I have anarthas,
can I do Rägänugä Bhakti?

भक्त− महाराज जी ! Iskcon Pune के एक भक्त हैं, राधामाधव दास । उनका प्रश्न आया है, कि जब भी वह अपने seniors या जो वहाँ के leaders हैं, उनसे रागानुगा भक्ति की बात करते हैं, तो उनको एक ही जवाब मिलता है कि अभी हमारे अन्दर बहुत सारे अनर्थ हैं, और हम रागानुगा भक्ति के लिये qualified भी नहीं हैं । तो उनका प्रश्न यह है कि हमारे अन्दर अनर्थ तो हैं, तो क्या हम वास्तव में qualified नहीं हैं रागानुगा भक्ति करने के लिये ? कृपया मार्गदर्शन करें ।

महाराज जी− प्रश्न यह है कि हमारे अन्दर अनर्थ हैं, तो क्या हम रागानुगा भक्ति कर सकते हैं या नहीं कर सकते ? क्योंकि हमारे अन्दर काम, क्रोध, लोभ हैं, तो क्या हम रागानुगा भक्ति कर सकते हैं या नहीं ?
श्रीचैतन्य चरितामृत में बहुत सुन्दर उत्तर दिया जा रहा है−
“एइ त साधन-भक्ति—दुइ त’ प्रकार ।
एक‘वैधी भक्ति’,‘रागानुगाभक्ति’ आर ॥”
श्रील कृष्णदास कविराज क्या कह रहे हैं ?
साधन भक्ति, यानी कि, जो practise की जाती है, जिसकी साधना की जाती है, दो प्रकार की भक्ति होती है । एक होती है वैधी भक्ति और एक होती है रागानुगा भक्ति ।

यानी कि, spontaneous नहीं होती है । रागानुगा भक्ति spontaneous भक्ति नहीं है ।
उसमें भी साधना करनी होती है । सखा बनने के लिये साधना करनी, भगवान् कृष्ण का दास बनने के लिये साधना करनी, यह एक अलग प्रकार की भक्ति होती है । कृष्ण की वात्सल्य रस में अलग प्रकार की साधना होती है ।

तो रागानुगा में भी साधना होती है, spontaneous नहीं होता ।
आप बात को समझो, चाहे रागानुगा भक्ति है, चाहे वैधी भक्ति है, दोनों में साधना है ।

हमारे अन्दर अनर्थ हैं, यह केवल हमारे अन्दर ही नहीं हैं । इस ब्रह्माण्ड में जितने भी साधक, जितने भी युगों में हुए हैं, कोई भी भक्ति किसी ने भी की हो, भगवान् राम की, नृसिंह भगवान् की, नारायण की, कृष्ण की, द्वारकाधीश की, सब साधकों में अनर्थ होते हैं । भक्ति करते हुए धीरे-धीरे अनर्थों की निवृत्ति होती है, फिर निष्ठा, रुचि, आसक्ति, भाव, प्रेम, सब प्राप्त होता है !

साधना मतलब ही है कि आपको अनर्थों की stage को cross करना होगा । इसलिये तो साधना कर रहे हो ।

भगवान् नारायण की प्राप्ति के लिये जो भक्ति की जाती है, उसे वैधी भक्ति कहा जाता है । यदि आप श्रीकृष्ण की प्राप्ति करना चाहते हो किसी भी रस में, कृष्ण के दास भी बनना चाहते हो, तो वह भी रागानुगा भक्ति है । कृष्ण का सखा बनना भी रागानुगा भक्ति है, कृष्ण का दास बनना भी रागानुगा भक्ति है, कृष्ण के साथ वात्सल्य रस में सम्बन्ध होना भी रागानुगा भक्ति है और कृष्ण की गोपी बनना भी रागानुगा भक्ति है ।

कृष्ण की, भगवान् की मञ्जरी बनना भी रागानुगा भक्ति है । तो जितने भी ये रस हैं, ये सभी अलग-अलग प्रकार की रागानुगा भक्ति हैं । रागानुगा भक्ति मतलब एक विशेष राग के अनुगत होकर जो हम भक्ति करते हैं । कोई वात्सल्य रस में उपासना करता है, वो रागानुगा भक्त है । और यदि कोई भगवान् का दास भी बनना चाहता है ब्रज में, तो वह भी रागानुगा भक्त है । वह वैधी भक्त नहीं है ।

आपको वैधी और रागानुगा भक्ति में confusion न हो । वैधी मतलब नारायण प्राप्ति के लिये और रागानुगा मतलब कृष्ण की प्राप्ति के लिये । स्पष्ट बताया जा रहा है−
“रागानुगामार्गे ताँरे भजे जेइ जन ।
सेइ जन पाय व्रजे व्रजेन्द्रनन्दन ॥”
जो रागमार्ग का पालन करते हैं, वे ब्रज में श्रीकृष्ण की प्राप्ति करते हैं, यह स्पष्ट बताया जा रहा है ।

और यह श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर द्वारा विरचित एक ग्रन्थ है− श्रीरागवर्त्मचन्द्रिका । इस ग्रन्थ में २.७ में स्पष्ट बताया जा रहा है−
अथ रागानुगाभक्तिमज्जनस्यानर्थनिवृत्तिनिष्ठारुच्यासक्त्यनन्तरं प्रेमभूमिकारूढ़स्य साक्षात्स्वाभीष्टप्राप्तिप्रकारःप्रदर्श्यते ।
आप समझ गए होंगे इसमें, बता रहे हैं, रागानुगा भक्ति में भी… यह कौन बता रहे हैं ? श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर ! हमारे कोई temple president नहीं बता रहे, हमारे कोई senior devotee नहीं बता रहे । यह आचार्य विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर बता रहे हैं, कि रागानुगा भक्ति में progress कैसे होती है । पहले अनर्थ निवृत्ति पार की जाती है । फिर निष्ठा आती है, फिर रुचि आती है, फिर आसक्ति आती है, फिर प्रेम प्राप्त होता है । उसके बाद प्राप्ति होती है, जिनके प्रति आपका प्रेम हुआ है, यानी कि श्रीकृष्ण भगवान् की ।

दोनों भक्ति में अनर्थ हों या न हों, वैधी भक्ति और नारायण भक्ति में purity का कोई matter नहीं करता । Impure रहते हैं सारे भक्त । चाहे आप सख्य रस के भाव में भगवान् कृष्ण के दास बनना चाहो, तो भी आपको अनर्थ निवृत्ति से गुज़रना पड़ेगा । आपके अन्दर काम, क्रोध, लोभ रहेंगे, चाहे आप भगवान् के सखा बनना चाहो या भगवान् कृष्ण के दास बनना चाहो । तो यह बिल्कुल गलत धारणा है कि ‘अनर्थ निवृत्ति cross हो जाये, उसके बाद मैं रागानुगा भक्ति करूँगा !’

रागानुगा भक्ति मतलब कृष्ण की प्राप्ति किसी भी रस में करना चाहते हो, उस भक्ति को रागानुगा कहा जाता है । और हर भक्ति में, चाहे सखा बनना चाहो, चाहे दास बनना चाहें, सभी में काम, क्रोध लोभ मोह रहेंगे । श्रीरागवर्त्मचन्द्रिका में विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर यह स्थापित कर रहे हैं ।

ये stages हैं । भगवान् राम के भक्तों को भी इन stages से गुज़रना पड़ेगा । नृसिंह भगवान् के भक्तों को भी । अनर्थ निवृत्ति, निष्ठा, रुचि, आसक्ति, भाव, प्रेम− इन stages से सबको गुज़रना पड़ेगा । हमने सिर्फ यह decide करना है कि हम भगवान् की उपासना कौन से रस में करना चाहते हैं । Stages तो ये सभी उपासना में same हैं । हर सम्प्रदाय में आती हैं । यह बिल्कुल कुतर्क है, सही रूप से ज्ञान न होने की वजह से, कि ‘अनर्थ आप में हैं, आप तो रागानुगा भक्ति कर ही नहीं सकते ।’

अच्छा, एक बात बताओ ! ऐसा क्या है रागानुगा भक्ति में जो अनर्थ के साथ नहीं किया जा सकता ? हमारा आपसे यह प्रश्न है ।

मान लो, मैं कृष्ण भगवान् का दास बनना चाहता हूँ, रक्तक-पत्रक की तरह । कृष्ण भगवान् के दास बनने को रागानुगा भक्ति बोला जाता है, पहले तो यह समझो । हमारे अन्दर अनर्थ हैं, तो हम भगवान् कृष्ण के, रक्तक-पत्रक की तरह दास क्यों नहीं बन सकते ? आप हमें जवाब दो !

हमारे अन्दर अनर्थ हैं, काम, क्रोध, लोभ हैं; तो हम भगवान् नारायण के दास बन सकते हैं !
हमारे अन्दर काम, क्रोध, लोभ हैं, तो भगवान् राम के दास हम बन सकते हैं !
तो रक्तक-पत्रक की तरह भगवान् कृष्ण के दास क्यों नहीं बन सकते, अगर हमारे अन्दर काम, क्रोध, लोभ हैं तो ?!?

कृष्ण के दास बनना, इसे रागानुगा भक्ति कहते हैं । यह वैधी भक्ति थोड़े न है ! वैधी मतलब जो नारायण की प्राप्ति के लिये की जाती है । हम कृष्ण के दास हैं ।

चलो आपकी बात मान ली, हम नहीं बनना चाहते राधाकृष्ण के सेवक । हम कृष्ण के ही दास बनना चाहते हैं, रक्तक-पत्रक की तरह, तो क्या उसके लिये हमें अनर्थ निवृत्ति पहले cross करनी होगी, तब हम भगवान् के दास बनेंगे ?? इसका क्या मतलब हुआ ? कोई सिर-पैर है इस बात का ??

अच्छा मान लो, हम भगवान् के सखा बनना चाहते हैं, उनके साथ हमेशा खेलना चाहते हैं । तो यदि हमारे अन्दर काम, क्रोध, लोभ हैं, तो आप कह रहे हो नारायण की भक्ति के लिये qualified हैं, भगवान् के सखा बनने या दास बनने के लिये हम qualified नहीं हैं ? जबकि विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर कह रहे हैं, ‘हर प्रकार की भक्ति में अनर्थों को पार करना ही पड़ेगा ।’ सारे अनर्थों के साथ ही साधना की जाती है ।

आप गलतफहमी में हो, आप रागानुगा भक्ति को spontaneous भक्ति बोलते हो । Spontaneous भक्ति रागानुगा भक्ति नहीं होती है । ललिता-विशाखा, यशोदा-नन्द महाराज, इन लोगों की भक्ति spontaneous है, नित्य सिद्ध पार्षदों की ! हम लोग जो साधना करते हैं, वह भक्ति प्राप्त करने के लिये कर रहे हैं । उनके हृदय में प्रेमभक्ति का जो चन्द्र है, उसकी हम एक कणिका प्राप्त करना चाहते हैं । उनकी spontaneous भक्ति की कणिका प्राप्त करने के लिये जो भक्ति की जाती है, उसे रागानुगा भक्ति कहते हैं ।

आप भगवान् के सखा बनना चाहते हो, तो वह भी रागानुगा भक्ति है । रक्तक-पत्रक की तरह दास बनना चाहते हो, तो वह भी रागानुगा भक्ति है । हर प्रकार की भक्ति में अनर्थ रहेंगे । ये wrong logics हैं ।