Difference between
a Cult & Sampradäya

भक्त− महाराज जी ! Iskcon के एक भक्त हैं, उदयकृष्ण दास जी । उनका प्रश्न है कि जिस संस्था से जुड़े हुए हैं, कैसे पता चलेगा कि वह संस्था प्रामाणिक है या किसी व्यक्ति विशेष द्वारा चलाया गया एक धार्मिक समुदाय है ? कैसे पता चलेगा कि वह एक bonafide परम्परा है या एक cult है ?

महाराज जी− आपका प्रश्न है कि कैसे पता चले कि जहाँ से हम जुड़े हुए हैं, वह bonafide परम्परा है या cult है ?

यह जानने के लिये आपको दोनों बातें जाननी होंगी, उत्तर आपको मिल जायेगा । क्या दोनों बातें जाननी हैं, कि cult क्या होता है और सम्प्रदाय क्या होता है ?

Cult होता है किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा चलाया गया कोई मत । किसी को कोई चीज़ लगी कि इस प्रकार से धर्म का पालन करके भगवद् प्राप्ति होती है, उनको ऐसा लगा, तो यदि उनको कोई follow करता है, तो वह एक cult को follow कर रहा है ।

जो उस charismatic personality ने practices बतायी हैं, यदि हम उनको follow कर रहे हैं और वह किसी को follow नहीं कर रहे, इसका मतलब वह व्यक्ति cult है, वह cult को follow कर रहा है ।

अच्छा, सम्प्रदाय क्या होता है ?
सम्प्रदाय होता है− ‘सम्यक् प्रदायति इति संप्रदाय ।’

वह ज्ञान, वे practices, जो अनादि काल से पूरे सम्प्रदाय में चलती हुई आ रही हैं, यदि उसका कोई पालन करता है, तो वह प्रामाणिक सम्प्रदाय में है । यानी कि उसके गुरु भी वही follow करते थे, उनके गुरु भी वही follow करते थे, उनके गुरु भी, सब वही follow करते थे । यदि वही का वही, as-it-is follow करते हुए आ रहा है कोई भी ज्ञान, तो निश्चित् रूप से आप प्रामाणिक सम्प्रदाय में हैं ।

पर यदि केवल आप सिर्फ एक विशेष व्यक्ति की बात मान रहे हैं− जिनका मत-मतान्तर बाकी सबसे बिल्कुल अलग है, तो निश्चित् रूप से समझें कि आप cult में हैं ।

अब जैसे आपका प्रश्न है कि Iskcon के जो भक्त हैं, वे पूछना चाहते हैं कि Iskcon में हम हैं, तो यह प्रामाणिक सम्प्रदाय है या cult है ? तो आप खुद सोच लो कि भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर हैं या प्रभुपाद हैं, वे पीला तिलक लगाते थे ।

गौरकिशोर दास बाबाजी पीला तिलक नहीं लगाते थे,
जगन्नाथदास बाबाजी पीला तिलक नहीं लगाते थे,
भक्तिविनोद ठाकुर भी पीला तिलक नहीं लगाते थे,
तो तिलक साम्प्रदायिक तो नहीं है । ठीक है !

पञ्चतत्त्व मन्त्र, जो भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर करते हैं या प्रभुपाद करते हैं, वह है− श्रीकृष्णचैतन्य प्रभु नित्यानन्द श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौरभक्त वृन्द ।

यह पञ्चतत्त्व मन्त्र न भक्तिविनोद ठाकुर करते थे, न जगन्नाथदास बाबाजी करते थे, न गौरकिशोर दास बाबाजी करते थे ।
तो पञ्चतत्त्व मन्त्र भी जो है, सम्प्रदाय से नहीं कर रहे हैं ।
‘नमः ॐ विष्णुपादाय कृष्ण प्रेष्ठाय भूतले’ ऐसा कोई प्रणाम मन्त्र आज तक कभी भी गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय में नहीं हुआ । तो यह भी introduce किया गया है । यह भी सम्प्रदाय से प्रदान होता हुआ नहीं आ रहा, कि ऐसे प्रणाम मन्त्र होते हैं ।

भोग लगाने की विधि− ‘नमः ॐ विष्णुपादाय कृष्ण प्रेष्ठाय’ या ‘नमो महा वदान्याय’, गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय में ऐसे भोग कभी भी नहीं लगा ।

गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय में हमेशा भोग कैसे लगता है ? भक्तिविनोद ठाकुर कैसे भोग लगाते थे, जगन्नाथदास बाबाजी कैसे भोग लगाते थे और गौरकिशोर दास बाबाजी कैसे भोग लगाते थे ? आप यह जान लें कैसे भोग लगाते थे, फिर आप देख लीजिये क्या Iskcon, Gaudiya Math वैसे भोग लगा रहा है ? अगर नहीं लगा रहा, तो वह cult है; लगा रहा है, तो सम्प्रदाय है । आप जगन्नाथदास बाबाजी की समाधि पर जाकर देख लीजिये कि वहाँ कैसे भोग लगता है । अगर नहीं जा सकते, तो हम बता देते हैं । हम तो कितनी बार जा चुके हैं ।

गौड़ीय वैष्णव के दो स्वरूप होते हैं । एक नित्य नवद्वीप में, महाप्रभु के सेवक के रूप में, और एक ब्रज में युगल किशोर, राधाकृष्ण की सेविका के रूप में । क्या आपको यह स्पष्ट बताया गया है Iskcon या Gaudiya Math में कि आपके दो स्वरूप हैं ? यह भी नहीं बताया गया, तो निश्चित् रूप से यह cult ही है क्योंकि यह ABCD of Gauòéya Vaiñëavism है ।

मंगला आरती भी जो है, आप यह भी जाकर देख सकते हैं नवद्वीप में, जगन्नाथ पुरी में, वृन्दावन में मंगला आरती कैसे होती है ?

‘संसार दावानल’ करना केवल मंगला आरती नहीं है ।

मंगला आरती के पद हैं, जो जगन्नाथदास बाबाजी की समाधि पर भी होते हैं और जो गौरकिशोर दास बाबाजी महाराज की वास्तविक समाधि है, वहाँ पर भी होते हैं और पूरे नवद्वीप, पूरे ब्रज, पूरे राधाकुण्ड, पूरे जगन्नाथ पुरी में वही पद होते हैं । यदि वही पद करे जा रहे हैं, तब तो सम्प्रदाय है, नहीं तो नहीं है ।
जनेऊ पूरे गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय में, Iskcon और Gaudiya Math के अलावा कोई नहीं डालता और यह साम्प्रदायिक जनेऊ नहीं है । जनेऊ सम्प्रदाय से प्राप्त नहीं हो रहा ।

संन्यास दण्ड भी सम्प्रदाय से प्राप्त नहीं हो रहा । न गोस्वामी ने कभी दण्ड लिया, न जगन्नाथदास बाबा ने लिया और कहा जाता है कि भक्तिविनोद ठाकुर ने भी अंत में बाबाजी वेश लिया था । गौरकिशोर दास बाबाजी तो बाबाजी थे ही और जगन्नाथदास बाबाजी तो बाबाजी थे ही, तो गौड़ीय वैष्णव के सम्प्रदाय में संन्यास तो है ही नहीं । जनेऊ गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय में है ही नहीं ।

तो आप खुद सोचिये ! सम्प्रदाय मतलब जो as-it-is पूरे सम्प्रदाय की बात follow की जाये, तो हम सम्प्रदाय में हैं, नहीं तो फिर cult में हैं ।

Cult मतलब एक व्यक्ति विशेष के फरमानों का पालन जहाँ होता है, वह cult है । जैसे कि फरमान जारी कर दिया, कि आप ऐसे-ऐसे भक्ति करो, और हम कर रहे हैं बिना सोचे । सम्प्रदाय में भक्ति कैसे होती है, यह तो जान लें !

Cult मतलब उसका एक अपना ही सब कुछ होता है, सब कुछ अपना ही है, जिसका पूरे सम्प्रदाय से कोई लेना देना ही नहीं है, सब कुछ अपना ।
पञ्चतत्त्व मन्त्र अपना,
भोग लगाने की विधि अपनी,
प्रणाम मन्त्र अपना अलग,
भोग अलग,
मंगला आरती अलग,
जनेऊ अलग,
संन्यास अलग,
दण्ड अलग,
बाबाजी वेश reject,
सिद्ध प्रणाली reject,
और new philosophy अपनाना कि ‘you are not qualified !’
सब कुछ reject करके अपना मत-मतान्तर स्थापित करने का मतलब है cult.
और जो as-it-is वही follow कर रहे हैं, जैसे भक्तिविनोद ठाकुर ने अपने बेटे को सिद्ध प्रणाली दी, वही मंगला आरती और पञ्चतत्त्व मन्त्र जो वे खुद करते हैं, वही उन्होंने अपने बेटे को दिया । उनके बेटे ने अपने अन्य उनके शिष्यों को दिया ।

हम उन शिष्यों से बात करते हैं । वे हमारे मित्रगण हैं । वे बताते हैं कि जो पञ्चतत्त्व मन्त्र हम करते हैं, वे भी वही पञ्चतत्त्व मन्त्र करते हैं । क्या है हमारा पञ्चतत्त्व मन्त्र ?
‘श्रीगौरा नित्यानन्द श्रीअद्वैतचन्द्र गदाधर श्रीवासादि गौरभक्त वृन्द ।’
यह पञ्चतत्त्व मन्त्र हम करते हैं,
गौरकिशोर दास बाबाजी की समाधि पर भी यही होता है,
जगन्नाथदास बाबाजी भी यही करते थे,
जगन्नाथ पुरी में भी सभी यही करते हैं,
नवद्वीप में सभी यही करते हैं,
राधाकुण्ड में सभी यही करते हैं,
वृन्दावन में सभी यही करते हैं,
मणिपुर में सभी यही करते हैं,
सभी यही पञ्चतत्त्व मन्त्र करते हैं, Iskcon Gaudiya Math को छोड़ कर !
जो मंगला आरती हम करते हैं, सभी स्थानों में वही करते हैं ।
कोई जनेऊ नहीं डालता,
कोई संन्यास दण्ड नहीं ग्रहण करता,
‘ॐ भूर्भुवः स्वः’ किसी के दीक्षा मन्त्रों में नहीं है ।
तो आप खुद सोच सकते हैं कि यह सम्प्रदाय है या cult है । निश्चित् रूप से cult है !
Cult मतलब एक व्यक्ति के मत-मतान्तर के पीछे हम पागल हो गये हैं । Charismatic personality है, उसने अपने आकर्षण द्वारा सबको आकर्षित कर लिया है, हम उन्हीं को blindly follow कर रहे हैं ।
सम्प्रदाय मतलब जिसमें सब कुछ bestowed होता है ।
भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर से पूछिये कि क्या यह पञ्चतत्त्व मन्त्र आपको bestowed है या आपका बनाया हुआ है ?
क्या यह मंगला आरती आपको bestowed है या बनायी हुई है ?
क्या यह भोग लगाने की पद्धति, जो आप लगाते हो ‘नमः ॐ विष्णुपादाय’, यह bestowed है ?
Bestowed का मतलब क्या होता है− प्रदान की गयी है या फिर निर्माण की गयी है ??
सम्प्रदाय मतलब, जो सारी चीज़ें प्रदान की गयी हों । आपने तो सारी चीज़ें निर्माण कर दी ।
आपकी तो संस्था का नाम ‘नव-निर्माण योजना’ होना चाहिये था । आपने सब कुछ नव-निर्माण कर दिया ।

आपने पञ्चतत्त्व मन्त्र का निर्माण कर दिया,
आपने भोग पद्धति का निर्माण किया,
अपने नयी मंगला आरती का निर्माण किया,
जनेऊ का निर्माण कर दिया,
दण्ड का निर्माण कर दिया,
सभी प्रामाणिक practices, जो आपके पिताजी, आपके गुरु करते थे और सभी सिद्ध महात्मा करते थे, सभी reject कर दी, तो कैसे सम्प्रदाय में हो आप ? उत्तर दो !
निश्चित् रूप से cult है, और कुछ नहीं है !

We are not teaching fanaticism. We are teaching− come out of fanaticism !
हम fanaticism नहीं teach कर रहे, हम कह रहे हैं− आँखें खोलो, भगवान् ने टांगें दी हैं, जाओ जगन्नाथ पुरी, जाओ नवद्वीप, जाओ राधाकुण्ड । जाओ देखो, कैसे मंगला आरती होती है ! देखो, पञ्चतत्त्व मन्त्र क्या होता है ! देखो, भोग कैसे लगता है !
कोई गंदी बात तो नहीं है ?

भाई ! आपका अधिकार बनता है कि आपने कहीं जीवन समर्पित किया है, तो कम से कम basics तो देख लो कैसे होते हैं ?
कोई संन्यास ग्रहण करता है ? कोई जनेऊ होता है ?
कोई ब्राह्मण दीक्षा होती है किसी की ?