Guru’s Pranama Mantra:
namo om vishnu padaya

भक्त− महाराज जी ! Iskcon में जो यह प्रणाम मन्त्र बोला जाता है, ‘नमः ॐ विष्णुपादाय..’, क्या इसका प्रचलन प्रारम्भ से ही था, या अभी कुछ वर्ष पूर्व ही इसका प्रचलन हुआ है ?

महाराज जी− यह गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय ५०० वर्ष से भी ज़्यादा पुराना है और सभी प्राचीन परम्परायें जो हैं, अभी भी हैं, जो ५०० वर्ष से चलती आ रही हैं । आप नवद्वीप जाओगे, तो भी आपको ये परम्परायें मिलेंगी । आप जगन्नाथ पुरी चले जाओ, आप वृन्दावन चले जाओ, राधाकुण्ड चले जाओ, सभी परम्परायें आपको मिलेंगी; जो प्राचीन साधु संत हैं, मिलेंगे । और हमने स्वयं जाकर देखा है, और हमने सबसे बात भी की है । किसी भी गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय के किसी भी संत का कोई प्रणाम मन्त्र नहीं होता है । ‘नमः ॐ विष्णुपादाय..’ यह कोई प्रणाम मन्त्र नहीं होता है । यह सिर्फ invent किया गया है । यहाँ भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर के बाद में, यहीं से invent हुआ है ।

अब Iskcon या भक्तिसिद्धान्त जी ने तो भक्तिविनोद ठाकुर का ही प्रणाम मन्त्र बनाया है । आप जानकर हैरान हो जायेंगे कि भक्तिविनोद ठाकुर के जो निजी पुत्र हैं, ललिता प्रसाद ठाकुर, जो उनके अपने पुत्र हैं, जिनको उन्होंने दीक्षा दी है, वह भी ऐसा कोई प्रणाम मन्त्र नहीं करते, ‘नमः ॐ भक्ति विनोदाय..’, ऐसा कुछ भी नहीं करते, स्वयं के पुत्र ! और उनकी परम्परा में भी उनका कोई प्रणाम मन्त्र नहीं है । आज तक भक्तिविनोद ठाकुर की परम्परा चल रही है । उनके शिष्य हैं, उनके शिष्यों के शिष्य हैं, ऐसे उनके वहाँ भी कोई प्रणाम मन्त्र नहीं है । गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय में किसी भी गुरु का कोई प्रणाम मन्त्र नहीं होता ।

जो प्रणाम करते हैं, आदर भाव से, वह इस प्रकार है−
“अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन-शलाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥”

“मैं गुरुदेव को प्रणाम करता हूँ, जो मेरी अज्ञानता दूर करते हैं और मेरे बन्द नेत्रों को खोलते हैं ।” इस भाव से प्रणाम किया जाता है गुरुदेव को । गुरुदेव का कोई भी प्रणाम मन्त्र नहीं होता ।

और प्रणाम मन्त्र से भोग लगाना, ‘नमः ॐ विष्णु पादाय..’ से भोग लगाना, यह बिल्कुल अशास्त्रिक है । बीज मन्त्र से भोग लगाया जाता है, न कि प्रणाम मन्त्र बना के, ‘नमः ॐ विष्णुपादाय..’ करके भोग लगाया जाता है । ऐसे भोग नहीं लगाया जाता है ।

हम यह नहीं कह रहे कि आप हमारी बात सुनें या मानें । Iskcon आदि संस्थाओं में कहते हैं कि बाहर मत जाओ । हम तो कह रहे हैं कि बाहर जाकर आप खुद देखें । हमारी बात आप मत समझें । आप खुद नवद्वीप जायें, वृन्दावन जायें, राधाकुण्ड जायें, जगन्नाथ पुरी जायें, जहाँ गौड़ीय वैष्णव प्राचीन काल से भक्ति कर रहे हैं । आप खुद देखोगे, न आपको कोई ऐसा प्रणाम मन्त्र मिलेगा, न कोई ऐसी भोग लगाने की विधि मिलेगी । ‘नमः ॐ विष्णुपादाय..’ करो, तीन बार बोलें, ‘नमो महा-वदान्याय..’, भोग लगाने की ऐसी कोई विधि नहीं है ।

भोग लगाने की विधि क्या है ?
पहले भोग कृष्ण को लगता है । राधाकृष्ण को इकट्ठे भोग नहीं लगता । पहले बीज मन्त्र द्वारा, जो दीक्षा में बीज मन्त्र मिलते हैं, उनसे श्रीकृष्ण को भोग अर्पित किया जाता है । श्रीकृष्ण ने जब पा लिया, फिर उन्हें कुल्ला करा लिया, उनका मुख प्रक्षालन, सब कर लिया, फिर वह प्रसाद, राधारानी को प्रसाद मिलता है ।
पहली बात है, राधारानी को भोग नहीं मिलता, उनको प्रसाद मिलता है । फिर राधारानी और सखियाँ प्रसाद पाती हैं श्रीकृष्ण का । जब राधारानी, सखियाँ पाकर निवृत्त हो जाती हैं, उसके बाद वह प्रसाद मञ्जरियों को मिलता है, हमें मिलता है, यानि कि रूप-रति मञ्जरी को, हमारी गुरु मञ्जरी को, हमें मिलता है वह प्रसाद । तो, यह विधि है । ‘नमः ॐ विष्णुपादाय..’ ‘नमो महा-वदान्याय..’ यह कोई विधि ही नहीं है भोग लगाने की ।

आप सोचें ! आपने अपना जीवन अर्पण किया है ! कम से कम प्रसाद की विधि तो जान लें । कम से कम यह तो जान लें कि हम हर समय प्रणाम कर रहे हैं ठाकुरजी को, विग्रह को, तब भी हम ‘नमः ॐ विष्णुपादाय..’ कर रहे हैं । क्या ऐसा कोई करता है ? गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय छोड़िये, क्या किसी और सम्प्रदाय में भी ऐसा होता है ? कभी एक बार देखें तो सही ! Why become a blind or a fanatic follower ??

जाकर देखें ! मैं जो कर रहा हूँ, जहाँ मैंने अपना जीवन अर्पण किया है, क्या वह वास्तव में विधान के अनुसार, सब आचार्यों के विधान के अनुसार है या कपोल-कल्पित है ?

पूरे गौड़ीय वैष्णव समाज में चले जाओ, Iskcon को, Gaudiya Math को, जो Gaudiya Math की संस्थायें हैं, उन्हें छोड़ के कहीं भी किसी के गुरु का प्रणाम मन्त्र नहीं है ।

कितने सिद्ध गुरु हुए हैं, कितने सिद्ध गुरु हुए हैं ! किसी का कोई प्रणाम मन्त्र नहीं है ।

जगन्नाथदास बाबाजी महाराज की समाधि है । नवद्वीप में कोई भी जा सकता है, आप वहाँ जाकर देखो कि उनका कोई भी प्रणाम मन्त्र लिखा है कहीं ? क्या उनकी समाधि पर भी उनका प्रणाम मन्त्र है ? कोई है ही नहीं, तो कोई करेगा क्यों ?

बनाने को तो आप कुछ भी बना सकते हैं । न कोई गौरकिशोर दास बाबाजी का प्रणाम मन्त्र है, न भक्तिविनोद ठाकुर का प्रणाम मन्त्र है, किसी का कोई प्रणाम मन्त्र नहीं है । अगर प्रणाम मन्त्र ही है, तो भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर के अनुयायियों से पूछना चाहिये कि गौरकिशोर दास बाबाजी कौन सा प्रणाम मन्त्र करते थे अपने गुरु का ?

बताओ गौरकिशोर दास बाबाजी कौन सा प्रणाम मन्त्र करते थे, बताओ ?? और भक्तिविनोद ठाकुर कौन सा प्रणाम मन्त्र करते थे ?? जगन्नाथदास बाबाजी कौन सा प्रणाम मन्त्र करते थे ?? फिर वह प्रणाम मन्त्र भी बता दो कौन सा है और वह भी तो लिख दो । आप इतनी respect दे रहे हो प्रणाम मन्त्र करके, तो यह भी तो respect दिखायें कि गौरकिशोर दास बाबाजी, जो भक्तिसिद्धान्त जी के गुरु हैं, वे कौन सा प्रणाम मन्त्र करते थे ? यह वर्णन तो बताओ । हम उनकी समाधि पर जाकर आपको दिखा देंगे कि गोपाल भट्ट गोस्वामी का कोई प्रणाम मन्त्र नहीं होता । कोई परम सिद्ध क्यों न हो ! गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय में या किसी भी सम्प्रदाय में कोई गुरु का प्रणाम मन्त्र नहीं होता । हम इतने सम्प्रदायों के सन्तों को जानते हैं । कोई प्रणाम मन्त्र नहीं होता गुरु का । यह बिल्कुल कपोल कल्पित है ।