Hindi Granthas
1-गौड़ीय वैष्णव बनिये
यह ग्रन्थ “गौड़ीय वैष्णव बनिये”— गौड़ीय आचार्यों की शिक्षाओं तथा
सम्पदा को प्रकाशित करता है। यह ग्रन्थ वास्तविक गौड़ीय वैष्णव सिद्धान्त का अति सरल रूप से उल्लेख करता है । यद्यपि यह ग्रन्थ छोटा प्रतीत हो सकता है, किन्तु वास्तव में यह अति गहन है… यह वास्तव में अनेक गौड़ीय शास्त्रों का “मर्म” है, “रत्नों का भण्डार” है ।
यह ग्रन्थ वास्तव में हमें यह अनभवु करवाएगा कि गौड़ीय वैष्णव बनना कोई समद्धि नहीं… कोई विकल्प नहीं, अपित नितान्त आवश्यकता है।
जो सर्वोच्च आस्वादन प्राप्त करना चाहता है, उसके लिए केवल यही एक और एकमात्र उपाय है।
कभी न कभी व्यक्ति निश्चित रूप से यह अनुभव करेगा, कि यह पवित्र ग्रन्थ उसके
सर्वोच्च रसास्वादन करने के परम आकांक्षीय, नित्य अभिलषित स्वप्न के मार्ग पर चलने के लिए“मार्गदर्शक” है। यह शास्त्र सभी के लिए एक “अमल्यू सम्पदा” है!
इस ग्रन्थ का सत्यता से संग करने से,
हम निश्चित रूप से,
वास्तविक गौड़ीय वैष्णव बन पाएँगे!!
2-समष्टि गुरु
यह ग्रन्थ स्पष्टीकरण करता है−
—समष्टि गुरु आपकी भक्ति साधना में किस प्रकार प्रत्यक्ष रूप से उपस्थित हैं?
—साधनकाल में समष्टि गरु की भूमिका अति महत्त्वपूर्ण है, विशेषकर जब आध्यात्मिक दीक्षा गुरु का तिरोभाव होता है ।
हरे कृष्ण जप करने वाले भक्तों के लिए यह अति महत्वपूर्ण ग्रन्थ, चक्षु खोलने वाला होगा। इस सदुर्लभ ज्ञान के विनियोग से, निश्चित रूप से नित्य व्रज में श्रीश्रीराधाकृष्ण की प्रत्यक्ष निजी सेवा प्राप्त होगी तथा नित्य नवद्वीप में श्रीगौरांग की प्रत्यक्ष सेवा भी प्राप्त होगी ।
3. नित्य नवद्वीप
यह ग्रन्थ “नित्य नवद्वीप” सर्वोच्च… नवद्वीप धाम का सुन्दर निरूपण करता है… जो धाम वेदों की सीमा से परे है… जहाँ ब्रह्मा तथा शिव आदि भी प्रवेश नहीं कर सकते… तथा जो सृष्टि के विनष्ट होने के उपरान्त भी नष्ट नहीं होता ।
ब्राण्ड के अरबों-खरबों लोकों में केवल एक नवद्वीप धाम है, भगवान् महाप्रभु का धाम… तथा जहाँ उनकी कृपा के बिना किसी का प्रवेश नहीं हो सकता ।
समस्त ब्रह्माण्ड में लाखों भक्त श्रीमन् महाप्रभु की उपासना कर रहे हैं, गौड़ीय वैष्णव हैं, तथापि दुर्भाग्यवश, वे महा-महिमामण्डित श्रीनवद्वीप धाम की महिमा से अनभिज्ञ हैं ।
यह ग्रन्थ अत्यन्त मूलभूत प्रश्नों के उत्तर देगा−
प्रश्न १ − नित्य नवद्वीप में क्यों प्रवेश करें ?
प्रश्न २ − नित्य नवद्वीप में किस प्रकार प्रवेश करें ?
प्रश्न ३ − नित्य नवद्वीप किस प्रकार दिखता है ?
प्रश्न ४ − महाप्रभु की अष्टकालीय लीला किस प्रकार होती है ?
प्रश्न ५ − नित्य नवद्वीप में श्रीमन् गौरा महाप्रभु की सेवा अहर्निश किस प्रकार कर सकते हैं ?
4. Prarthnamrit Tarangini
यह ग्रन्थ ‘ श्रीश्रीप्रार्थनामृत तरंगिणी ’ गोवर्धन निवासी सिद्ध श्रीकृष्णदास बाबाजी महाराज का भक्तसमाज के लिये एक अपरूप अवदान है । इसमें अतुलनीय रूप से श्रीगौरांग महाप्रभु व श्रीश्रीराधामाधव की अष्टकालीन लीला का संक्षिप्त वर्णन है । इस ग्रन्थ के अनुशीलन से निशान्त लीला से नक्त लीला पर्यन्त श्रीमन् महाप्रभु तथा श्रीश्रीराधामाधव की नित्य लीला का माधुर्य वैभव महाजनों के अनुभव के माध्यम से अनुभूत होगा एवं साधक की स्वीय सिद्ध स्वरूप में सेवा लाभ की उत्कण्ठा लालसा उत्तरोत्तर वर्धित होकर परिशेष में उस सेवा में अनायास ही युक्त हो पायेंगे ।
श्रीश्रीशचीनन्दन जी महाराज के मार्गदर्शन में KARM भक्तवृन्द द्वारा इस ग्रन्थ का हिन्दी रूपान्तरण सम्पन्न हो पाया है ।
5. आनन्द
आनन्द, नये युग की प्रायः प्रत्येक कार्यशाला का एवं प्रायः प्रत्येक स्वावलम्बन सेमिनार का केन्द्रीय विषय है । आनन्द समस्त शास्त्रों का सार है । आनन्द ही है जिसकी उपस्थिति किसी को उत्साहित करती है व सजीव अनुभव करवाती है । किन्तु−
* आनन्द क्या है ?
* आनन्द कैसे प्राप्त किया जा सकता है ?
* सब कुछ करते हुए भी, सब कुछ प्राप्त होने के बाद भी, मैं अभी भी दुःखी क्यों हूँ ?
यह ग्रन्थ हमारे सभी पूछे जाने वाले एवं न पूछे जाने वाले प्रश्नों के भी उत्तर प्रदान करेगा… व सभी की नित्य अभिलषित चिर वाञ्छित आनन्द प्राप्ति की खोज को समाप्त करेगा ।
यह वास्तव में सम्पूर्ण मानवता को आविष्ट कर देगा अनन्त सुख के सागर में, आनन्द में… सदा के लिये… !!!
इसमें कोई संशय नहीं…!
6. निताई भक्ति – गहन आवश्यकता
श्रीमन् नित्यानन्द प्रभु के पादपद्मों में प्रेमाभक्ति अत्यन्त आवश्यक है, कारण− वह प्रेमाभक्ति ही श्रीमन् गौरा महाप्रभु का सन्तोष विधान करती है, और उसके फलस्वरूप व्रज भजन में सिद्धि अनुदान करती है, अर्थात् श्रीमन् नित्यानन्द प्रभु की विशेष कृपा एवं आशीर्वाद से साधक श्रीराधाकृष्ण के (रहस्यमय जगत् में) प्रवेश-प्राप्ति लाभ कर उनकी सर्वाधिक अन्तर सेवा प्राप्त करता है ।
मन के संयोग के साथ श्रीमन् नित्यानन्द प्रभु के नाम का जप करना, सम्पूर्ण हृदय से श्रीमन् नित्यानन्द प्रभु के चरणों में प्रार्थना ज्ञापन करना एवं हृदय से नित्यानन्द मन्त्र एवं नित्यानन्द गायत्री करना− ये परम आवश्यक हैं, केवल नित्य नवद्वीप में प्रवेश प्राप्ति के लिये ही नहीं, अपितु ये नित्य वृन्दावन में प्रवेश प्राप्ति के लिये भी अनिवार्य हैं ।
जो कोई भी श्रीमन् नित्यानन्द प्रभु के नाम, रूप एवं गुणों में स्वयं को आत्मसात करता है, समस्त गुह्य तत्त्व सिद्धान्त उसके हृदय में प्रकाशित होंगे, और वह युगल सरकार श्रीश्रीराधामाधव की अन्तर लीलाओं में प्रवेश प्राप्त कर धन्य होगा ।