Can we directly offer Flowers,
Garland to Spiritual Master

भक्त− महाराज जी ! कुछ भक्तों का प्रश्न यह था कि ऐसा देखने में आया है कि किन्हीं संस्थाओं में… अगर मैं particularly बोलूँ Iskcon के अन्दर देखने में आया है कि directly offer करते हैं… गुरु को Offer करते हैं । तो क्या यह सही है ? शास्त्रीय है या शास्त्रीय क्या चीज़ होनी चाहिये ? कृपया इसका…
महाराज जी− Direct bhoga…?

भक्त− Direct bhoga, जैसे garland offering है, तो garland लेकर आये और directly गुरु को offer कर दिया ।

महाराज जी− आपके दो प्रश्न न इसमें mixed हैं । तो हम आपके इस प्रश्न को अलग-अलग करके उत्तर देते हैं । पहला प्रश्न है आपका कि आप जैसे गुरु पूजा में जाते हैं… देखिये आप हमसे प्रश्न इसलिए पूछ पा रहे हैं कि आपको पता है कि वहाँ पर भी हम 15 वर्ष रहे थे लगभग । वहाँ पर पूरी community को build किया था और हज़ारों लोग जो थे, वो सब follow करते थे । तो वहाँ का पक्ष तो हमें निश्चित् रूप से पता ही है… Iskcon का पक्ष । अब यहाँ पर भी हम लगभग 15 वर्ष से हैं । तो निश्चित् रूप से यहाँ का पक्ष भी पता ही होगा ।

हमारे गुरुदेव ने बोला भी है…इसी…जिम्मा दिया है कि इस पक्ष को उनके जाने के बाद…कि सबको प्राप्त हो । तो यह पक्ष भी हमें पता है और वो पक्ष भी पूर्ण रूप से पता है । तो जब गुरु-पूजा होती है Iskcon में, तो सीधा प्रभुपादजी के चरणों में पुष्प चढ़ा दिये जाते हैं और फूलमाला भी बाज़ार से लाकर सीधा प्रभुपादजी के गले में पहना दी जाती है । तो प्रश्न है कि क्या यह सही है या गलत है ? देखिये, शास्त्रीय उत्तर जानना चाहते हैं, तो हम हैं आपके सामने । अब emotional उत्तर जानना चाहते हैं, तो उसका हमारे जीवन में कोई स्थान नहीं है ।

शास्त्रीय उत्तर यह है कि हमने आपको बताया पिछली बार कि भोग कैसे लगता है ब्रज में और नित्य नवद्वीप में । नित्य नवद्वीप में कैसे भोग लगता है ? आरती कैसे होती है ? आरती होती है नित्य नवद्वीप में पहले महाप्रभु की…वे प्रभु हैं, नित्यानन्द प्रभु की…वे भी प्रभु हैं, और अद्वैताचार्य की… वे भी महाविष्णु हैं…प्रभु हैं । और तीनों की आरती होती है ।

क्या हमने बोला कि पञ्चतत्त्व की आरती होती है ? तीनों प्रभु की आरती होती है । आरती दी…दी किनको दी जाती है सबसे पहले ? गदाधर पण्डित को दी जाती है प्रसादी… direct नहीं । उसके बाद श्रीवास पण्डित, स्वरूप आदि गोस्वामी… फिर इत्यादि-इत्यादि और सबसे अन्त में किनको दी जाती है ? गुरुदेव को । क्या दिया जाता है ? प्रसादी । तो आप यहाँ गुरु-पूजा कर रहे हैं । यदि आप गौड़ीय वैष्णव हो… आप मान लीजिये नित्य नवद्वीप में हो, तो आप क्या अपने गुरुदेव को सीधा क्या… उनको सीधा माला पहना दोगे ? कैसे करोगे ? पहले महाप्रभु को माला अर्पण की जायेगी । जो महाप्रभु को फूल दिये जायेंगे और जो प्रसादी फूल हैं, वो गुरुदेव के हाथों में… उनके चरणों मे नहीं दिये जायेंगे फूल । गौड़ीय वैष्णव अपने गुरुदेव के चरणों में कभी फूल नहीं देते हैं ।

४० साल से कुछ लोग कर रहे होंगे पर नहीं मालूम है शास्त्रीय ज्ञान, तो निश्चित् रूप से सही तो नहीं हो रहा, और सही नहीं हो रहा, तो निश्चित् रूप से गलत हो रहा है । Save yourself. गुरुदेव को प्रसादी पुष्प, चन्दन दिया जाता है, वो भी उनके हस्त में, या माथे पर चन्दन लगा दिया जाता है । और माला जो होती है, गौर प्रसादी होती है, वो दी जाती है… और यह तो हुई एक बात‌ ।

दूसरा…आरती करना‌ । गुरु पूजा में तो पुष्प चढ़ा दिये, माला चढ़ा दी । आरती… आरती कर रहे हैं प्रभुपादजी की… क्या यह सही है या गलत है ? शास्त्रीय दृष्टिकोण से लें, तो गौड़ीय वैष्णव कभी किन्हीं गुरु की आरती नहीं करते । आरती किसकी की जाती है ? प्रभु की । बोले हम प्रभुपाद की करेंगे । नहीं… प्रभुपाद की नहीं करनी आरती । आरती प्रभु की करनी है, प्रभुपाद को दे देनी है कर के । प्रभुपाद को दे देनी है न… अच्छा ! कोई भी गुरु हैं, चाहे प्रभुपाद हों… चाहे भक्तिविनोद ठाकुर हों… चाहे जगन्नाथदास बाबाजी हों… शुद्ध भक्त हैं न । अच्छा, क्या वे गदाधर पण्डित से भी ऊपर हो गये ? क्या वे श्रीवास पण्डित से भी ऊपर हो गये ? आरती सिर्फ तीन की की जाती है । गदाधर पण्डित की भी आरती नहीं होती है नित्य नवद्वीप में । श्रीवास पण्डित की आरती नहीं होती है नित्य नवद्वीप में, स्वरूप दामोदर गोस्वामी, रामानन्द राय जो ललिता-विशाखा हैं, उनकी भी आरती नहीं होती है ।

उनको प्रसादी आरती दी जाती है । पहले महाप्रभु की आरती कर ली…प्रभु की । उसके बाद स्वरूप दामोदर गोस्वामी, जो कि ललिता हैं और सबकी आरती करके अन्त में जाकर गुरुवर्ग के बाद… द्वारी के बाद जाकर गुरुवर्ग… पूरे गुरुवर्ग को आरती दी जाती है । अन्त में गुरुदेव को प्रसादी आरती दी जाती है…वो भी अन्त में । बहुत पार्षदों को देने के बाद अन्त में गुरुदेव को प्रसादी दी जाती है । गुरुदेव इसी से प्रसन्न होते हैं ।

जो वास्तविक गुरु हैं, वे कभी स्वप्न में भी अपनी आरती नहीं करने देंगे और सीधा माला नहीं पहनेंगे जो भगवद् प्रसादी नहीं होगी…जो गौड़ीय वैष्णव हैं । अन्य सम्प्रदायों में जो होता है, होता रहे । हमें अन्य सम्प्रदायों से सरोकार नहीं है । हमें किससे सरोकार है ? हमारे गौड़ीय वैष्णव आचार्य किस प्रकार से… इसलिये तो हमने बताया…

जब तक ये ग्रन्थ पढ़ोगे नहीं, तो ABCD भी नही पता चलेगी । जो खोलोगे, लगेगा… अरे ! ये भी मैं ठीक नहीं करता । अरे ! ये भी मैं ठीक नहीं… । ठीक करोगे कैसे ? उदाहरण हम बताते हैं । आपने दसवीं के बाद admission लिया । आपने दसवीं पास की । उसके बाद आपने Medical में admission लिया… किताब एक नहीं पढ़ी Medical की… तो उसका जो operation… कैसे करोगे व्यक्ति का ? जो करोगे… गलत काटा-पीटा ही करोगे… गलत ही करोगे… उसका…व्यक्ति का खून हो जायेगा बेचारे का । उसी प्रकार से आपने ग्रन्थ पढ़े नहीं । ये Medical की किताबें हैं । Operation सीधा करने बैठ गये हो । वो भी…सबका हम कल्याण कर देंगे, स्वयं को छोड़कर । तो…

Charity begins at home. पहले आप इनका दर्शन करो…ग्रन्थों का । इनको पढ़ो, सीखो महापुरुषों के चरणों में बैठकर कि भाई ! ये क्या बता रहे हैं… । आरती नहीं हमें पता कैसे करनी है । हमें यह नहीं पता भोग कैसे लगाना है । ५० साल हो गये भक्ति करते हुए… हमें यह नहीं पता चला कि आरती कैसे करते हैं भगवान् की । हम ५० साल सेवा में… यह नहीं पता गुरु-पूजा कैसे की जाती है ।

शास्त्रों में बताया गया है− ‘प्रथमं तु गुरुं पूज्य’ । सबसे पहले गुरु की पूजा करो । हम भी तो यही कह रहे हैं । हम भी तो ये शास्त्र बता रहे हैं । ‘प्रथमं तु गुरुं पूज्य’ । पर कैसे करो गुरु की पूजा ? पहले भगवान् की पूजा करो । सारा प्रसादी जो हो…वो उच्छिष्ट से गुरु की पूजा की जाती है । गुरु की पूजा केवल उच्छिष्ट से की जाती है, सीधी नहीं की जाती । हम चादर तो पहनते नहीं बिना भगवान् को अर्पण किये… ये कुर्ता हो, चादर हो… कोई भी वस्तु हो… वो तो हम अर्पण किये बिना पहनेंगे नहीं । आरती करवायेंगे अपनी ? गुरु की आरती करेंगे या करवायेंगे अपनी ? ऐसा नहीं है ।

गदाधर पण्डित, श्रीवास पण्डित की भी आरती नहीं होती है, तो किसी और की आरती हो सकती है ? यदि आप बुद्धिमान हो, तो आपको explain करने की ज़रूरत नहीं है । यदि कोई Institute of fanaticism है, तो ‘वृथा जन्म गेलो तार’ । ‘वृथा जन्म गेलो तार’ । हम महाप्रभु के भक्त हैं । हम कोई Institution के भक्त नहीं हैं । हम भक्ति महाप्रभु की करने आये हैं… Institution की भक्ति करने नहीं आये हैं किसी ।