पंचतत्त्व आरती, पंचतत्त्व भोग मंत्र प्रामाणिक या अप्रामाणिक

भक्त− महाराज जी ! Bangalore से Iskcon‌ के भक्त, श्रवण दास जी हैं । वह पूछ रहे हैं− क्या पञ्चतत्त्व की आरती इकट्ठे की जाती है ? क्या भोग इकट्ठा लगाया जाता है ? क्या सही‌ विधि-विधान है ?

महाराज जी− देखिये, जब महाप्रभु प्रात: लीला में प्रसाद सेवन करते हैं, तो पहले महाप्रभु नित्यानन्द प्रभु और अद्वैताचार्य प्रभु प्रसाद सेवन करते हैं । और प्रसाद सेवन के बाद गदाधर पण्डित जी भागवतम् पर प्रवचन‌ करते हैं । प्रवचन करने से पूर्व, वे पहले महाप्रभु का महाप्रसाद पाते हैं, गौर प्रसाद पाते हैं, उसके बाद वे पाठ-प्रवचन करते हैं ‌। इसी विधान के अनुसार ही नित्य लीला में जिस प्रकार से भोग होता है, उसी विधान के अनुसार ही पहले तीन प्रभु को भोग लगाया जाता है ।

पञ्चतत्त्व को इकट्ठा भोग नहीं लगाया जाता । नित्यानन्द प्रभु, अद्वैत प्रभु और गौरा महाप्रभु ‘ एक महाप्रभु आर प्रभु दुइ जन’ । तो दो प्रभु हैं− नित्यानन्द प्रभु और अद्वैत प्रभु; और महाप्रभु एक हैं− ‘गौरा महाप्रभु’ । तो तीनों प्रभु को पहले भोग लगाया जाता है । फिर भोग लगाने के बाद महाप्रभु का‌ उच्छिष्ट गदाधर पण्डित और श्रीवास पण्डित‌ पाते हैं । जो भगवान् के नित्यधाम में होता है, उसी प्रकार से साधकों द्वारा भी भोग अर्पण किया जाता है ।

अब जैसे आपने पूछा कि क्या पञ्चतत्त्व की आरती इकट्ठे की जाती है, कैसे आरती होती है ? देखिये, पहली बात तो समझिये कि आरती पञ्चतत्त्व की होती ही नहीं है । आरती तीन प्रभु की होती है । महाप्रभु की आरती की जाती है, उतारी जाती है । नित्यानन्द प्रभु की आरती की जाती है और अद्वैत प्रभु की आरती की जाती है । आरती तीन प्रभु की ही होती है और तीन प्रभु की आरती करने के बाद धूप-दीप है गदाधर पण्डित को दिखाया जाता है, वे आरती लेते हैं । जैसे आप भक्त लोग आरती लेते हैं, वैसे ही गदाधर पण्डित भी आरती लेते हैं । उनकी आरती नहीं की जाती ।

और जैसे आप पायेंगे कि नित्यलीला में भी महाप्रभु राधाभाव में विभावित रहते हैं, तो आप देखेंगे कि जैसे महाप्रभु योगपीठ करके अपने आँगन में आये, तो तीन आसन लगे हुये होते हैं, पाँच आसन नहीं लगे होते ।

तीन आसन होते हैं ! एक महाप्रभु का, एक नित्यानन्द का और एक अद्वैत का । गदाधर पण्डित और श्रीवास पण्डित पास में बैठते हैं, साथ में नहीं बैठते । नित्यलीला‌ में पाँच आसन नहीं होते हैं, तीन आसन होते हैं । और गदाधर पण्डित, श्रीवास पण्डित नीचे बैठे होते हैं, उनके साथ में आसन पर नहीं ।

जब हमें basics भी नहीं पता होंगे, तो हम गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय में होकर भी नहीं हैं, एक प्रकार से ! Basics भी नहीं पता कि भोग किसको लगाना है, आरती कैसे करनी है, ध्यान कैसे करना है ??

हम सोचें तो सही कि नित्य नवद्वीप में क्या होता है ? कुछ तो पता हो । हम किस बात के गौड़ीय वैष्णव हैं, हमें यह भी नहीं पता कि नित्य नवद्वीप में होता क्या है ? यह भी नहीं पता । बाकी चीज़ें छोड़ दो, इतना तो पता हो कि नित्य नवद्वीप में आरती कैसे होती है ? पञ्चतत्त्व की कोई आरती नहीं होती । तीन प्रभु की आरती होगी, फिर प्रसादी आरती दी जाती है ।

Iskcon में संध्या आरती को गौर आरती बोला जाता है, पर गौर आरती नहीं है, संध्या के समय ! संध्या के समय भी तीनों प्रभु की आरती है । गौर की आरती है, नित्यानन्द की आरती नहीं है क्या ? अद्वैताचार्य की आरती नहीं है क्या ? हाँ, गदाधर पाण्डित और श्रीवास पण्डित की तो नहीं है । वह तो मंगला में भी नहीं होती और संध्या में भी नहीं होती । उनको तो मंगला आरती में भी आरती दी जायेगी । श्रीवास पण्डित को भी दी जायेगी । उनकी आरती की नहीं जायेगी । पर दुर्भाग्य है !

मायापुर में पञ्चतत्त्व के इतने बड़े विग्रह हैं और हमें सुनने में आया है कि वहाँ पुजारी लोग गदाधर और श्रीवास पण्डित को direct आरती करते हैं , उनको तो प्रसादी देना होता है । गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय में जुड़े हो, तो कम से कम ABCD तो पता हो कि क्या होता है नित्य नवद्वीप में !