Eternal Tilaka of Siddha Saints CHANGED…!!

हमें तो यह भी नहीं पता कि जो हमारे आचार्य हैं, जो हमारी परम्परा है…वो…उनका परिवार कौन सा है, उनका तिलक कौन सा है । सबको हमने वो पीला तिलक लगा दिया ।

आप जानना चाहेंगे, गौरकिशोर दास बाबाजी कौन सा तिलक लगाते हैं ? तो उनकी जो वास्तविक समाधि है, प्राचीन मायापुर में…वहाँ पर आप जाकर देख सकते हैं । वो तिलक लगाते हैं ऐसा…। हमारा तो ऐसा…तीखे से में है, उनका गोल से में होता है, और वही तिलक जो है…रघुनाथदास गोस्वामी अद्वैत परिवार के हैं…। ध्यान दें…जो तिलक गौरकिशोर दास बाबाजी लगाते हैं, वही लगाते हैं जो रघुनाथदास गोस्वामी लगाते थे…

सोचिये ! अगर सामने आ जायेंगे गौरकिशोर दास बाबाजी, तो कितनी डाँट लगायेंगे । मेरा अद्वैत परिवार का तिलक है, इतना सुन्दर गोल सा और काला राधाकुण्ड की रज से मैं लगाता हूँ, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई कि तुमने मुझे पीला तिलक लगा दिया…वो भी तुलसी पत्ता डाल दिया नीचे । हिम्मत कैसे हुई ?

जगन्नाथदास बाबाजी वैसे ही डाँट लगायेंगे कि मैं नित्यानन्द परिवार का हूँ और तुमने मुझे तुलसी पत्ता डाल दिया ? हमने तुलसी पत्ता लगाया है नीचे क्या ? Ditto same तिलक लगाते हैं भक्तिविनोद ठाकुर भी और जगन्नाथदास बाबाजी भी । सोचो आप जो कर रहे हो…। Deity Worship मतलब है प्रत्यक्ष सेवा करना । मानो कि भक्तिविनोद ठाकुर वहाँ पर हैं आपके Altar में…साक्षात् हैं । जगन्नाथदास बाबाजी साक्षात् हैं और वे जो साक्षात्…वे जो तिलक लगाते हैं, वो आप उन्हें…। अच्छा अपना तिलक तो change कर ही रहे हो, सिद्ध महात्माओं का तिलक भी आप खुद change कर देते हो ! मतलब आपने तो जो करा अपने साथ सलूक, वो तो चलो जो किया, उसको you will have to repay. पर जो सिद्ध महात्मा हैं…तो उनका तिलक पता भी नहीं क्या है, वो भी अपने मनगढ़ंत तरीके से बना दिया…पीला…कोई तुलसी पत्ता…।

भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर से…उन्होंने जो किया…अच्छा है । भगवन् नाम किया, अच्छा है । पर अपने गुरु का तिलक कैसे कोई बदल सकता है…

Does it make any sense to anyone ? सिद्ध महात्माओं की सिद्धाई के साथ खिलवाड़…यह अपराध नहीं है ? हम प्रभुपाद के अलावा किसी को नहीं जानते…। गौरकिशोर दास बाबाजी महाराज यह तो जानो तिलक क्या लगाते हैं । भक्ति बाद में करना !

तुम पूजा तो करोगे थोड़ी, भोग तो लगाओगे । परम्परा में गौरकिशोर दास बाबा को रखोगे । अच्छा वो क्या यह तिलक लगाते थे…यह तो जान लो…यह तो जान लो… अच्छा philosophy मत सुनो । कान बंद कर लेना, कुछ मत सुनना । आँखों से देख लो कि वे तिलक कैसा लगाते हैं, वही लगाना शुरु कर दो । और फिर आप क्या करो ? यह भी जानो…जगन्नाथदास बाबा तिलक कैसे लगाते हैं ? हमारे जैसा लगाते हैं । उनको वो लगाना शुरु करो… और आपने यह कर लिया, तो आप proper गौड़ीय वैष्णव बनके ही रहोगे । कैसे ? सोचो आपने परम्परा बनायी हुई है । एक को आप यूँ तिलक लगा रहे हो, एक को यूँ लगा रहे हो, एक को तुलसी पत्ता लगा रहे हो− यह कौन सी परम्परा हुई ?

इसलिये हमारा निवेदन है कि कृपया १००-१५० वर्ष पूर्व चले जायें । मान लीजिये २०२३ नहीं है, ये १८२३ है । मानने में कौन से पैसे लगते हैं ? एक पैसा भी हमको आपसे नहीं चाहिये…न अभी, न कभी । २०२३ की जगह १८२३ है । बस जान लो कि कैसे Gauòéya Vaiñëavism पालन करता था सम्प्रदाय पूरा । सार बात यह है । कोई झगड़ा ही नहीं है और झगड़ा है, तो फिर समाधान सिर्फ हम ही दे पायेंगे आपको इन सब चीजों पर ।

कितना बड़ा अपराध है उनकी photo बना दी असली वाली, तिलक बना दिया अपने वाला ! कोई डर नहीं, न जानकारी, न डर, न आनुगत्य । अच्छा, इसको आप शिक्षा परम्परा कहते हो कि उनको follow करना तो छोड़ो…उनका तिलक भी मिटा दिया । उनको अपने आनुगत्य में डाल दिया । आनुगत्य तो हमें उनका करना चाहिये था भक्तिविनोद ठाकुर, जगन्नाथदास बाबा का । हमने उनको अपने आनुगत्य में डाल दिया… तो चलो तुम हमारे तिलक लगा लो । कोई सीमा है deviation की ? इसलिये हम ये ग्रन्थ लेकर आये− ‘Once Deviated Always Deviated’. ‘Once Deviated Always Deviated’. जिनका आनुगत्य स्वीकार हमें करना चाहिये था, उनको अपने आनुगत्य में ले आये । आप थोड़ा सोच कर देखो किस मात्रा के अपराध कर रहे हो और वो भी रोज़, निरन्तर, दिन-रात ।