महाप्रभु क्या देने आये हैं ?

भक्त− महाराज जी ! एक भक्त का प्रश्न आया था, वो बता रहे हैं कि वो चैतन्यचरितामृत पढ़ते हैं और उसमें उन्होंने पढ़ा शब्द ‘अनर्पितचरीं चिरात्’ । तो वो जानना चाह रहे हैं कि महाप्रभु ऐसा क्या देने आये हैं जिसको बताया जा रहा है कि वो पहले कभी नहीं दिया गया । वो जानना चाह रहे हैं । आप कृपा करके उनके इस प्रश्न का समर्थन कीजिये महाराज जी !

महाराज जी− महाप्रभु क्या देने आये हैं ?

भक्त− क्या देने आये हैं… क्या ऐसा लुप्त हो गया है जिसको महाप्रभु ने उजागर किया ? इन सब प्रश्नों के उत्तर दे कर कृतार्थ करें ।

महाराज जी− तो हम महाप्रभु की वाणी से ही कृतार्थ क्यों न हों… ‘जो देने आये हैं’। अब आप से पूछें… “आपको क्या खाना अच्छा लगता है ?” इनसे पूछें, इनको थोड़े न पता है… उनको थोड़े न पता है । आपसे ही पूछ सकते हैं कि “भाई ! आपको क्या अच्छा लगता है ?” उसी प्रकार से महाप्रभु… उनके पार्षदों ने वर्णन किया है कि महाप्रभु क्या विशेष दान देकर गये हैं समस्त…वैसे तो पृथ्वीवासियों को और विशेषकर गौड़ीय वैष्णव जो अति भाग्यवान् हैं…जो पृथ्वी पर भी गौड़ीय वैष्णव बन पाये हैं ।

हम आपको बता रहे हैं… आपको शायद समझ न… । पूरी पृथ्वी पर अगर सबसे भाग्यशाली कोई हैं, तो वे गौड़ीय वैष्णव हैं । क्योंकि महाप्रभु ने जो अपने गौड़ीय वैष्णवों को जो दिया है, वो कहीं पर भी नहीं है । महाप्रभु परतत्त्व सीमा हैं– ‘अन्तिम सीमा’ । तो जो दान देंगे, वो भी अन्तिम स्तर का होगा… कि उससे श्रेष्ठ कुछ दिया भी नहीं जा सकता । चैतन्य चरितामृत में भी बताया गया है कि महाप्रभु क्या देने… आप पूछ रहे हैं न कि महाप्रभु… तो आप चैतन्य चरितामृत से ही पूछ रहे थे, तो वहीं पर उत्तर दिया गया है । मध्यलीला अध्याय १९, कृष्णदास कविराज बता रहे हैं−

“वृन्दावनीयां रसकेलिवार्तां कालेन लुप्तां निजशक्तिमुत्कः”

क्या बता रहे हैं ? बता रहे हैं, जैसे कि भगवान् ने ब्रह्मा के हृदय में प्रकाशित किया है, ब्रह्माजी के… कि किस प्रकार से सृष्टि करो और ये सब सृष्टि का चक्र कैसे क्रियान्वित होगा… ये ब्रह्मा जी को किस…किसने बताया ? नचाने वाले एक वही हैं । बताने वाले एक वे ही हैं । श्रीकृष्ण ने… भगवान् ने ब्रह्मा जी को हृदय में प्रकाश दिया कि किस प्रकार से सब कुछ होगा । उसी प्रकार से महाप्रभु ने रूप गोस्वामी के हृदय को… जैसे शक्तिपात करके ब्रह्माजी को सारी सृष्टि कैसे होगी, वह बताया । वैसे महाप्रभु ने ‘ कालेन लुप्तां’ इस श्लोक में बताया है ‘ कालेन’ बहुत काल से न कोई चीज़ लुप्त हो गयी थी, तो वो प्रकाशित पृथ्वीवासियों को करनी है, तो क्या किया महाप्रभु ने ? रूपगोस्वामी के हृदय में… वो प्रकाश दे दिया । क्या प्रकाश है… कि जिससे… अब यह भी बताया कि क्या लुप्त हुआ था ।

‘ वृन्दावनीयां रसकेलिवार्तां’ क्या लुप्त हुआ था संसार से ? वृन्दावन में राधाकृष्ण की रसकेलि यानि कि उनकी सबसे‌, वो लीला जिसमें उनका सबसे सान्निध्य होता है, एकीभूत होते हैं । वह राधाकृष्ण की मधुर लीलायें जो लुप्त हो गयी थी, उसका प्रकाश हृदय में किया रूप गोस्वामी के महाप्रभु ने । यही एकमात्र वस्तु का प्रकाश महाप्रभु ने किया । दो का नहीं किया । कि वृन्दावन ब्रजरस का… कई बार हम ब्रजरस शब्द से confuse हो जाते हैं कि ब्रज के पता नहीं कौन से रस का प्रकाश किया । नहीं-नहीं-नहीं, confuse मत हो । अगर आपके आचार्य कृष्णदास कविराज हैं यानि चैतन्य चरितामृत के लेखनकर्ता, तो confusion का प्रश्न ही नहीं है । वे ही बता रहे हैं मध्यलीला में−

‘वृन्दावनीयां रसकेलिवार्तां कालेन लुप्तां’ कि काल… कालक्रम से लुप्त हो गया था । तो यही प्रकाश किया । तो आपका प्रश्न था क्या देने आये हैं ? जो लुप्त हो गया था, वही देने आये हैं । किसको देने आये हैं ? ये जितने समस्त पृथ्वीवासी हैं, सबको देने आये हैं । ये आपको हमने बताया ‘चैतन्य चरितामृत’ से । और हम यह श्लोक बोलते हैं− ‘श्रीचैतन्य मनोऽभीष्टं’, यह श्लोक जो है, यह lecture से पहले बोलने का कोई संस्कृत का अक्षर नहीं है, इसका कुछ मतलब भी है ।

इसका मतलब तो तुमने follow नहीं किया । Lecture से पहले हम यह रोज़ श्लोक बोलते हैं । इसको follow भी तो हमें करना होगा न । Follow कैसे करोगे ?

“श्रीचैतन्य मनोऽभीष्टं स्थापितं येन भूतले” जो चैतन्य महाप्रभु का जो मनोऽअभीष्ट है… उन्होंने… किन्होंने… श्रीरूपगोस्वामी ने पृथ्वी पर स्थापित किया । और हमने फिर भी नहीं लिया ! इससे दुर्भाग्य कोई हो सकता है ? स्पष्ट बोल रहे हैं… क्या लुप्त हुआ था− ‘वृन्दावनीयां रसकेलिवार्तां’। रूप गोस्वामी ने क्या स्थापित किया ? वही मनोऽभीष्ट स्थापित किया । तो क्या गौड़ीय वैष्णव को वो नहीं लेना चाहिये ? फिर सोचना चाहिये कि पता नहीं…ब्रज में हमारा स्वरूप क्या है ?

‘श्रीचैतन्य मनोऽभीष्टं’ क्या है ? चैतन्य महाप्रभु का मनोऽभीष्ट संकीर्तनिया होना नहीं है । निश्चित् रूप से हरे कृष्ण जप के द्वारा वो प्राप्त होगा, पर पहले यह तो समझो प्राप्त क्या होगा ? जप के द्वारा प्राप्त होगा, निश्चित् है । दीक्षा-मन्त्रों के द्वारा, जप के द्वारा, जो मन्त्र प्राप्त होते हैं, सिद्ध होने के बाद… सब प्राप्त होगा । लेकिन प्राप्त क्या होगा ? ‘वृन्दावनीयां रसकेलिवार्तां…’ में प्रवेश । इसलिये आप तुलसी‌ आरती करते हो ।

“मोर एइ अभिलाष,
विलास कुञ्जे दिअो वास ।
नयने हेरिब सदा युगल-रूप-राशि ॥”

इसलिये आप समझो, आप जो महाप्रभु ने जो दिया है, उसी की प्राप्ति के लिये तुलसी आरती कर रहे हो । और वो… जो हम गुरु अष्टकम् भी करते हैं, वो भी इसलिये ही‌ कर रहे हैं । ‘निकुञ्जयूनो’… तो सब कुछ जो है, वो निकुञ्ज प्राप्ति… में प्रवेश के लिये है । वो अधिकारी-अनाधिकारी का प्रश्न ही नहीं उठता है, क्योंकि सिरे से नकार देते हैं कि कोई अनाधिकारी… मैं रहने ही नहीं दूँगा । माना तुम अनाधिकारी हो, पर मैं रहने ही नहीं दूँगा । मान लीजिये हमारा पति है… आप भिखारी हैं । हम आपको करोड़ रुपये दे रहे हैं, तो आप भिखारी रहोगे ? रहोगे ? नहीं रहोगे ! हमने आपको करोड़पति बना दिया स्वेच्छा से । अब भगवान् से बड़ा स्वेच्छाचारी कौन हो सकता है ? भगवान्… बोल रहे हैं । एक chief minister बोलता है− “सबको मुआवज़ा दे दो ५-५ लाख रुपये… इनका…वो भूकम्प आ गया ।” तो दे देते हैं न ? एक छोटे से chief minister की इतनी औकात है, जो सृष्टिकर्ता, ईश्वर, जिनके दास हैं ब्रह्मा-शिव, वो सबको दे रहा है… प्रश्न ही खत्म हो जायेगा ।

Qualification-unqualification का प्रश्न ही नहीं है महाप्रभु के युग में । तभी तो ये महाप्रभु का युग है । दुर्भाग्य है कि हम महाप्रभु को अभी तक पहचान नहीं पाये । जप करने के बाद, हरे कृष्ण करने के बाद भी…कि वे हैं कौन ? परतत्त्व-सीमा, कारुण्य-सीमा । करुणा की सीमा हैं, अन्तिम सीमा । कोई पात्रता नहीं, फिर भी पात्रता पूरी कर देते हैं, अपनी इच्छा से । वे कह रहे हैं− “मैं especially आया हूँ, चलो इनको सब ये दे दो, बस खत्म । मैं आया हूँ, दे दो ।” अब दोबारा कब आयेंगे ? वो हज़ार सतयुग जायेंगे, फ़िर हज़ार कलियुग जायेंगे, हज़ार द्वापर, हज़ार त्रेता… अगली बार जब आऊँगा, फिर दे दूँगा…अभी दे दो बस । ऐसे महाप्रभु आये… दे दो । चलो… ऐसे ।

समझो न महाप्रभु कौन हैं । यह युग कितना special है ! अब इसे कोई सामान्य कलियुग… यह कोई सामन्य युग है ? यह सतयुग से‌ अनेक गुना श्रेष्ठ है । सतयुग में महाप्रभु आये हैं क्या ? इसी कलियुग में आये हैं । कितने भाग्यवान् हैं हम… महाप्रभु जहाँ आये हैं, हम उसी स्थान पर बैठे हुए हैं… नवद्वीप में… बताओ ! इससे भाग्य होगा कुछ ? वहाँ पर यह सुन रहे हो, महाप्रभु क्या देने आये हैं । इससे श्रेष्ठ कुछ होगा ? नवद्वीप धाम में बैठकर सुन रहे हो साक्षात्… महाप्रभु क्या देने आये हैं ?

यह तो हमने अभी आपको कहाँ से बताया था… ‘चैतन्य चरितामृत’ से । ‘चैतन्य चन्द्रामृत’ से देखते हैं । अच्छा, तो ‘चैतन्य चन्द्रामृत’ से शुरु में से बतायें या बीच में से बतायें या आखिर में से बतायें ? इसी प्रश्न का उत्तर… आप जहाँ कहोगे, वहाँ से खोले देते हैं Page… वहाँ से पता चल जायेगा । बहुत जगह से बता देते हैं नहीं तो । जो हरि इच्छा… । श्लोक नम्बर १८ हैं ‘चैतन्य चन्द्रामृत’…जैसे महाप्रभु अभी बताया, कृष्णदास कविराज कह रहे हैं−

‘कालेन लुप्तां वृन्दावनीयां रसकेलिवार्तां’

जो काल से लुप्त हो गयी रसकेलि वार्ता, वही इस १८वें श्लोक में भी बताया जा रहा है एक प्रकार से…कि जिस उज्ज्वलरस भक्तिमार्ग में कोई भी प्रवेश नहीं कर सका… । जो अगली पंक्ति है, उसे सुन कर फिर से आपको बहुत बड़ा झटका लगेगा । क्या बोल रहे हैं ? ये बोल कौन रहे हैं, पहले यह जानें… श्रील प्रबोधानन्द सरस्वती । वे कह रहे हैं कि ये जो उज्ज्वल भक्तिरस है, इसमें पहले कोई प्रवेश ही नहीं कर सका । यहाँ तक कि श्रीशुकदेव गोस्वामी भी जिसे न जान पाये । जो श्रीमद्भागवतम् पढ़ते हैं, शुकदेव गोस्वामी द्वारा रचित… वो कह रहे हैं… वो भी नहीं जान पाये इसको, ये रस को । शुकदेव गोस्वामी जिस रस को नहीं जाने पाये, वो महाप्रभु देने आये हैं। तो अगर शुकदेव गोस्वामी… जिस रस को नहीं जान पाये, और भागवतम् का ही हम पाठ कर रहे हैं, तो उन्होंने जो लिखा, क्या उसमें वो चीज़ होगी ? स्पष्ट है । इसको हम… देखो कहाँ-कहाँ से देखो… पहले आये चैतन्य चरितामृत, इकट्ठे पकड़ लेते हैं… चैतन्य चरितामृत, चैतन्य चन्द्रामृत, अब हम सुधानिधि में से भी आपको यही बात बताते हैं । देखो, शुकदेव गोस्वामी के बारे मे यहाँ बताया जा रहा है राधारससुधानिधि में श्लोक ८४−

“परेशभजनोन्मदा यदि शुकादय: किं ततः ।
परं तु मम राधिकापदरसे मनो मज्जतु ॥”

माने ये जो महाप्रभु…जो देने आये हैं, यह परेश मतलब… परेशभजनोन्मदा… भजन में उन्मत्त यानि कि जो हरि भक्ति में भगवान् कृष्ण की भक्ति में डूबे हुए हैं, उन्मत्त हैं, प्रेमी भक्त हैं, नाम भी दे दिये हैं किसी… नाम बता रहे हैं कि नाम दे रहे हैं… । शुकादयः… शुकदेव गोस्वामी आदि आदि । ये जो भक्त हैं… शुकदेव गोस्वामी आदि आदि… किं तत:..मुझे इनके मार्ग की ज़रूरत ही क्या है ? प्रबोधानन्द सरस्वती कह रहे हैं । हम जो भागवतम् पढ़ रहे हैं रोज़ और जो सब सोच रहे हैं कि पता नहीं हम क्या करेंगे ? वो कह रहे हैं− मुझे इस मार्ग की ज़रूरत क्या है ? चैतन्य चन्द्रामृत क्या कह रही हैं− शुकदेव गोस्वामी जिसे न जान पाये । सुधानिधि क्या कह रही हैं− मुझे वो शुकदेव गोस्वामी वाले मार्ग की ही क्या ज़रूरत है ? परेशभजनोन्मदा यदि शुकादयः किं ततः… मुझे क्या ज़रूरत है ?

शुकदेव गोस्वामी आदि मार्ग की आवश्यकता क्या है ? अब वो बोल रहे हैं इनको पता नहीं है ? ये शुकदेव गोस्वामी से ज़्यादा जानते हैं ? अरे ! हम कुछ भी नहीं जानते । हम तो डाकिया हैं केवल… डाक देने आये हैं । सुधानिधि में यह बात बतायी है । हम तो सिर्फ आपको बता रहे हैं । निर्णय आपका है । अच्छा लगे, तो आपको…। आप जानो… प्रबोधानन्द सरस्वती जानें… हमें बीच में मत लाइये । झगड़ा करना‌ हो आपको Iskcon वाले हो, कोई भी हो… इनसे करो… प्रबोधानन्द जी से झगड़ा करो । “हम तो भागवतम् रोज़ करते हैं… तुमने कैसे बोल दिया शुकदेव गोस्वामी के पथ की हमें ज़रूरत नहीं हैं ?”

उनसे झगड़ा करो प्रबोधानन्द सरस्वती से । Case कर दो उनके ऊपर । पर हम तो सिर्फ बात बताने वाले है न । भाई ! किसी ने Gift दिया है, अब Gift में क्या लिखा है… अब हमें क्या पता… अब उसने क्या डाल दिया ? डिब्बे के अन्दर डाला है । डिब्बे में जो डाला है, वो उन्होंने description में लिख दिया था वो ऊपर से । डिब्बे के ऊपर से पढ़कर हम बता रहे हैं । वो बोल रहे हैं− यदि शुकादयः किं ततः… भाई ! हमें क्या ज़रूरत है शुकदेव गोस्वामी के मार्ग की ? ये चैतन्य चन्द्रामृत कह रही है कि शुकदेव गोस्वामी भी जिन्हें न जान पाये… । अगली line सुनेंगे ? वो कह रहे हैं− और कृपामय स्वयं श्रीकृष्ण ने भी जिसे प्रकाशित‌ नहीं किया । यह वो मार्ग है महाप्रभु का । आपका प्रश्न तो बहुत छोटा था…छोटा था, उत्तर बहुत बड़ा है इसका । महाप्रभु क्या… आपने तो बोल दिया एक line की महाप्रभु क्या देने आये हैं कि… जिसने क्या वो प्रश्न पूछा । अब answer तो देखो कितना सुन्दर है ।

शुकदेव गोस्वामी जान नहीं पाये । श्रीकृष्ण तक ने उसे प्रकाशित नहीं किया । देखो, द्वापर में कृष्ण आये थे । क्या उन्होंने सख्य रस प्रकाशित किया या नहीं ? किया । दास्य रस प्रकाशित किया या नहीं ? किया । ललिता-विशाखा के साथ रास-प्रसंग सारी दुनिया जानती है, तो प्रकाशित हुआ न, हुआ । तो कुछ ऐसा क्या था, जो प्रकाशित नहीं हुआ फिर ? राधाकृष्ण का… राधारानी का नाम तो भागवतम् में प्रकाशित हुआ नहीं, तो राधाकृष्ण की निकुञ्ज सेवा कैसे प्रकाशित हो जायेगी ? अब समझ आया ? ‘शुकादयः किं ततः’ हमें शुकदेव गोस्वामी मार्ग की ज़रूरत इसलिये नहीं है क्योंकि जो हमें चाहिये, वो तो नाम भी… जिनकी सेवा हमें चाहिये, उनका तो नाम स्पष्टीकरण नहीं हुआ हुआ भागवतम् में बहुत ज़्यादा । जो अति भाग्यवान् होंगे, उन्हीं को ये… । पहली बात तो यह सुनने को मिल रहा है, आप अपना भाग्य मनाइये… किसी से सुनने को मिल रहा है । अब वो बोलते हैं महाप्रभु का तो… गौर दास तो ठीक है हम… ब्रज का पता नहीं है । अच्छा…

जो महाप्रभु देने आये हैं, कृष्ण ने भी प्रकाश नहीं किया । शुकदेव गोस्वामी भी उन्हें न जान पाये, परन्तु ‌गौरभक्त उस मधुररस भक्तिमार्ग को जानते हैं और सुखपूर्वक उसमें विचरण करते हैं । किसमें विचरण‌ करते हैं गौरभक्त ? तुम‌ गौरदास हो न…मानते हो ? तो राधाकृष्ण की प्रेमसेवा में आप विचरण करते हो ।‌

‘खेलन्ति गौरप्रिय:’ खेलते हैं, विचरण करते हैं गौरभक्त । महाप्रभु क्या देने आये हैं ? प्रारम्भ से बताया था । अन्त से भी जान लीजिये । ये कितनी पतली सी पुस्तक है । इसमें से हम… इसमें क्या नहीं है… देखने में कितनी पतली है । पर यह हमारी पतली सी पुस्तक… यह हमारी मोटी बुद्धि में प्रवेश कर जाये । कृपा माँगें… ये साक्षात् महाप्रभु हैं चैतन्य चन्द्रामृत रूप में । जो भी श्रवणकर्ता हैं, Live सुन रहे हैं, या बाद में सुनेंगे… प्रणाम करें, भीख माँगें कि आप हमारे हृदय में प्रवेश कर जाओ महाप्रभु । आप इस पुस्तिका… ये ग्रन्थ के रूप में आप ही हो ।

श्लोक नम्बर १३०− “प्रेमा नामाद्भुतार्थः…..” उन राधा को कौन जानता था ? ये बता रहे हैं । ‘को वा जानाति राधां’ । प्रेम नामक अद्भुत… जो प्रेम है, वो इतना अद्भुत है, उनको कौन जानता है ? प्रेम की महिमा को क्या कभी किसी ने कानों से सुना भी था ? प्रेम की महिमा… प्रेम कौन है ? राधारानी स्वयं साक्षात् प्रेममूर्ति… प्रेममूर्ति किशोरी ! प्रेम की महिमा को क्या कभी किसी ने सुना भी था ? श्रवण पथ गत: । क्या श्रवण के पथ से कभी किसी के भीतर प्रवेश किया था कि प्रेम क्या होता है ? और किसका प्रवेश था उसमें ? परमरसमयी, चमत्कारी, माधुर्य सीमारूपा श्रीराधा को भला पहले कौन जानता था ? ‘को वा जानाति राधां’ इन सब विषयों को एकश एकमात्र… ‘एकश चैतन्यचन्द्रः परं करुणया सर्वमाविश्चकार ।’ एकमात्र श्रीचैतन्यचन्द्र ने… महाप्रभु ने करुणा करके जगत् के सामने प्रकाशित किया ।‌

अभी भी पूछना है− महाप्रभु क्या देने आये हैं ? श्रीमन् महाप्रभु क्या देने आये हैं ? आप यह बताओ कि आप कितने प्रकार से सुनना चाहते हो− महाप्रभु क्या देने आये हैं ? हम आपको उतने प्रकार से वर्णन करते रहेंगे । अगर आपके पास शाम तक समय है, हम शाम तक यही वर्णन करते रहेंगे कि आचार्यों ने इतनी ज़्यादा जगह बताया है कि महाप्रभु क्या देने आये हैं । बस‌ आपके दिव्य मन में यह बात बैठ जाये कि वे क्या देने आये हैं । फिर कुतर्क न हो जाये… “नहीं, महाप्रभु संकीर्तन आन्दोलन करने आये हैं, और पता नहीं…Movement करने”, ऐसा नहीं है । महाप्रभु आपको राधादासी बनाने आये हैं । वे… वे स्वयं जिनकी दासता करते हैं, आपको भी उनकी दासता देने‌ आये हैं ।

देखो, शुकदेव गोस्वामी पुन:.. उनका वर्णन‌ आया है इस श्लोक में… १२१ श्लोक है ‘चैतन्य चन्द्रामृत’ । इसमें हम कहीं भी यह आया कि हम यह बात बोल रहे हैं, हमारे गुरुजी बोल रहे हैं, हमारी संस्था बोल रही है… इसमें एक बार भी कुछ बोला है ? या पिछले…. कभी कुछ बोला है कि हमारे गुरुजी बोल रहे हैं या हम बोल रहे हैं ? ये जो आचार्य‌ बोल रहे हैं, बस वही हमारा लाभ देंगे । हर किसी की वाणी हमारा कोई लाभ नहीं देगी । सब नुकसान कर रहे हैं ।

“श्रीमद् भागवतस्य यत्र परमं तात्पर्यमुट्टंकितं, श्रीवैयासिकना दुरन्वयतया रासप्रसंगेऽपि यत् ।”

इसका मतलब है, ध्यान दें ! भागवत् का जो निगूढ़ तात्पर्य है यानि कि प्रेम… प्रेमभक्ति…उच्चतम स्तर की, वो रास-प्रसंग में भी बहुत ही संक्षिप्त रूप से जो प्रेमभक्ति है युगल सरकार की, वो बहुत ही संक्षिप्त रूप से रास में बतायी गयी है । रास क्या है ? सबसे श्रेष्ठ… उत्तम… । भागवतम् का सबसे श्रेष्ठ अगर कोई वो part है, वो है रास-प्रसंग… रास पञ्चाध्याय । पर जो महाप्रभु देने आये हैं, ये बड़ी संक्षिप्त…बड़ी, थोड़ी सी बात बतायी गयी है, इसी सम्बन्ध में कुछ-कुछ… रास प्रसंग में । और वही जो बात बड़ी थोड़ी सी बतायी गयी है, वो क्या बता रहे हैं… ‘तद् वस्तु’ वही वस्तु, ‘प्रथनाय’ देने के लिये, ‘गौर वपुषा’ गौरहरि, ‘लोकेऽवतीर्णोहरि:’ । वही वस्तु‌ देने के लिये महाप्रभु इस लोक में अवतीर्ण हुए हैं… जो भागवत् में बड़ी संक्षिप्त में बतायी गयी है ।

तो महाप्रभु क्या देने आये हैं ? हमारे जो आचार्य… भर-भर के ग्रन्थ उन्होंने लिखे ही इसलिये हैं… यह देने आये हैं ताकि हम लोग सिर्फ एक बार उनका दर्शन कर लें । हम कह रहे हैं जब तक ये ग्रन्थ नहीं पढ़ेंगे आप… वृन्दावन महिमामृत, चैतन्य चन्द्रामृत, सुधानिधि, तब तक यह पता ही नहीं चलेगा । आप सोचते हो… सुधानिधि में बड़ी कोई राधाकृष्ण की केलि लीलाओं का ही वर्णन है । अभी हमने क्या बताया ? क्या बता रहे हैं सुधानिधि में… ‘शुकादयः किं ततः’ हमें शुकदेव गोस्वामी के पथ की ज़रूरत क्या है ? इससे… आपका काम जागृत होगा यह श्लोक पढ़ के ?

बोलते हो न… हम… lust increase हो जायेगी… हमने रस ग्रन्थ पढ़ लिये… । ये रस ग्रन्थ में बताया गया है कि हमें शुकदेव गोस्वामी के पथ की तो ज़रूरत ही नहीं है । अगर वास्तव में सत्य की प्राप्ति करना चाहते हो, तो ही ये बातों को accept करोगे, नहीं तो किन्तु…परन्तु…मैं तो…ये तो…बस यही होएगा नहीं तो…। पर…मैं…किन्तु…लेकिन…वो भी तो…ये…पर… सत्य स्वीकार करने का मतलब है NO किन्तु-परन्तु । ये देने आये हैं− ‘हाँ’ । कहाँ मिलता है− भाई ! आप एक shop पर कुछ लेने जा रहे हो… आटा, वहाँ मिलता ही नहीं है, तो आपको मिलेगा कैसे उस shop से आटा ? वहाँ कुछ और मिलता है । तो जो वस्तु जहाँ से मिलती है, जो wholesale market होती है, distributor हैं, उन्हीं के पास लोगे न godown में जाकर ? हाँ भाई ! यह तो पूरा godown ही इन्हीं का है… हाँ जी, एक हमें भी दे दो भाई ! जिस godown में वो है ही नहीं, हम qualified ही नहीं हैं उस‌ वस्तु के लिये, तो वहाँ से वो वस्तु कैसे मिल जायेगी ?