गौड़ीय वैष्णवों की मंगला आरती

भक्त− महाराज जी ! किन्हीं भक्त ने प्रश्न किया था हमसे कि वह कई सालों से Iskcon में मंगला आरती attend कर रहे हैं और वहाँ पर उन्होंने बताया कि मंगला आरती में “संसार दावानल” गाया जाता है । तो उनका प्रश्न है कि क्या यह सही है ? कृपया करके मार्गदर्शन करें ।

महाराज जी− देखिये, जब प्रातः बेला है, उसमें गुरु अष्टकं करना, गुरु की महिमा गान करना ही चाहिये…कोई हानि नहीं है । विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर कहते भी हैं कि करना चाहिये । अच्छा है…कर सकते हैं । पर हमनें यही प्रश्न अपने गुरुदेव, श्रील अनन्तदास बाबाजी महाराज से भी किया था । हमने बोला…बाबाजी ! Iskcon में मंगला आरती के समय “संसार-दावानल-लीढ-लोक…” होता है ।

फिर उसके बाद पञ्चतत्त्व मन्त्र होता है ।
फिर उसके बाद हरे कृष्ण महामन्त्र होता है ।
फिर मंगला आरती शेष हो जाती है ।
तो बाबाजी ने कहा− संसार दावानल, हरे कृष्ण, पञ्चतत्त्व होता है ?
हमने कहा− जी बाबाजी ।
तो बाबाजी ने पूछा कि मंगला आरती नहीं होती ?
हमने कहा− बाबाजी, “संसार दावानल…” होता है, पञ्चतत्त्व मन्त्र होता है उनका, हमारे वाला नहीं, पञ्चतत्त्व मन्त्र उनका होता है और हरे कृष्ण महामन्त्र होता है, इसी को ही मंगला आरती बोला जाता है ।
बाबाजी ने कहा− मंगला आरती नहीं होती ? यह तो गुरु अष्टकं है ।
हमने कहा− है तो गुरु अष्टकं, पर यही मंगला आरती होती है ।

बाबाजी ने कहा− यह तो गुरु अष्टकं है, यह मंगला आरती थोड़ा न है ! मंगला आरती तो अलग पद होता है । राधाकृष्ण की मंगला आरती करेंगे, तो राधाकृष्ण का पद-गान किये बिना मंगला आरती कैसे होगी ? और अगर आप गौर निताइ को ठाकुर रख रहे हैं, तो उनका पद-गान अलग होता है ।

हमारे यहाँ तो हम करते हैं मंगला आरती…राधाकृष्ण की, गौर की भी अलग पद-गान से करते हैं ।
बाबाजी ने कहा कि गुरु अष्टकं कर सकते हैं सुबह, पर मंगला आरती तो करो । Iskcon के भक्तों से पूछो कि आप गुरु अष्टकं करते हो, तो मंगला आरती करते हो ? तो वो कहते हैं कि विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर ने कहा है…तुम गुरु अष्टकं करो सुबह-सुबह, प्रेमभक्ति प्राप्त होगी ।

अच्छी बात है, पर विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर ने यह कब कहा है कि मंगला आरती की जगह इसको करो । यह भी उन्होंने लिखा है, कि मंगला आरती मत करना, इसकी जगह गुरु अष्टकं करना ? साथ में करने में तो कोई हानि नहीं है । पर मंगला आरती ही नहीं करोगे इष्टदेव की ? जिनकी आरती करोगे…उनके बारे में कोई गुणगान नहीं, कोई बातचीत नहीं । हैरानगी की बात है !

Iskcon के अलावा ऐसी मंगला आरती पूरे विश्व में कहीं नहीं होती…कि आप जिस ठाकुर की सेवा कर रहे हो, उनके बारे में कुछ बोला ही नहीं जा रहा…कि आपकी आरती हो, बलिहारी जाऊँ आप पर, कुछ भी नहीं बोलते ।

हमारे यहाँ तो यही आरती होती है गौर निताइ की, तीनों प्रभु की और उसी प्रकार से पद-गान होते हैं हमारे ।

आपको स्पष्ट बतायें, अगर Iskcon में केवल यही बात को accept कर लिया जाये कि हम मंगला आरती के पद-गान करेंगे, तो society collapse हो जायेगी !!

अब आप पद-गान करोगे राधाकृष्ण के, निताइ गौर के, और आपने साथ में बैठाया हुआ है सीता-राम-लक्ष्मण-हनुमान को भी और जगन्नाथ-बलदेव-सुभद्रा को भी, तो कितनी मंगला आरतियाँ करोगे ? और आरती में गाओगे कि मैं आपके अलावा किसी की सेवा नहीं चाहता । वो आरती खत्म होते ही सीता-राम की आरती…सीता-राम जी, मैं आपके अलावा किसी को नहीं चाहता । वह खत्म हुई, फ़िर नृसिंह भगवान् का भी same, हे नृसिंह भगवान् ! मैं आपके दर्शन के अलावा कुछ नहीं चाहता…जय हो आपकी, आपके अलावा किसी की सेवा नहीं चाहता । खत्म हुई, फिर जो और कोई बचे हुए होंगे, उनकी भी ऐसे ही करेंगे ।

Gaudiya Math में तो वराह-लक्ष्मी भी हैं, हमने अपनी आँखों से देखे हैं । वहाँ तो वराह-लक्ष्मी की भी करते हैं । भाई ! कितनों की मंगला आरती करोगे आप ?

दो-तीन घण्टे चाहिये होंगे आपको मंगला आरती करने के लिये । और question भी आयेगा…अभी मैंने इनको यही बात बोली थी कि आपके दर्शन के अलावा कुछ नहीं चाहता, मेरा कोई दीन ईमान भी है या नहीं ?

अगर आप Iskcon में मंगला आरती को ही introduce कर दो सिर्फ, तो society collapse हो जाती है !! आप भक्तों को अज्ञानता में रहना ही होगा, तभी आप Iskcon में continue कर सकते हो । आप मंगला आरती पद डाल दो, आप बताओ society कैसे continue करेगी ? सिर्फ इस बात का उत्तर दे दो हमें । कोई भी leader इस बात का उत्तर दे दो । कोई कहे कि हम continue कर लेंगे…अच्छा ! मंगला आरती पद डाल कर दिखा दो एक बार ।

एक चीज़ सोचिये, मैं राधाकृष्ण की मंगला आरती कर रहा हूँ और नृसिंह भगवान् की भी…और इनकी भी, फिर तुलसी आरती के बाद चाहिये तो सिर्फ राधाकृष्ण । इन सभी की रोज़ मंगला आरती कर रहा हूँ ।

क्यों कर रहा हूँ ? मन में आयेगा नहीं यह question ? Why I am doing what I am doing ? Question आयेगा अपने आप से । If I am a devotee of Rädhä Kåñëa, तो simple question है− मुझे सीता-राम-लक्ष्मण-हनुमान के विग्रह के सामने क्यों रोज़ आरती attend करनी है ? इसका उत्तर दे दो बस…अगर मैं राधाकृष्ण का भक्त हूँ । क्योंकि राधारससुधानिधि में बता रहे हैं प्रबोधानन्द सरस्वतिपाद –
“जाग्रत-स्वप्न सुषुप्तिषु स्फुरतु मे राधापदाब्जच्छटा ।”

चाहे जागृत अवस्था हो, चाहे स्वप्न हो, चाहे शयन हो, मुझे राधारानी की चरण छटा के अलावा हृदय में कुछ भी स्फुरण न हो । और आप तो जागृत में आरती करवा रहे हो किसी और की रोज़ ।

और रघुनाथदास गोस्वामी विलाप कुसुमाञ्जलि में कह रहे हैं कि राधारानी के बिना मुझे कृष्ण भी नहीं चाहिये अकेले ! आपको राधाकृष्ण के बिना सीता-राम-लक्ष्मण-हनुमान भी रोज़ चल रहे हैं…यह कौन सी सम्प्रदाय की उपासना है ?

और दूसरी बात जो हमने बतायी− मञ्जरियों को तो आपने नृसिंह भगवान् में बैठा दिया… वराह-लक्ष्मी में, सोचो । वराह भगवान् का शूकर रूप है । लक्ष्मी वराह हैं, अच्छी बात है । पर वहाँ मञ्जरियाँ क्या करेंगी ?

आप एक भी चीज़ अगर bonafide करोगे, तो आप Iskcon में नहीं रह सकते । आपके इतने सारे ठाकुर हैं । या तो आप Altar में आचार्यों को नहीं रखो । अगर आप आचार्यों को Altar में नहीं रखोगे, तो Altar पूरा नहीं होगा । आचार्यों को तो Altar में होना पड़ेगा न ? षड्गोस्वामी हो नहीं सकते । और कोई है नहीं…। आपका Altar ही पूरा नहीं हुआ । उसी Altar में गुरुदेव हैं और राधाकृष्ण की मञ्जरी भी हैं, वहीं गौर के दास, उसी Altar में वराह हैं, वहीं गुरुदेव को भी बैठा दिया…नृसिंह भगवान् के Altar में सबको बैठा दिया ।

जैसे मान लो, हम किसी के गुरु हैं…तो उन्होंने हमें नृसिंह भगवान् के Altar में बैठा दिया और सीताराम के भी Altar में बैठा दिया, फिर हमें बैठा दिया उन्होंने वराह-लक्ष्मी के Altar में । तो हम सामने खड़े हो गये…तो हम पूछेंगे नहीं क्या कि हमारा तो कोई लेना-देना ही नहीं…क्यों बैठाया तुमने वहाँ ? भाई ! जब हम पूछेंगे, तो क्या रूप सनातन गोस्वामी नहीं पूछेंगे ? मैंने तुम्हें इनकी उपासना दी थी ? मैंने तुम्हें ये मन्त्र दिये थे ?

अगर आप मंगला आरती पद-गान करोगे, तो आपकी Iskcon ki society तुरन्त collapse हो जायेगी । क्योंकि पद-गान से सबको यह स्पष्ट हो जायेगा कि मञ्जरी कौन हैं, और कौन कहाँ हैं…।