How Bhoga is offered..
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भक्त – महाराज जी एक भक्त का प्रश्न था, की गौड़ीय वैष्णव ठाकुर को किस प्रकार से भोग अर्पण करते हैं ? कृपया मार्गदर्शन कीजिये ।
महाराज जी – भोग कैसे लगता है , भोग लगने के ३ स्तर होते हैं । सबसे पहले… क्योंकि हमारे दो स्वरूप हैं, एक गौरा महाप्रभु के दास का और एक राधाकृष्ण की सेविका के रूप में । तो सबसे पहले, भोग राधाकृष्ण को नहीं लगता सीधा…जैसे बोलने में आता है…राधामाधव महाप्रसादम् की जय, राधाश्यामसुन्दर की… ।
ऐसा नहीं होता कि भोग लगाया, सबको हो गया…ऐसा नहीं है । पहले केवल और केवल, ध्यान दें ! श्रीकृष्ण को भोग अर्पण होगा, वो भी मन्त्र के द्वारा । ‘श्रीकृष्णाय नमः’ करके बीज मन्त्रों के द्वारा भोग अर्पण होता है केवल और केवल श्रीकृष्ण को । पहले उनको खाने…पाने दिया जायेगा । लड्डु हों…चावल हों…वो पायेंगे । उन्होंने पा लिया…फिर… ।
आप जब भोजन पाते हो, क्या करते हो ? कुल्ला करते हो । वो ही हम कुल्ला…फिर हम श्रीकृष्ण को कुल्ला करवायेंगे । श्रीकृष्ण, आप कुल्ला कर लो । हम आपको सरलार्थ में बता रहे हैं । कुल्ला करने के बाद क्या करते हो ? मुँह तो गीला होता है न, मुँह पोंछते…फिर मुँह पोंछ देते हैं ।‘ एतत् प्रोछण वस्त्रम्’− ये हो गया प्रथम ।
उसके बाद, श्रीकृष्ण का जो प्रसाद है, ये राधारानी और ललिता-विशाखा को दिया जाता है…सखियों को । हे राधारानी ! हे सखियों ! ठाकुर का प्रसाद आप पाओ । राधारानी कृष्ण प्रसाद को छोड़कर कुछ नहीं पाती । ऐसा नहीं होता कि इकट्ठे भोग लगा दो…ऐसा नहीं होता…नहीं होता…नहीं होता… सिद्धि तो बाद में मिलेगी हरे कृष्ण जप करने वालों को, पहले भोग लगाना तो सीख लें । सिद्धि की बात तो छोड़ दो, कृष्ण प्रेम…ये सब छोड़ दो…ये बहुत बड़ी बात है…आपके लिये । श्रीकृष्ण का प्रसाद राधा व सखियों को अब अर्पित होता है । फिर जब उन्होंने पाया, तो वो क्या करेंगी ? वो भी तो कुल्ला करेंगे । हम उनको फिर कुल्ला करवाते हैं । राधारानी, ललिता-विशाखा कुल्ला कर लो । फिर उनका मुँह पोंछते हैं…हो गया ।
उसके बाद, जो गुरु मञ्जरी वर्ग है, जो रूप मञ्जरी वर्ग है..अष्ट मञ्जरी हैं, उन सबको राधा प्रसाद…मञ्जरी…जैसे कृष्ण के प्रसाद के अलावा राधारानी कुछ नहीं पाती, उसी प्रकार से मञ्जरियाँ जो हैं, वो राधारानी की प्रसादी को छोड़कर कुछ नहीं पाती हैं । तो राधा…
एतत् राधा प्रसादी नैवेद्यं रूपरति आदि मञ्जरीवर्गेभ्यो नमः ।
एतत् राधा प्रसादी नैवेद्यं गुरुमञ्जरीवर्गेभ्यो नमः ।
ये तीसरी stage होती है जो रूप मञ्जरी वर्ग और गुरु मञ्जरी वर्ग को अर्पित किया जाता है, फिर वैसे ही कुल्ला करवा कर मुँह पोंछ दिया ।
तो साथ में, सबसे पहले तीनों प्रभु को अर्पित किया जाता है… महाप्रभु निताइ और अद्वैत । ऐसा नहीं है कि बोलें– थाली रख दी…पञ्चतत्त्व भी आ गये…ये पञ्चतत्त्व महाप्रसाद हो गया… । ऐसा नहीं है ।
आप तो अर्चन में हो…आप तो पुजारी थे न Iskcon में पहले… ? तो गौर-निताइ की पूजा की थी आपने… ?
भक्त– हाँ ।
महाराज जी– हाँ, तो आप तो सीधा भोग लगाते होंगे ?
भक्त– हाँ ।
महाराज जी– भोग सीधा नहीं लगता । पहले ये Iskcon में थे और अब यहाँ आश्रित हुए हैं । तो पहले तीन प्रभु को भोग लगता है…महाप्रभु, निताइ और अद्वैत । तो तीनों को भोग लगा । फिर उन्होंने…उनको…उन्होंने पाया । फिर उन्होंने क्या किया ? उनको कुल्ला करवाया और मुँह पोंछ दिया ।
फिर तीनों प्रभु का जो प्रसाद होता है, ये हरे कृष्ण जप करने वालों को यह आश्चर्य की बात सुनने में आयेगी कि निताइ, गौर और अद्वैत का प्रसाद पाते हैं गदाधर और श्रीवास ।
गदाधर श्रीवासादि भक्तवृन्देभ्यो नमः ।
गदाधर, श्रीवास और सब… स्वरूप दामोदर, राय रामानन्द…इन सबको प्रसाद मिलता है तीनों प्रभु का । इन्होंने पाया, यह second stage में offering हो रही है, उनको कुल्ला करवा रहे हैं और फिर मुँह पोंछ रहे हैं ।
उसके बाद… वही…उसके बाद रूप गोस्वामी वर्ग जो हैं…सनातन-रूप अष्ट गोस्वामी जो हैं…अष्ट गोस्वामी… । षड्गोस्वामी नहीं होते, अष्टगोस्वामी होते हैं । अष्टगोस्वामी और गुरु वर्ग को प्रसाद मिलता है । किनका महाप्रसाद ?
गदाधर श्रीवास का । पहले महाप्रभु…तीनों प्रभु, फिर गदाधर-श्रीवास, और फिर रूप गोस्वामी…सब वर्ग का और गुरु वर्ग का, फिर उसके बाद हम लोग प्रसाद पाते हैं ।
जो अटूट परम्परा से जो भी जुड़े हैं उनको तो, उनके तो बच्चो को भी clear है । ये हमारे जो शिष्य लोग हैं इनके तो छोटे बच्चों को भी पता है, पाँच-पाँच साल के, उनको भी पता है की हम महाप्रभु के दास हैं, और राधा-कृष्ण के, उनको भी भोग लगाना आता है । क्यूंकि रोज़ देखते हैं, सीखते हैं ऐसे भोग लगाते हैं ।
तो जो हरे कृष्ण महामन्त्र जप कर रहे हैं, आप कृपया भोग तो वैसे लगायें जैसे भक्तिविनोद ठाकुर लगाते थे, जैसे जगन्नाथदास बाबाजी लगाते थे, जैसे गौरकिशोर दास बाबाजी लगाते थे…इसमें तो कोई झगड़ा ही नहीं है । सभी सिद्ध महात्मा लगाते थे ।
हम तो…हम तो खुद ही कह रहे हैं…सभी सिद्ध महात्मा थे । तो जैसे वे भोग लगाते थे और जैसे उन्होंने शिक्षायें दी… जो जगन्नाथदास बाबाजी की समाधि है, आप देख सकते हैं… यहाँ पर है… और भक्तिविनोद ठाकुर के हम कितने शिष्यों को भी जानते हैं, पर शिष्यों को । वे अभी भी ऐसे ही भोग लगाते हैं जैसे हम आपको बता रहे हैं । तो कम से कम, वैसे भोग तो लगायें जो ५०० साल से जैसे भोग लगता है ।