Leaving..ISKCON Guru– Aparädha ?!?

भक्त− महाराज जी ! कानपुर से माधवकृष्ण दास जी हैं, Iskcon के ही भक्त हैं । वह प्रश्न पूछ रहे हैं कि जैसे ‌अब पता चल रहा है कि Iskcon में काफी चीज़ें गलत‌ हैं । जैसे भोग अर्पण की विधि गलत है, पञ्चतत्त्व प्रणाम मन्त्र‌ गलत है, गेरुआ वस्त्र गलत है, वह नहीं दिया जाता । गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय में संन्यास नहीं दिया जाता, पता चला कि यह भी गलत है जो दिया जा रहा है; और जो गुरु प्रणाम मन्त्र है, यह भी पता चला कि यह भी नहीं होता है । तो पता चल रहा है कि काफी चीज़ें गलत हैं, जो‌ प्राचीन परम्पराओं के अनुसार नहीं हैं । उनका प्रश्न यह है कि जो वहाँ पर already दीक्षित हैं, जो already दीक्षा ले चुके हैं, यदि वे Iskcon छोड़कर किसी नित्यानन्द परिवार में या अद्वैत परिवार में या अन्य किसी प्रामाणिक सम्प्रदाय में दीक्षा लेते हैं, तो क्या उनका अपने Iskcon के गुरु के प्रति अपराध होगा या नहीं ? कृपया करके मार्गदर्शन करें !

महाराज जी− इस प्रश्न का उत्तर जानना चाहते हैं कि जब उन्हें सत्य पता चल रहा है कि Iskcon मे काफी चीज़ें सही नहीं हैं, तो क्या वहाँ से वे छोड़कर यदि वास्तविक परम्परा में दीक्षा लेंगे, अद्वैत परिवार की या नित्यानन्द परिवार की, तो गुरु त्याग का अपराध लगेगा या नहीं लगेगा ?

प्रश्न बिल्कुल अच्छा है । जब हमनें सन २००९ में Iskcon छोड़ा था, तो हम अपने गुरुदेव श्रील अनन्तदास बाबाजी महाराज के पास जब सब भक्तों को लेकर गये थे, तो यही प्रश्न हमने बाबाजी से स्वयं पूछा था । जब हम गये थे, तो करीब डेढ़-दो सौ भक्त भी Iskcon छोड़कर गये थे और राधाकुण्ड में बाबाजी का आश्रय लिया था । तो श्रील अनन्तदास बाबाजी महाराज से पूछा था कि Iskcon से दीक्षित होने के बाद भी यदि हम आपका आश्रय लेंगे, तो क्या हमें गुरु त्याग का अपराध लगेगा या नहीं ?

श्रील अनन्तदास बाबाजी महाराज का जब सन् २०१८ में तिरोभाव हुआ था, तो एक सिद्ध महात्मा ने श्रील अनन्तदास बाबाजी महाराज को देखकर कहा था−
‘न भूतो न भविष्यति ।’
ऐसे सिद्ध महात्मा न आज से पहले कभी हुए हैं, न आज के बाद कभी होंगे । पूरी पृथ्वी‌ पर वे एकमात्र थे, जो शास्त्रों के इतने प्रकाण्ड पण्डित थे ! सब शास्त्र कण्ठस्थ, और सारे सिद्ध महात्मा, भजनान्दी महात्मा, जो तीन-तीन लाख नाम, चार-चार लाख नाम रोज़ करते हैं, वे लोग भी श्रील अनन्तदास बाबाजी महाराज के ग्रन्थ पढ़ते हैं । इस पूरी पृथ्वी पर सभी उन्हीं के ग्रन्थ पढ़ते हैं, तो उनसे ज़्यादा ज्ञानवान् गौड़ीय वैष्णव सन्त किसी ने भी अपनी आँखों से नहीं देखा ! अभी भी बूढ़े से बूढ़े लोग, जितनी भी उम्र है सबकी, वे कहते हैं, इनसे ज़्यादा ज्ञानवान् संत हमने कभी नहीं देखा !

यही प्रश्न हमने भी बाबाजी महाराज से पूछा था कि Iskcon के गुरु को छोड़कर, जब हम आपका आश्रय लेंगे, आपसे दीक्षा लेंगे, तो गुरु त्याग का अपराध लगेगा या नहीं लगेगा ?

तो बाबाजी महाराज ने बहुत सरल भाषा में कहा− त्याग का तो प्रश्न तब उठता है, जब पहले ग्रहण किया गया हो ! जब कोई चीज़ ग्रहण ही नहीं हुई, तो उसका त्याग कैसे होगा ?

बाबाजी महाराज ने कहा कि त्याग तो तब होगा, जब ग्रहण हुआ हो !

मतलब, यदि जब तक आप किसी प्रामाणिक परम्परा से जुड़े ही नहीं हैं, तो उसका त्याग कैसे हुआ ?
गुरु वे होते हैं जो स्वयं पहले किसी प्रामाणिक परम्परा से जुड़े होने चाहिये । जैसे किसी मन्दिर में गौरकिशोर दास बाबाजी, जगन्नाथदास बाबाजी और भक्तिविनोद ठाकुर एक ही परम्परा में रखते हैं, तो वह कोई प्रामाणिक परम्परा ही नहीं हुई क्योंकि भक्तिविनोद ठाकुर नित्यानन्द परिवार के हैं, गौरकिशोर दास बाबाजी अद्वैत परिवार के हैं ।

अब आप सोचेंगे कि यह परिवार क्या होता है ?
देखिये, हम संक्षिप्त में बताते हैं । गौड़ीय वैष्णव मतलब हमारी गुरु परम्परा द्वारा हमें महाप्रभु की सेवा में लगाया जाता है; राधा-कृष्ण की सेवा में भी गौड़ीय वैष्णव का एक स्वरूप होता है,और महाप्रभु की भी सेवा में भी ।

अब जैसे महाप्रभु के पार्षद हैं− नित्यानन्द, अद्वैताचार्य जी, गदाधर पण्डित, श्रीवास पण्डित; तो ये सब महाप्रभु की direct सेवा में जुड़े हुए हैं । वक्रेश्वर पण्डित, श्रीवास पण्डित, गदाधर पण्डित, ये सब भगवान् की direct सेवा मे जुड़े हुए हैं । इन्होंने अन्यों को दीक्षायें दी । नित्यानन्द प्रभु ने जिनको दीक्षा दी, वे नित्यानन्द परिवार के अन्तर्गत आ गये । अद्वैत प्रभु ने जिनको दीक्षा दी, वे अद्वैत परिवार के अन्तर्गत आ गये । गदाधर पण्डित ने जिनको दीक्षा दी, वे गदाधर परिवार के‌ अन्तर्गत आ गये ।

तो सभी परिवार ultimately किसकी सेवा में लगे हैं ? भगवान् गौरा महाप्रभु जी की ।
तो यदि कोई अद्वैत परिवार में है, उनके गुरु अद्वैत परिवार के हैं । जैसे मान लो, गौरकिशोर दास बाबाजी हैं, उनके गुरु अद्वैत परिवार के हैं । जो प्रामाणिक अटूट परम्परा में हैं, अगर वे लोग गुरु का त्याग करेंगे, तो निश्चित् रूप से गुरु त्याग का अपराध लगेगा ।

परन्तु जो आपने परम्परा बनायी हुई है−
एक में गौरकिशोर बाबाजी हैं अद्वैत परिवार के,
फिर जगन्नाथदास बाबाजी हैं नित्यानन्द परिवार के; यह कोई परम्परा नहीं है !
कैसे पता चले कि हम जिस परम्परा से जुड़े हैं, वह प्रामाणिक है या अप्रामाणिक ? Bonafide है या नहीं ?
सबसे पहले हमें यह देखना होगा, हमारी जो परम्परा है, क्या वह किसी परिवार से जुड़ी है या नहीं ?

भगवान् के धाम में उनकी सेवा हम कौन से परिवार के अर्न्तगत करेंगे ?
आप गौरा महाप्रभु के नित्य सेवक बनना चाहते हो ?
हाँ !
कैसे बनोगे ?

आपको एक प्रामाणिक परिवार से जुड़ना होगा । तो यदि आप नित्यानन्द परिवार से जुड़े हो, ज़रूरी नहीं कि आपको नित्यानन्द परिवार से जुड़ना होगा, आप अद्वैत परिवार से जुड़ो, आप गदाधर पण्डित से जुड़ो, श्रीवास पण्डित, नरोत्तम परिवार, जिससे मर्ज़ी जुड़ो, वह अटूट परम्परा होनी चाहिये । तो उसी chain में आप भगवान् के धाम में भी सेवा करोगे । सोओगे भी वहीं पर । नित्यानन्द प्रभु की परम्परा में हो, तो वहाँ पर सोओगे ।

नित्य नवद्वीप में रात्रि में जब शयन होता है, संकीर्तन होता है, तो नित्यानन्द प्रभु का जो रहने का स्थान हैं, जगन्नाथदास बाबाजी उसके साथ में निवास करते हैं । और सुबह भी जब उठते हैं, जब प्रातः लीला होती है, स्नान इत्यादि करके, जगन्नाथदास बाबाजी अपनी गुरु परम्परा के साथ मिलकर पहले भगवान् नित्यानन्द के पास जाते हैं और पूरा नित्यानन्द परिवार इकट्ठा होकर महाप्रभु के दर्शन करने के लिये जाता है । तो जगन्नाथदास बाबाजी पूरे नित्यानन्द परिवार के साथ जाते हैं, महाप्रभु के दर्शन के लिये ।
उसी प्रकार से मान लो, गौरकिशोर दास बाबाजी हैं, तो वे रात को शयन कहाँ करते हैं ? नित्य नवद्वीप में श्रीवास आँगन में नित्य संकीर्तन होता है । गौरकिशोर दास बाबाजी श्रीवास आँगन में कहाँ शयन करते हैं ? अद्वैत प्रभु के साथ, श्रीवास आँगन में । और जब सुबह उठते हैं, फिर जब स्नान इत्यादि करके आते हैं, तो वे अपनी गुरु परम्परा के साथ पहले अद्वैताचार्य जी के पास जाते हैं । वे नित्यानन्द प्रभु के पास नहीं जाते । फिर वे सब अद्वैताचार्य के पास जाकर‌, अद्वैताचार्य के‌ आनुगत्य में, सब महाप्रभु के पास जाते हैं, महाप्रभु के दर्शन और सेवा के लिये ।

तो यदि आप सोचो कि अगर आपकी परम्परा में गौरकिशोर दास बाबाजी हैं, भक्तिविनोद ठाकुर हैं, जगन्नाथदास बाबाजी हैं, तो आप कौन से परिवार से जुड़कर महाप्रभु की सेवा में जाओगे ? क्योंकि गौरकिशोर दास बाबाजी की परम्परा में जगन्नाथदास बाबाजी नहीं हैं । भक्तिविनोद ठाकुर की परम्परा में गौरकिशोर दास बाबाजी नहीं हैं । तो आप कौन सी परम्परा में जुड़ोगे ?

जब तक आपको परिवार ही नहीं पता, तो प्रामाणिक परम्परा होती ही नहीं है ! यह अच्छे से समझ लो ! प्रामाणिक परम्परा है या नहीं, पहले जानो कौन सा अटूट परिवार है । जो Iskcon में हैं− भक्तिविनोद ठाकुर, गौरकिशोर दास बाबाजी, यह तो अटूट परिवार कोई एक हुआ ही नहीं, अलग-अलग परिवार के बड़े-बड़े महात्माओं को डाल दिया । तो निश्चित् रूप से जो परम्परा है, वह प्रामाणिक है ही नहीं !

जैसे अनन्तदास बाबाजी ने कहा था, यदि प्रामाणिक परम्परा ही नहीं है, तो गुरु प्रामाणिक परम्परा के साथ जुड़ा ही नहीं है, तो वह गुरु हुआ ही नहीं ! वे संस्थागत गुरु हो सकते हैं, प्रामाणिक परम्परा के गुरु नहीं हैं । गुरु त्याग का अपराध तब लगता है, जब आप प्रामाणिक परम्परा से जुड़े हो, और गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय के अन्तर्गत जब तक आप प्रामाणिक परिवार से नहीं जुड़े, तो प्रामाणिक परम्परा से जुड़ने का प्रश्न ही नहीं उठता !

इसलिये श्रील अनन्तदास बाबाजी महाराज ने कहा कि ग्रहण तो हुआ ही नहीं, तो त्याग कैसे होगा ?