दना, गुरु अष्टक है । अगर आप ऐसी मंगला आरती कर रहे हो, तो आपको पता चल जाता कि आप गलत जगह पर जुड़े हो । क्योंकि मंगला आरती होती ही एक रस में है ।

आपको जो भाव प्राप्त करना है, उन्हीं की मंगला आरती करनी है, वैसे ही भोग पद्धति होगी, वैसे ही आपके सारे पद-गान होंगे । आप कह रहे हो, मैं कोई भी चीज़ choose कर लूँगा । मतलब आपके सामने पाँच-पाँच रस हैं !?! आप बताना, कहाँ हैं ? पाँच प्रकार की मंगला आरती होती है ? सुनी हैं कभी ये बातें ?
हर भाव में भोग अलग प्रकार से लगते हैं । अभी आप एक generic भोग लगा रहे हो, फिर आप रागानुगा भक्ति का एक specific भोग लगाओगे !?! अभी एक general मंगला आरती कर रहे हो, फिर एक specific मंगला आरती करोगे !?! अभी आप एक generic भाव की stage पर पहुँचे हो, फिर रागानुगा भक्ति की एक special भाव की stage पर पहुँचोगे !?! आपको पता है कि आप बोल क्या रहे हो ?? कभी किसी महापुरुष के आनुगत्य में रहे हो ? कभी सुना है किसी महापुरुष से direct कि भक्ति क्या होती है ? Generic भाव stage… Special भाव की stage, Generic भोग stage… special भोग लगायेंगे, अलग प्रकार से भोग ! यह क्या है ??

अभी हम general मंगला आरती कर रहे हैं, फिर हम कोई specific मंगला आरती करेंगे ।
चलो मान लो, आपकी बात को मानते हैं कि आप भाव stage में पहुँच गये । अब आप बताओ कि आप भाव stage में पहुँच गये हो, अब आप सख्य रस की मंगला आरती कैसे करोगे ? आप हमें explain करो !
आपकी बात मान ली ! मान लिया कि आप अपनी काल्पनिक भाव की stage पर पहुँच गये हो । आप बताओ कि अब आप सख्य रस की मंगला आरती कैसे करोगे ? आप सख्य रस की मंगला आरती कर रहे हो, और गा क्या रहे हो ?
‘निकुञ्ज-यूनो रति-केलि-सिद्धयै
या यालिभिर् युक्तिर् अपेक्षणीया ।’
‘महाप्रभो: कीर्तन-नृत्यगीत..’
यह क्या गा रहे हो ?
‘निकुञ्ज-यूनो रति-केलि-सिद्धयै या यालिभिर्..’ । यह क्या है ? आप अगर सख्य रस की उपासना कर रहे हो, तो आप यह क्यों गाओगे ?

मान लो, हम करना ही भगवान् के दास्य रस की चाहते हैं या वात्सल्य रस की, तो हम यह भजन गायेंगे ?? मान लो, हम वात्सल्य रस की उपासना करना चाहते हैं, तो हम यह गायत्री मन्त्र करेंगे ??
“कामदेवाय विद्महे पुष्पबाणाय धीमहि”
या
“गोपीजन वल्लभाय स्वाहा”
और कर रहे हैं बाल गोपाल की उपासना !
“गोपीजन वल्लभाय स्वाहा”
आपको पता है कि आप क्या बोल रहे हो ?

General भक्ति कर रहे हो अप्राकृत नवीन मदन की काम बीज काम गायत्री करके, फिर उसके बाद कोई रागानुगा भक्ति करोगे ! आपको पता है कि आप क्या बोल रहे हो ? कुछ पता है ?

देखो, हम आपके well wisher हैं, आप हमारे लिये बालक-स्वरूप हो । जो भी hearers हैं, आप समझें ! हर सम्प्रदाय में एक रस‌ की उपासना ही मिलती हैं, पहले इस बात को गाँठ बाँध लें ।

अब प्रश्न उठता है कि मैं सही जगह जुड़ा हूँ या गलत जगह ? आप देख लो, क्या आपके यहाँ सभी एक रस की उपासना कर रहे हैं− किसी दास्य, सख्य, वात्सल्य या माधुर्य की उपासना कर रहे हैं ? नहीं कर रहे, तो समझ लो कि गलत जगह जुड़े हुए हो ! सीधी सी बात है ! आप अपनी आँखें खोलो । भगवान् ने टाँगें दी हैं, उनको चलाओ । वृन्दावन, अयोध्या, आपको South India, आपको जहाँ जाना है, किसी भी‌ temple, bonafide प्रामाणिक सम्प्रदाय में देख लो, केवल एक रस की उपासना होती है, पहले दिन से अन्तिम दिन तक ! Generic भाव की stage से cross over करके मैं रागानुगा भाव में भक्ति कर लूँगा, ऐसे कोई कृष्ण भक्ति नहीं होती ! कृष्ण भक्ति तो पूरे भारत में हो रही होगी, आप जाकर देख लो । हम तो नहीं कह रहे कि हमें मान लो । पुष्टिमार्ग है, जाकर देखो वात्सल्य रस, उनके सारे पद देखो । वे लोग वात्सल्य रस के लिये घण्टों पदगान करते हैं । देखो सख्य भाव, उनके सम्प्रदाय में भोग अलग लगता है । उनकी मंगला आरती अलग होती है, शयन अलग होता है । आपकी general मंगला है, general शयन है, general सब कुछ है ।

फिर अचानक आपकी अनर्थ निवृत्ति हो जायेगी, भाव से पहुँच कर रागानुगा पर आ जाओगे ??
आपको पता है कि रागानुगा भक्ति में पाँच अलग प्रकार की मंगला है, अलग प्रकार का भोग है, सब अलग है । एक रस में जुड़े बिना, आप जो भी कर रहे हो, यह समझ लो, गलत जगह पर जुड़े हुए हो । हर परम्परा में… राधावल्लभी चले जाओ, निम्बार्क चले जाओ, बाँके बिहारी चले जाओ, एक रस में A to Z सब भक्ति कर रहे हैं, कहीं पर भी कोई cross over नहीं होता । जो ये बातें बोल रहा है, बिल्कुल एक cult से जुड़े हुए हो, बिल्कुल अप्रामाणिक जगह पर हो । अपनी life को और further waste मत करो !
देखो, हमें तो कुछ मिलेगा नहीं, आप कुछ भी कर रहे हो । आप अपने ऊपर रहम करो ! और कुछ नहीं आता, यह तो सुनो ! वृन्दावन जाते हो ?

बाँके बिहारी मन्दिर चले जाओ; और कुछ नहीं समझ आता तो । राधा वल्लभ मन्दिर चले जाओ ।
देखो, कैसे एक रस में हर कोई भक्ति कर रहा है ।
इतने साल भक्ति करके तुम्हें यह भी समझ नहीं आया ?
अब तुम्हारे मन में यह प्रश्न होगा कि भाई ! भक्तिसिद्धान्त गलत नहीं हो सकते और प्रभुपाद गलत नहीं हो सकते, वगैरह-वगैरह ।

भाई, एक बात बताओ !
मान लो, हम एक general भक्त हैं । हम आपसे सिर्फ एक बात पूछना चाहते हैं, जैसे आप बाँके-बिहारी मन्दिर में जाओगे, उनसे पूछो कि भक्ति कैसे होती है आपके यहाँ पर ? वे साफ-साफ बतायेंगे− हमारे ठाकुर जी राधाकृष्ण हैं, हम उनकी दासी हैं । वहाँ पर अनपढ़ बन्दा भी आपको यह बता देगा !
राधावल्लभ मन्दिर चले जाओ । वे बोलेंगे−‘राधावल्लभलाल की जय’ । वहाँ बोलेंगे− हम उनकी दासी हैं ।
Simple सी बात है, एक रस में उपासना होती है । उसी प्रकार से गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय… हम आपसे इतना सा ही तो प्रश्न पूछ रहे हैं− भाई ! गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय में भक्ति कैसे होती है ? किनकी होती है ? यह बता दो । क्या मिलता है end में ?

और एक बात आपसे request कर रहे हैं, गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय तो बहुत बड़ा होगा न ५०० साल से ?
हाँ, बहुत बड़ा है !

तो बस भक्तिविनोद ठाकुर की family को, जो भी होता है, उस को छोड़कर बस हमें explain कर दो कि गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय क्या होता है ? मतलब, भक्तिविनोद ठाकुर, उनके बेटे, अनुयायी, उनको थोड़ी देर के लिये छोड़ दो । बस हमें बता दो कि गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय में क्या होता है, भक्ति कैसे होती है ? इतना सा, सरल सा प्रश्न है ! बस इनका नाम मत लो− भक्तिविनोद ठाकुर & family का । हम गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय (minus) this family, जानना चाहते हैं ! गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय में क्या इनके अलावा भक्ति नहीं है ? हमें सिर्फ explain कर दो ! एक family को exclude करके भक्ति, इतनी तो आपको knowledge होनी चाहिये कि एक family को अगर हटा दें, तो हमें यह तो पता हो कि गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय की भक्ति क्या है ?

और‌ अच्छे से समझ लो ! किसी भी सम्प्रदाय‌ की भक्ति एक रस में होती है ।
और आप कहते हो, switch over कर लेंगे, अभी अनर्थ हैं, हमारा shell है वैधी का, अन्दर रागानुगा छुपी हुई है !?!
और छुपाने की कोई बात है ?? कोई गन्दी बात है, छुपा कर रखी है कोई ?? कोई कुछ नाज़ुक सा है, छुपा कर रखा हुआ है तुमने कुछ ??

भाई ! पुष्टिमार्ग है, इतने मार्ग हैं; हमने तो नहीं देखा कि किसी ने कोई छुपा कर रखा हो ! राधाकृष्ण हमारे उपास्य हैं, हम उनकी दासी हैं, इसमें छुपाने की क्या बात है ? अगर आपने गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय को समझना है, सिर्फ अपने जो भी Seniors हैं; आपने यह बोला हम‌ President से पूछते हैं, अभी हम qualified नहीं हैं । उनको बोलो, हम गौड़ीय वैष्णव‌ सम्प्रदाय की भक्ति समझना चाहते हैं (minus) भक्तिविनोद ठाकुर, his family, his followers. हमें explain कर दो बस !

हमें pure रूपानुगा बनना है; हमें प्रभुपादानुगा नहीं बनना । हमें pure रूपानुगा बनना है‌, minus प्रभुपादानुगा ।
अरे ! जो प्रभुपादानुगा नहीं हैं, क्या वे रूपानुगा नहीं बन सकते ?
बन सकते हैं ।
अच्छा ! कैसे बनते है; वह बता दो ?
भाई ! हम किसी जगह पर अपना इतना जीवन दे रहे हैं, तो इतना तो जानना बनता ही है कि हम Pure रूपानुगा कैसे बनते हैं ?

Minus प्रभुपादानुगा भक्ति क्या नहीं होती थी २०० साल पहले ? कैसे होती थी, बता दो ।
अब २०२३ है; गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय में १८२३ में कैसे भक्ति होती थी या १७२३ में या १६२३ में ? बस इतना बता दो ।

यह मत बताओ कि अभी अनर्थ हैं, इसलिये रागानुगा भक्ति नहीं कर सकते− यह तो कहीं पर भी नहीं बोला जाता । यह तो cult में ही बोला जा सकता है सिर्फ !