Ñaò Gosvämés in Räma Darabära !
Maïjarés in Nåsiàha Deva Altar !
जो राधाकृष्ण की निगूढ़ लीलाओं में निकुञ्ज में जो सेवा करते हैं, उनको नृसिंह भगवान् के Altar में बैठा दिया । आपके नृसिंह भगवान् के Deity हैं Iskcon में ? हाँ हैं । कहाँ है ? मायापुर में । और Altar में कौन हैं ? षड्गोस्वामी । वो कौन हैं ? वो नित्यसिद्ध मञ्जरी हैं । नृसिंह भगवान् का खौफनाक जो रौद्र रूप होता है, वो इतना खौफनाक होता है कि जो उनकी भार्या हैं लक्ष्मी देवी, उनके समक्ष नहीं जा सकती । और आपने राधाकृष्ण की जो प्रेमसेवा करती हैं निकुञ्ज में, उनको उनके Altar में बैठा दिया ।
Does it make any sense ? Does it make any sense ? अभी this was not sufficient तो षड्गोस्वामी जी सामने खड़े होंगे, पूछेंगे कि “एक बात बताओ His Holiness Mahäräja, आपने…मैं राधा कृष्ण की सेविका हूँ, मुझे नृसिंह भगवान् में बैठाया क्यों ? मुझे इसका उत्तर दे दो बस । अच्छा क्या जो photo में बैठाया है, क्या हम प्रत्यक्ष वहाँ पर हैं कि नहीं हैं ?” “हाँ जी रूप गोस्वामिपाद…। मैं ये स्वामी महाराज हूँ पर आप प्रत्यक्ष हो ।” “तो भाई ! प्रत्यक्ष वहाँ पर कर क्या रहा हूँ ?” रूप गोस्वामिपाद बोलेंगे− “मैं रूप गोस्वामी हूँ ?” “हाँ ।” “मैं Altar में नृसिंह भगवान् के हूँ…अच्छा यह बताओ मैं वहाँ क्या कर रहा हूँ ?” प्रश्न जायज़ है न ? “आपने मुझे बैठाया, तो मुझे तो पता होना चाहिये कि मैं वहाँ क्या कर रहा हूँ । मुझे भी नहीं पता, आपको भी नहीं पता, नृसिंह भगवान् को भी नहीं पता कि मैं वहाँ क्या कर रहा हूँ । तो यह पता किसको है कि मैं नृसिंह भगवान् के Altar में हूँ ?” रूप गोस्वामी पूछ रहे हैं । क्या आपके पास कोई उत्तर है ? अपनी अज्ञानता देख रहे हो ? किस level की अज्ञानता है ।
Delhi Iskcon में हम जाते थे East of Kailash में । वहाँ पर सीता राम लक्ष्मण और हनुमान जी का Altar है । अच्छा वहाँ पर परम्परा में कौन है ? Once again six Gosvämés. वो six Gosvämés हैं कौन ? नित्य सिद्ध मञ्जरियाँ । अच्छा । निकुञ्ज की सेविका हैं । अच्छा । वो कौन हैं सीताराम ? मर्यादा-पुरुषोत्तम । मर्यादा-पुरुषोत्तम सीताराम के Altar में ब्रज की निकुञ्ज की मञ्जरियाँ क्या कर रही हैं ? उनको वहाँ पर क्या सेवा है ? क्या काम है भाई ? आपने बेशक उनको Altar में बैठा दिया । कोई काम तो होगा सीताराम की लीला में ? कोई काम नहीं है । Altar में उन आचार्यों को बैठाया जाता है जो नित्य उनकी सेवा करते हैं । जैसे सीता राम लक्ष्मण और हनुमान हैं ।
उनकी जो नित्य सेवा करते हैं, उनको गुरुवर्ग के…आचार्यवर्ग के रूप में बैठाया जाता है । अब षड्गोस्वामी तो मञ्जरियाँ हैं, वो राधाकृष्ण की हैं । वो नृसिंह भगवान् के Altar में क्या करेंगी ? और सीताराम के Altar में करेंगी क्या ? मान लो सनातन गोस्वामी आयें, रूप गोस्वामी से पहले जो हैं…रूप गोस्वामी से पहले आरती दी जाती है सनातन गोस्वामी को, ये भी जान लो…sequence होता है एक । मनमाना कुछ नहीं होता…नहीं मैं तो रूप गोस्वामी को पहले दूँगा । पहले सनातन गोस्वामी को आपको आरती देनी पड़ेगी प्रसादी, उसके बाद रूप गोस्वामी को आपको देनी है, ठीक है ?
सनातन गोस्वामी पूछेंगे भाई ! आपने हमें सीता राम के Altar में बैठाया है, तो क्यों बैठाया है भाई ? हम तो राधाकृष्ण की सेविका हैं न, idle बैठा दिया है । मतलब एक परम्परा में वहाँ आपने किसी को बैठाया है, वो idle बैठे हैं…eternity तक…कोई काम नहीं है । अच्छा, जो सेवक हैं, वो हैं ही नहीं । यह तो उसी प्रकार हो गया कि राधाकृष्ण का Altar है, यहाँ पर बैठा दिया हनुमानजी को । हनुमानजी ! आपका कोई काम है निकुञ्ज में ? कोई काम नहीं है । आपको क्यों बैठाया है ? इनसे पूछो जिन्होंने बैठाया है । हनुमानजी राधाकृष्ण के निकुञ्ज में क्या कर रहे हैं ? उन्हें क्यों खाली बैठा दिया वहाँ पर ? उसी प्रकार मञ्जरियाँ हैं, वो सीता राम के दरबार में या नृसिंह भगवान् दरबार में…वो बेचारे…मतलब बेचारे क्यों बोलें ? वो मञ्जरियाँ हैं…उनको आपने बेचारा बना दिया । वो बैठे…बैठे ही हैं बस…काम…कोई सेवा नहीं है eternity तक और eternity तक वहाँ Altar में बैठा दिया । कोई पूछने वाला है कि आप क्यों कर रहे हो महाराज जी His Holiness साहब आप…Why do you do what you do? Why do you do what you do ? ये क्यों करते हो आप जो भी करते हो ? इतनी अज्ञानता…?
किसी भी…हमारी बात मत मानों…कभी भी मत मानों हमारी बात, हमारी बात बिल्कुल ही मत मानों, पर कम से कम अपनी आँखें खोलकर ब्रज में चले जाओ, अयोध्या में चले जाओ, तमिलनाडु चले जाओ, अरुणाचल प्रदेश चले जाओ, आसाम चले जाओ… जो परम्परा…जो आचार्य रहते हैं…वे जिस भाव में हैं, उसी भाव में सारे भक्त होते हैं ।
जहाँ मर्ज़ी…आँखें बंद… blind होकर चले जाओ, तो भी आपको यह दिख जायेगा । कोई मन्दिर, कोई परम्परा, कोई सम्प्रदाय, कोई युग, जो…जिसके आचार्य हैं…मान लो सख्य है, मान लो कोई मधुमंगल या किसी के जो भी…श्रीराम वगैरह हैं, तो वो भी सख्य रस में हमारे मूल हैं । हम भी उनकी…उन्हीं के भाव से हम भी…अपने इष्टदेव की उपासना करेंगे । ठीक बात है ?
कोई हनुमान वगैरह को अपना आचार्य रखता है, तो क्या वह राधाकृष्ण की सेवा करेगा ? खुद सोचो । और अब यह देखो सीता-राम-लक्ष्मण-हनुमान के विग्रह रखे हुए हैं और षड्गोस्वामी को आचार्य रख दिया । बताओ ! मञ्जरियाँ क्या कर रही हैं सीता-राम-लक्ष्मण-हनुमान के नीचे, आप बताओ ? भाई ! वो ‘निकुञ्ज-यूनो रति-केलि-सिद्धयै’ कार्य करने वाली मञ्जरियाँ हैं । उनको आपने सीता-राम के नीचे बैठा दिया । ऐसे ही… । नृसिंह भगवान् में बैठा दिया… । सीता राम…भाई ! मर्यादा पुरुषोत्तम हैं । ये प्रेम पुरुषोत्तम हैं । मर्यादा पुरुषोत्तम में मञ्जरियों को बैठा रहे हो । यह कोई बात हुई ?
यह कौन सी उपासना…कौन से शास्त्र की…कहाँ की…किसने… ? बिल्कुल अशास्त्रीय है ।