Bhaktisiddhänta Sarasvaté Öhäkura…
The Saviour, The Destroyer

भक्त– महाराज जी, Iskcon के कुछ भक्त प्राचीन मायापुर गये थे तो उन्हें वहाँ पता चला कि भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर जी से पहले जिस प्रकार की गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय में भक्ति की जाती थी, उनके आने के बाद उन्होंने उसमें बहुत ज़्यादा बदलाव किया । जिस प्रकार की उन्होंने भक्ति बतायी वैसी बिल्कुल भी नहीं की जाती थी, उनसे पहले । तो वे जानना चाह रहे हैं कि भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर जी ने क्या-क्या बदलाव किये गौड़ीय वैष्णव की भजन पद्धति में ।

महाराज जी− सम्प्रदाय का अर्थ होता है−
सम्यक् प्रदायति इति सम्प्रदायः
जो सम्यक् रूप से प्रदान करें जो गुरु, जो उनके सम्प्रदाय में प्रारम्भ से दिया आ रहा हैं, वह एक सम्प्रदाय कहलाता है, प्रामाणिक गुरु कहलाते हैं ।
आप खुद समझें कि भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर के पिताजी कौन हैं ?
भक्तिविनोद ठाकुर ।
और उनके गुरुदेव कौन हैं ? वो क्या कहते हैं ? हमारे गुरुदेव, गौरकिशोर दास बाबाजी महाराज । आप खुद सोचिये, अपने पिताजी के साथ तो वो कितने वर्ष रहे हैं । भक्तिविनोद ठाकुर और भक्तिसिद्धान्त सरस्वती एक ही घर में रहते थे, तो नियमित रूप से सुनते तो होंगे न की पञ्चतत्त्व मन्त्र क्या करते थे भक्तिविनोद ठाकुर ? यदि वो कह रहे हैं कि उनकी दीक्षा गौरकिशोर दास बाबाजी महाराज से हुई है तो उनके गुरु ने भी पञ्चतत्त्व मन्त्र कभी तो उन्हें बताया ही होगा ? या कभी भी नहीं बताया होगा ? भक्तिविनोद ठाकुर कौन सा पञ्चतत्त्व मन्त्र करते हैं ? कौन सा करते थे ? उनकी परम्परा में आज तक होता हुआ आ रहा है वही पञ्चतत्त्व मन्त्र । और वही पञ्चतत्त्व मन्त्र ५०० साल से होता हुआ आ रहा है । क्या है वह पञ्चतत्त्व मन्त्र ?
श्रीगौरा नित्यानन्द श्रीअद्वैतचन्द्र
गदाधर श्रीवासादि गौरभक्तवृन्द ।
यह पञ्चतत्त्व मन्त्र जो है ५०० साल से सभी सिद्ध महात्मा करते हुए आ रहे हैं, including भक्तिविनोद ठाकुर, including गौरकिशोर दास बाबाजी महाराज ।

निश्चित रूप से जो पिता के साथ रहते हैं, पञ्चतत्त्व मन्त्र तो सुना ही होगा ?
उन्होंने कभी तो कीर्तन में किया होगा ?
कभी तो बोला होगा ?
कभी तो सुना होगा ?
रोज़ ही ! वास्तव में देखा जाये तो हर समय ही सुनते होंगे, अपने पिताजी के श्रीमुख से ।
और इतने famous महात्मा थे, तो उनका तो कितना प्रचार था, पञ्चतत्त्व मन्त्र तो अनेकों को उन्होंने दिया था ।

और उनके गुरु गौरकिशोर दास बाबाजी महाराज हैं । वे भी कौन सा पञ्चतत्त्व मन्त्र करते थे ?
श्रीगौरा नित्यानन्द श्रीअद्वैतचन्द्र
गदाधर श्रीवासादि गौरभक्तवृन्द ।
तो हमारा प्रश्न है भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर से− यह आपने किस आधार पर यह पञ्चतत्त्व मन्त्र बना दिया ?
श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानन्द,
श्रीअद्वैत गदाधर, श्रीवासादि, गौरभक्तवृन्द ।
क्या आपको यह भी विश्वास नहीं था कि आपके पिताजी भक्तिविनोद ठाकुर और आपके गुरुदेव श्रील गौरकिशोर दास बाबाजी, वे जो पञ्चतत्त्व मन्त्र करते हैं, वो भी सही है या गलत, यह भी विश्वास नहीं था आपको ?

ये सिद्ध महात्मा जगन्नाथदास बाबाजी, क्या ये जो पञ्चतत्त्व मन्त्र करते हैं, क्या यह सही है या गलत, यह भी विश्वास नहीं था आपको ?
सारे सिद्ध महात्मा, centuries से, यही पञ्चतत्त्व मन्त्र करते हैं ।
आप बताइये, आपको यह भी सही नहीं लगा कि सब लोग भक्ति सही नहीं कर रहे हैं, यही आपका कारण है न ?

भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर को नहीं लगा सही, कि भक्ति अच्छे तरीके से हो रही है या खराब हो रहा है ।

अरे भाई, पञ्चतत्त्व मन्त्र में क्या बदलाव की ज़रूरत है, आप हमें उत्तर दीजिये इस बात का ?
सिद्ध महात्मा कर रहे हैं, सभी कर रहे हैं, आज तक कर रहे हैं । भक्तिविनोद ठाकुर ने किया । उन्होंने अपने बेटे को भी वही पञ्चतत्त्व मन्त्र दिया । आज तक उनकी परम्परा में हो रहा है ।

आप गौरकिशोर दास बाबाजी की समाधि पर जाकर देखो, कौन सा पञ्चतत्त्व मन्त्र हो रहा है ?
श्रीकृष्ण चैतन्य ? यह तो भक्तिसिद्धान्त, इन्होंने शुरु कर दिया । आप बताओ पञ्चतत्त्व मन्त्र कैसे गलत हो सकता है ? आप बताओ इसका उत्तर । कैसे कोई बदल सकता है पञ्चतत्त्व मन्त्र को ?

दूसरी बात !

आपके पिताजी सिद्ध महात्मा थे । इतने बड़े महात्मा थे । वे मंगल आरती तो करते ही होंगे ? ऐसा तो नहीं होगा की आपने कभी देखी नहीं, सुनी नहीं ? पचासों बार आपने अपने पिताजी को मंगल आरती करते हुए देखा होगा ?

और आपके गुरुदेव− गौरकिशोर दास बाबाजी, वे भी सिद्ध महात्मा थे । क्या वे भी मंगल आरती नहीं करते थे कभी भी ? आपने ज़रूर देखा होगा उनको मंगल आरती करते हुए ? देखा होगा, कैसे करते हैं, किनकी करते हैं ?
तो आपने मंगल आरती के सारे पद भी छोड़ दिये ?
मंगल आरती भी गलत करते थे आपके पिताजी, भक्तिविनोद ठाकुर ?
मंगल आरती भी गलत करते थे ?
पञ्चतत्त्व मन्त्र भी गलत करते थे वे लोग ?

गौरकिशोर दास बाबाजी, मंगल आरती करते थे पञ्चतत्त्व की, और राधा-कृष्ण की मंगल आरती करते हैं, तो वे आरती के पद करते हैं वो सारे…, आप चले जाओ जगन्नाथ पुरी, नवद्वीप, वृन्दावन, राधाकुण्ड, वही पदगान से आज तक मंगल आरती हो रही है, जो जगन्नाथदास बाबाजी करते थे, जो भक्तिविनोद ठाकुर करते थे, जो गौरकिशोर दास बाबाजी करते थे । पूरे प्रामाणिक गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय में, Iskcon Gaudiya Math को छोड़ दो, एक ही प्रकार से मंगल आरती होती है ।
हमारा प्रश्न है भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर से, मंगल आरती में क्या समस्या हो गई, जो अापने उसको बदल दी ?
मंगल आरती से समस्या आपको ही गई ?
पञ्चतत्त्व मन्त्र में भी आपको समस्या हो गई ?
अच्छा ! आपके पिताजी कौन हैं ?
भक्तिविनोद ठाकुर ।
वो कैसा तिलक लगाते थे ?
पीले रंग का और पत्ती वाला लगाते थे, तुलसी पत्ती का ?
नहीं लगाते थे ।
कैसा तिलक लगाते थे भक्तिविनोद ठाकुर ?
जैसा हमने लगाया है− नित्यानन्द परिवार का ।
आपके पिताजी हैं, वे नित्यानन्द परिवार के थे ।
आपके जो गुरुदेव हैं, आप कहते हैं गौरकिशोर दास बाबाजी हैं− वे अद्वैत परिवार के हैं । वे circular तिलक लगाते हैं, तो आपको अपने गुरुदेव और अपने पिताजी के तिलक भी आपको गलत लगने लग गये अचानक ही ?

आपने अपना तिलक भी नया लगा दिया । अपने तिलक नया बना दिया अपना ? सारे सिद्ध महात्माओं का तिलक reject कर दिया और नया तिलक जो आज तक किसी ने कभी नहीं लगाया…
पञ्चतत्त्व मन्त्र जो आज तक कभी किसी ने नहीं किया…
मंगल आरती जो आज तक कभी, कभी हुई ही नहीं…नमः ॐ विष्णुपादाय… ये सब ऐसे कोई मंगल आरती होती है ?

और जो आपने प्रणाम मन्त्र नये डाल दिये− नमः ॐ विष्णुपादाय । पूरे गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय में कोई प्रणाम मन्त्र होता ही नहीं है नमः ॐ विष्णुपादाय करके । आप जाकर देखो नवद्वीप, वृन्दावन, मायापुर, जगन्नाथ पुरी− कोई प्रणाम मन्त्र होता ही नहीं है गुरुदेव का, किसी सम्प्रदाय में और जाकर देख लो ।

भक्तिविनोद ठाकुर के पुत्र हैं ललिताप्रसाद ठाकुर, वो तो नहीं करते भक्तिविनोद ठाकुर का कोई प्रणाम मन्त्र । उनको नहीं पता उनके पिताजी का प्रणाम मन्त्र कोई ? और आपने प्रणाम मन्त्र भी नये डाल दिये ! आपने डाल दिये तो हम आपसे प्रश्न पूछते हैं कि गौरकिशोर दास बाबाजी अपने गुरु का कौन सा प्रणाम मन्त्र करते थे ? उनके भी तो कोई गुरु थे ! पहले तो नाम बताओ कौन थे उनके गुरु ? और बताओ उनका प्रणाम मन्त्र क्या था ? चार लोगों के प्रणाम मन्त्र हैं, बाकि किसी का प्रणाम मन्त्र भी नहीं है ? कमाल की बात हो गई !

अच्छा आप अपने सब शिष्यों को सिखा रहे हो प्रणाम मन्त्र, आपके गुरुदेव ने प्रणाम मन्त्र नहीं सिखाया था, “मेरे गुरुदेव का यह प्रणाम मन्त्र है” ? यह आप ही बोल रहे हो न गौरकिशोर दास बाबाजी आपके गुरु हैं ? आप अपने सब शिष्यों को बोलते हो प्रणाम मन्त्र करो गुरु का ऐसा ऐसा, नमाे भक्तिविनोदाय…भक्ति सिद्धान्त वार्षभानवे…सब प्रणाम मन्त्र करो ! अच्छा ! तो आपके गुरुदेव कौन सा करते थे प्रणाम मन्त्र, वह आपको ज़रूर बताया होगा…बताओ ?

अरे गुरुदेव का अपना नाम तक नहीं बता रहे आप, अपने गुरुदेव के गुरुदेव का नाम तक नहीं बता रहे । सारी चीज़ें कल्पना हैं ? पञ्चतत्त्व मन्त्र एक कल्पना, नया बना दिया ! तिलक…जो कभी नहीं था…यह भी काल्पनिक तिलक बना दिया ! मंगल आरती के सब कुछ जो मंगल आरती के पद होते थे, वो भी आपने बन्द कर दिये ! नया मंगल आरती, संसार दावानल को आपने मंगल आरती बना दिया ! जो वास्तविक पद हैं− राधा-कृष्ण के, पञ्चतत्त्व के, वो आपने बन्द करवा दिये । और सम्प्रदाय क्या होता है− सम्यक् प्रदायति, जो सम्यक् वही प्रदान कर रहे हैं जो आपके गुरुदेव, गुरुवर्ग ने आपको दिया । आपने सब कुछ reject कर दिया, अपने सब गुरुवर्ग का, पिताजी का ।

और reject करने के बाद भी आपकी… हैरानगी है कि आपने उनकी सारी सिद्ध प्रणाली को reject कर दिया । आपके गुरुदेव को नन्दकिशोर गोस्वामी ने सिद्ध स्वरूप दिया था । आपके पिताजी को उनके गुरुदेव ने सिद्ध प्रणाली दी थी, जगन्नाथदास बाबाजी को उनके गुरु ने सिद्ध प्रणाली दी थी । जगन्नाथदास बाबाजी अपने शिष्यों को सिद्ध प्रणाली देते थे, भक्तिविनोद ठाकुर ने आपके भाई ललिताप्रसाद ठाकुर को सिद्ध प्रणाली दी । आपने सिद्ध प्रणाली को भी bogus बना दिया ? जो सब कुछ हो रहा था, जो भक्तिविनोद ठाकुर कर रहे थे, जो जगन्नाथदास बाबाजी, जो गौरकिशोर दास बाबाजी कर रहे थे, वो सारी चीज़ों को तो आपने reject कर दिया । और सम्प्रदाय का मतलब होता है सम्यक् प्रदायते, सम्यक् रूप से जो प्रदान किया जाता है, वह सम्प्रदाय कहलाता है । आपने सब कुछ reject कर दिया और उसके बाद, आप उनकी photo फिर भी लगा रहे हो कि हम इनकी शिक्षा पालन कर रहे हैं । बताओ, क्या पालन कर रहे हो ? न उनका पञ्चतत्त्व मन्त्र follow कर रहे हो, भोग पद्धति तक तो आपने बदल दी । क्या आपने कभी अपने पिताजी को भोग लगाते हुए नहीं देखा होगा ?

हमारे यहाँ के छोटे-छोटे बच्चों को पता है कि पिताजी कैसे भोग लगाते हैं…तीन बार भोग लगाने जाते हैं पिताजी ।

हमारे यहाँ कितने शिष्य हैं…। उनके छोटे-छोटे बच्चे भी अब बड़े हो रहे हैं । उनको भी पता है भोग कैसे लगता है, तो क्या आपको यह भी नहीं पता कि भोग कैसे लगता था…? आपके पिताजी भोग भी गलत लगाते थे ? आपके गुरु भोग भी गलत लगाते थे ? आपने भोग पद्धति भी reject कर दी ! ५०० साल से भोग जैसे लग रहा था…सारी भोग पद्धति भी गलत कर दी, reject कर दी, अपने नये मन्त्र ईज़ाद कर दिये, नमो महावदान्याय…, नमः ॐ विष्णु… ऐसे भोग लगता है ?? जा कर देख लो किसी भी प्रामाणिक सम्प्रदाय के अन्दर । नृसिंह भगवान् को ऐसे भोग लगता है…नमो महावदान्याय करके ? या लक्ष्मी नारायण या भगवान् कृष्ण…किसी भी आप सम्प्रदाय में चले जाओ…वल्लभपुर, कहीं पर भी चले जाओ, क्या ऐसे भोग लगता है ? नाथद्वारा जाकर देखो । बीज मन्त्रों के द्वारा भोग लगता है, जहाँ मर्ज़ी चले जाओ । नमः ॐ विष्णुपादाय…‌ से कैसे भोग लगता है ?

अरे ! कम से कम यह तो मान लो कि आपके सिद्ध गुरु थे गौरकिशोर दास बाबाजी, यह तो मान लो । भक्तिविनोद ठाकुर, इतने उच्च कोटि के महात्मा…वे भोग तो सही लगाते ही होंगे ? और निश्चित् रूप से, आपने उन्हें भोग लगाते हुए हज़ारों बार देखा होगा । १ साल में ३६५ दिन होते हैं । कम से कम कुछ साल तो अपने पिताजी के साथ आप रहे ही होंगे ? रोज़ भोग लगाते होंगे वो, देखते होगे कैसे भोग लगाते हैं, देखते होगे पञ्चतत्त्व मन्त्र क्या है ? देखते होगे मंगल आरती ? मंगल आरती तो करते थे न भक्तिविनोद ठाकुर । देखते नहीं थे क्या आप कोई भी चीज़ ?? सारी चीज़ें गलत हो गयी आपके पिताजी की, आपके गुरुजी की ? और फिर आप कहते हो कि मैं उनको follow करता हूँ । क्या follow कर रहे हो…? अच्छा आप हमें बता दो क्या follow कर रहे हो उनका ?

आपके गुरुदेव या आपके पिताजी, क्या उन्होंने saffron पहना ? ऐसा कहा जाता है कि भक्तिविनोद ठाकुर ने भी अन्त में बाबाजी वेश लिया था । उन्होंने भी सफेद पहना था । गौरकिशोर दास बाबाजी क्या saffron डालते थे ? आप कहते हो कि उन्होंने आपको संन्यास दे दिया । कैसे दे दिया संन्यास आपको saffron का ? डंडा दे दिया ? उन्होंने डंडा लिया नहीं, आपको डंडा दे दिया ? त्रिदंड आपको दे दिया ? सफेद से लाल आपको दे दिया ? भाई क्यों..? आप कहते हो हमने photo से संन्यास ले लिया, तो photo से तो आप कुछ भी ले सकते हो ।

हम आपसे प्रश्न पूछेंगे कि जो आपने गायत्री मन्त्र दिया, हम आपसे पूछेंगे, क्या आपने कभी अपने पिताजी को गायत्री मन्त्र करते हुए देखा था आज तक ? क्या आपके गुरुदेव गौरकिशोर दास बाबाजी ने आपको गायत्री मन्त्र दिया, ॐ भूर्भुवः स्वः, आपको यह मन्त्र दिया किसी ने ? जब आपको किसी ने दिया नहीं, आपने कभी किसी को करते हुए देखा नहीं, तो आपने यह नई चीज़ क्यों डाल दी ? गौरकिशोर दास बाबाजी क्या जनेऊ डालते थे ? क्या भक्तिविनोद ठाकुर, जगन्नाथदास बाबाजी कोई जनेऊ डालते थे ? नहीं डालते थे । आपने क्यों डाल दिया ?

एक होता है ‘सम्यक् प्रदायति इति सम्प्रदाय:’, मतलब जो सम्यक् रूप से प्रदान… यह होता है कि सब कुछ को तहस-नहस कर दिया जो हो रहा था, totally अपने मत-मतान्तर को स्थापित कर दिया, और बस अपने आप को सही prove कर दिया, और सब गलत हैं, एक और मैं सही, और सब मेरे को follow करो । और धन्य हैं ऐसे महानुभाव, जो आँखे बन्द करके इनको follow करते हैं । अरे आपको भगवान् ने आँखें दी हैं, जाकर देखकर तो आओ नवद्वीप में, राधाकुण्ड, वृन्दावन में कैसे गौड़ीय वैष्णव भक्ति कर रहे हैं ५०० सालों से ! एक बार देख तो लो ! देख तो लो एक बार !

वो तो सारा कुछ reject कर दिया । पञ्चतत्त्व मन्त्र कोई कैसे‌ reject कर सकता है.. बताओ…! आपके सिद्ध गुरु, आप कह रहे हो गुरु हैं आपके गौरकिशोर दास बाबाजी । भक्तिविनोद ठाकुर सिद्ध…. कितना पञ्चतत्त्व मन्त्र का कीर्तन होता होगा कि नहीं होता होगा ? क्या हमारे यहाँ कीर्तन नहीं होता पञ्चतत्त्व का ? होता है । क्या उनके यहाँ‌ नहीं होता होगा कीर्तन गौरकिशोर दास बाबाजी या भक्तिविनोद ठाकुर के यहाँ ?‌ कितनी बार होता होगा ! आपने नहीं सुना था ? सुना था ! फिर भी आपने उसे reject कर दिया । क्यों ???

किसी भी सम्प्रदाय में चले जाओ, दीक्षा होती है उसे क्या बोला जाता है ? वैष्णवी दीक्षा । आपने ब्राह्मण दीक्षा बना दिया ! भई क्यों ? क्यों ? और सीधा-साधा अर्थ है हरे कृष्ण महामन्त्र का कि राधा-कृष्ण की सेवा में हम लगना चाहते हैं, ‘हरे’ मतलब ‘राधारानी’, ‘कृष्ण’ मतलब ‘कृष्ण’ । तो राधा-कृष्ण की हम सेवा में अपने मञ्जरी स्वरूप से लगना चाहते हैं । महाप्रभु यही देने आये हैं रस, जो कभी भी अर्पित नहीं किया गया था । क्योंकि सख्य रस, गोपीभाव तो चण्डीदास, विद्यापति, सब गोपीभाव पहले ही follow कर रहें थे । सख्य रस तो पहले भी चल रहा था । महाप्रभु देने ही एक पथ− राधाकृष्ण की सेवा देने आये हैं और वह दे रहे हैं । और हरे कृष्ण महामन्त्र का मतलब ही यही है । तो आपने उसको भी सब reject कर दिया, बोलते हो, ‘O Mother Harä ! Engage me in Your Kåñëa’s service ?’ हरे कृष्ण महामन्त्र का मतलब ही आपने बदल दिया ।

सब कुछ… जिससे सिद्धि अनेकों सिद्ध महात्माओं ने प्राप्त की, आपने सारी practices को हटा दिया और सब चीज़ों में अपना मत-मतान्तर स्थापित कर दिया । चलिये आपने किया तब भी कोई समस्या नहीं, कम से कम अपने मन्दिर के अन्दर तो ऐसे व्यक्तियों को मत रखो जिनको आप ही गलत मानते हो ! हम तो नहीं कह रहे कि वे गलत हैं । आप कह रहे हो कि वे सही हैं, पर उनकी बात मैं एक नहीं मानूँगा ! हम कहते हैं, चलो मान लो आपको सब कुछ गलत लग गया… कम से कम उनकी photo मन्दिर में तो मत रखो । जो व्यक्ति बातें ही सारी गलत कर रहे हैं, उनकी photo कोई मन्दिर में रखता है ?

आप कहते हो शिक्षा परम्परा है, अरे एक शिक्षा बता दो जो उनकी मान रहे हो ! सारी शिक्षायें उनकी reject कर रहे हो आप । आप कहते हो, ‘मेरी शिक्षा परम्परा है’ । शिक्षा परम्परा तो आपकी है ही नहीं, क्योंकि आप तो सभी की शिक्षा के विपरीत चल रहे हो । आप तो तिलक भी नहीं लगाते जो आपके गुरु ने आपको दिया ।

और अपराध यहीं पर क्षमन नहीं हो रहा । जो अपनी परम्परा बनाई है आपने मन्दिर में या आप जो भक्तिविनोद ठाकुर की, गौरकिशोर दास बाबाजी की photo लगाते हो, उसमें उनको पीला तिलक और पीली तुलसी पत्ती डाल दी । क्या भक्तिविनोद ठाकुर, गौरकिशोर दास बाबाजी महाराज आपकी तरह पीला तिलक लगाते थे ? आप यह बोलना चाहते हो ? कोई अपराध की कोई सीमा होती है ! गुरु शिष्य को तिलक देते हैं या शिष्य गुरु का तिलक बदल देता है ? आपके मन्दिर के अन्दर गौरकिशोर दास बाबाजी का तिलक पीला है और आपके जैसी पीली पत्ती लगी हुई है । गौरकिशोर दास बाबाजी ने एक बार भी पीला तिलक नहीं लगाया कभी ! भक्तिविनोद ठाकुर को आपने तिलक लगाते हुए भी नहीं देखा था कभी ? क्या आपकी तरह पीला तिलक लगाते थे । ऐसा पत्ती वाला लगाते थे ? हमारे जैसा तिलक लगाते थे । जगन्नाथदास बाबाजी का भी आपने तिलक बदल दिया…एक और सिद्ध महात्मा…उनका तिलक भी आपने पीला कर दिया । और आपको follow करने वाले तो ignorant हैं, उनको तो सत्य मालूम नहीं है । तो हम उनको कहेंगे, आप थोड़ा बुद्धि का प्रयोग करो, जगन्नाथदास बाबाजी महाराज की समाधि है नवद्वीप में, जाकर देखो समाधि पर कैसा तिलक है उनका ! देखो न…!

नित्यानन्द त्रयोदशी पर तो लोग fasting रखते हैं, गौर पूर्णिमा पर आपके यहाँ fasting रखते हैं । किसी को यह भी पता है कि अद्वैत सप्तमी पर भी fasting होती है ? ये basic बातें भी नहीं पता । क्यों ? क्योंकि आपने जानबूझ कर छिपायी हैं । आपको तो यहाँ तक कि तीन प्रभु हैं, यह भी नहीं पता, तो fasting का कैसे पता होगा ? आपके यहाँ तो दो ही प्रभु हैं, गौर और निताइ । तीसरे तो आचार्य हैं ।
अद्वैत, ये आचार्य हैं ?
उनका नाम आचार्य है ।

जिस प्रकार से अनंग मञ्जरी, मञ्जरी नहीं हैं ब्रजलीला में, वो गोपी हैं, नाम में मञ्जरी हैं । अद्वैताचार्य नाम में आचार्य हैं, हैं तो प्रभु ! Basic चीज़ें नहीं पता, ये basic चीज़ें कि तीन प्रभु होते हैं, इनको ऐसे भोग लगता है ।

तीन प्रभु होते हैं, यह ही नहीं बताया कभी । ‌मतलब, यह भी कोई छिपाने की बात है ? Iskcon, Gaudiya Math में किसी को नहीं पता कि तीन प्रभु हैं । Basic knowledge. Iskcon, Gaudiya Math में किसी को नहीं पता कि हमारे दो स्वरूप होते हैं । एक ब्रज में और एक नित्य नवद्वीप में । यह भी नहीं पता किसी को । आपके पिताजी ने आपको यह तो बताया होगा न कम से कम कि दो स्वरूप होते हैं या यह भी नहीं बताया ? आपके गुरुदेव ने यह तो बताया होगा, गौरकिशोर दास बाबाजी ने कि हमारे दो स्वरूप होते‌ हैं… या उन्होंने भी नहीं बताया ? आपने न देखा, न कभी सुना, कान बंद करके, आँखें बंद करके जाते थे गुरुदेव और पिताजी के पास हमेशा ? मेरी आँखें भी बंद, मेरे कान भी बंद, न मैं पिताजी की कोई बात सुनता हूँ, न देखता हूँ । और उनको शिक्षा गुरु के रूप में भी डालता हूँ अपनी गुरु परम्परा में । कमाल है ! आश्चर्य है ! आश्चर्य उन पर है जो follow करते हैं । और हमारी बात सुन कर भी, अगर फिर भी कोई वहाँ पर टिक गया, धिक्कार है आपकी बुद्धि पर !

Why i am following anyone blindly ? और यह देखा जाये, तो कितनी बड़ी cheating है कि किसी को पता न चले कि आपने सब कुछ ऊट-पटांग कर दिया है, तो जो उस समय के famous सिद्ध महात्मा थे, गौरकिशोर दास बाबाजी, जगन्नाथदास बाबाजी और भक्तिविनोद ठाकुर… तीनों को अपनी परम्परा में लाकर डाल दिया है । एक बात उनकी नहीं मान रहे… एक बात… एक बात उनकी नहीं मान रहे । आप हटा दो इन तीनों को हम देखते हैं कि कौन आपके पास आता है ? वो पूछेंगे न, भाई ! तुम किसको follow रहे हो ?

नाम के लिये बोल रहे हो, हम इनको follow कर रहे हैं । आप बताओ, क्या follow कर रहे हो आप उनका, बताओ हमें ! हम बताते हैं, वो क्या करते थे, क्या करते आ रहे हैं अब तक उनकी परम्परा में सब । क्या follow कर रहे हो ? कर रहे हो, तो बिल्कुल उनकी शिक्षा परम्परा में तो कम से कम हो । आप तो उनका सब reject कर रहे हो । उनका पञ्चतत्त्व मन्त्र आपसे नहीं होता, उनका भोग लगाना भी आपसे नहीं होता । किसी भी सम्प्रदाय में चले जाओ… रामानुज सम्प्रदाय, निम्बार्क सम्प्रदाय… हर एक कोई आपको बोलेगा, वैष्णवी दीक्षा होती है, वैष्णव बनाने के लिये । भगवान् के भक्त, विष्णु के भक्त, कृष्ण के भक्त को वैष्णव बोला जाता है । आपने वैष्णवी दीक्षा भी बदल दी । ब्राह्मण दीक्षा कर दी । ये ब्राह्मण दीक्षा क्या होता है ?

क्या जगन्नाथदास बाबाजी जनेऊ डालते थे ? बताओ ! क्या गौरकिशोर दास बाबाजी जनेऊ डालते थे ? नहीं । तो आप क्यों डालते हो भाई ? आपके पिताजी जनेऊ डालते थे ? बिल्कुल नहीं । Why you do what you do ? Please tell us, answer to anything.

आप बोलेंगे, आप हमें ये सब क्यों बता रहे हो ? भाई ! हमारे गुरुदेव ने हमें यह सेवा दी है । वास्तविक मार्ग जो है, लुप्त होता जा रहा है । उन्होंने जाने से पहले हमें सेवा दी थी कि इस वास्तविक मार्ग की रक्षा करना । हम रक्षार्थ ये सब कर‌ रहे हैं । प्रामाणिक सम्प्रदाय लुप्त न हो‌ जाये आप लोगों की वजह से । हम न हों, तो हमें लगता है कि ये लुप्तप्राय ही है लगभग । आपने सिर्फ अपना एक agenda चलाने के लिये सब कुछ किया । बड़े-बड़े सिद्ध-महात्मा present time के… उनको अपनी परम्परा बोल कर डाल दिया । सिर्फ अपना agenda चलाने के लिये… कि हमने हरिनाम प्रचार करना है… ये सब करना है । सिर्फ agenda चलाने के लिये अापने यह सब कुछ किया । This is cheating of the highest order !
गुरु का तिलक बदल दिया । गुरु आपका तिलक बदलेंगे या आप गुरु का तिलक बदलोगे ? बोलते हो, मैंने गुरु से संन्यास ले लिया है, गुरु की photo से । और धन्य हैं आपके followers जो आपकी इन बातों को मान भी लेते हैं । उनको यह भी दिमाग में नहीं आता कि मेरे गुरु गौरकिशोर दास बाबाजी जो थे, वो बाबाजी थे । वो किसी को संन्यास देंगे ? वो तो बाबाजी वेश देंगे न, वो संन्यास कैसे दे देंगे ? वो saffron कपड़ा कैसे दे देंगे ? और कितनी blind following हो सकती है ! थोड़ा तो दिमाग हो या बिल्कुल ही blind है आपका दिमाग… जो followers हैं ।

जैसे हम भी पहले Iskcon में थे । हमें भी जब सत्यता पता चली, उसी क्षण हमने छोड़ दिया । तो जिसको भी वास्तव में ज्ञान हो जाये, पता चल जाता है कि ये तो total chaos है, total खिचड़ी है । आप जवाब दो कि आपने ये प्रणाम मन्त्र गुरुओं के क्यों शुरु किये ? आप जवाब दो हमें । पहले तो कभी नहीं थे, किसी के नहीं थे । क्या भक्तिविनोद ठाकुर, आपके पिताजी ने कभी यह बताया कि मेरे गुरु का यह प्रणाम मन्त्र है और मैं करता हूँ… बताया कभी ? आपके गुरु ने कभी बोला कि बेटा ! मैं तुम्हें दीक्षा दे रहा हूँ, तुमने भी यह प्रणाम मन्त्र करना है मेरे गुरु का ? नहीं ।

आप बोलते हो, कि प्रभुपाद का यह प्रणाम मन्त्र है । अच्छा ! भक्तिसिद्धान्त जी का यह प्रणाम मन्त्र है । अच्छा ! गोपाल कृष्ण महाराज हो, जय पताका महाराज हो, इनके ये प्रणाम मन्त्र हैं । अच्छा ! कभी यह दिमाग में नहीं आता कि पूछो, भक्तिविनोद ठाकुर कौन सा प्रणाम मन्त्र करते थे ? या गौरकिशोर दास बाबाजी कौन सा प्रणाम मन्त्र करते थे ? तो प्रणाम मन्त्र चार-पाँच ही हैं ? उससे पहले कोई नहीं है प्रणाम मन्त्र ! कमाल है ! आश्चर्य है ! आश्चर्य है आपकी बुद्धि को ! आश्चर्य है आपकी blind following को ! आप धन्य नहीं हो, आप सबसे अधन्य हो ।

गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय में आकर भी वास्तविक मार्ग से च्युत हो गये । आप तो उस व्यक्ति को follow कर रहे हैं, भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर को, जो किसी को भी follow नहीं कर रहे… न अपने पिताजी को, न अपने गुरुदेव को, एक भी बात follow नहीं कर रहे । और आप उनको follow कर रहे हो । क्यों ?
क्योंकि कलियुग का लक्षण है, ‘दुर्भाग्यशाली’। घोर कलियुग ! घोर कलियुग ! गुरु ने तुम्हें तिलक दिया, तुमने गुरु का तिलक बदल दिया photo में । पिताजी का तिलक बदल दिया । सिद्ध जगन्नाथदास बाबाजी, जो डेढ़ सौ साल रहें, सारी दुनिया जानती है, नित्यानन्द परिवार से हैं, सारी दुनिया जानती है । तुमने photo में जगन्नाथदास बाबाजी महाराज का तिलक भी बदल दिया । कमाल है ! किसी को नहीं छोड़ा अपराध करने में, सबके प्रति अपराध, भक्तिविनोद ठाकुर के प्रति अपराध, गौरकिशोर दास बाबाजी महाराज के प्रति अपराध, गुरुदेव के प्रति अपराध, सिद्ध जगन्नाथदास बाबाजी के प्रति अपराध । तीनों के तिलक बदल दिये । उन्होंने पीली पत्ती और पीला तिलक लगा दिया, क्यों भाई ? और blind followers ? उनको नज़र नहीं आता ? दिमाग नहीं है ? वो सोचते हैं कि सभी पीला तिलक लगाते थे । अच्छा ? Iskcon, Gaudiya Math को छोड़कर देख लो, एक व्यक्ति पीला तिलक नहीं लगाता । एक व्यक्ति… एक… एक व्यक्ति… गौड़ीय सम्प्रदाय का… एक व्यक्ति पीला तिलक नहीं लगाता । और पीली तुलसी पत्ती, यह कोई भी नहीं लगाता ।

यह आपको तुलसी पत्ती नज़र आ रही है हमारे यहाँ ? गौरकिशोर दास बाबाजी कैसा तिलक लगाते थे, आप जानना चाहते हो ? जाओ राधाकुण्ड, रघुनाथदास गोस्वामी की समाधि देखो, वहाँ देखो तिलक, ऐसा लगा हुआ है… circular तिलक, वो होता है अद्वैत परिवार का । भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर ने मनमाना करके तहस-नहस कर दिया पूरे गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय को । आप लोग जितने… तीस-चालीस-पचास साल… जो भी सुन रहे हैं, सुनेंगे इस video को… इतने साल तो आपने खराब कर दिया, अपने बचे हुए साल को, अपने ऊपर रहम खाकर गौड़ीय वैष्णव में सही जगह पर आश्रय लो । हम कभी नहीं कह रहे कि हमारे यहाँ आश्रय लो । हम कह रहे हैं कि किसी प्रामाणिक परिवार में आश्रय लो । नित्यानन्द परिवार में आश्रय ले लो, अद्वैत परिवार में आश्रय ले लो, नरहरि सरकार ठाकुर परिवार में आश्रय ले लो, गदाधर पण्डित, श्रीवास पण्डित, नरोत्तम परिवार… जो आपकी इच्छा हो ।

कम से कम भक्ति सिद्धान्त सरस्वती ठाकुर से अपना पिण्ड छुड़ाओ, उन्होंने सब कुछ तहस-नहस कर दिया है गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय का । पञ्चतत्त्व मन्त्र हो, संन्यास हो, जनेऊ… क्या है ये सब ?? भोग लगाना नहीं आता पचास-पचास साल बाद भी भक्तों को ! इससे दुर्वास्था क्या होगी ? इतना भी नहीं पता कि तीन प्रभु होते हैं… अरे भाई ? ये भी कोई knowledge नहीं होनी चाहिये कि तीन प्रभु होते हैं । इससे basic knowledge हम क्या बोलें ? ये तो कखारा है । कखारा मतलब ABCD of Gauòéya Vaiñëavism. आपके बच्चे स्कूल पढ़ने जाते हैं, little flowers… KG । उनको ABCD न सिखायी जाये सही रूप से, तो आगे के वो अक्षर… कभी सही मात्रा बना पायेंगे ? आपको ABCD नहीं सिखायी गयी कि तीन प्रभु होते हैं, ऐसे भोग लगता है, ऐसे मंगल आरती होती है, तो आगे की बात आप क्या सीख पाओगे कभी सही ?