One fine day, EVERYTHING changed in Gauòéya Vaiñëava Sampradäya— BIGGEST SCAM

भक्त− महाराज जी के एक भक्त का प्रश्न था कि वे देखते हैं कि जिस प्रकार से उनकी संस्था में भक्ति की जाती है वह बिल्कुल अलग है जिस प्रकार से अन्य हरे कृष्ण महामंत्र करने वाले संस्थाएं करती हैं, चाहे वह वृंदावन में हो या बरसाना में हो, यद्यपि सभी हरे कृष्ण मंत्र करते हैं तो क्या गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय में अलग-अलग प्रकार से भक्ति की जाती है या एक ही प्रकार से भक्ति होती है ? सभी मार्ग क्या हैं ? कृपया करके संशय का निवारण करें महाराज जी ।

महाराज जी– जो भी हरे कृष्ण महामन्त्र जप करते हैं, हम सबसे एक ही बात कहना चाहेंगे, कि कृपया करके शान्त मन से, ठण्डे दिमाग से सोचो कि गौड़ीय वैष्णव जो सम्प्रदाय है, वो ५०० वर्ष पूर्व से भी ज़्यादा से चल रहा है । ठीक बात है ? और उसमें अनेक सिद्ध हो चुके हैं…अनेक सिद्ध महात्मा… ।

तो जो गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय ५०० साल पुराना है, यह पिछले १०० साल को हटा दो, तो किसी प्रकार से तो भक्ति करते थे गौड़ीय वैष्णव ४०० साल से ? एक ही तरीके से भक्ति करते थे प्रथम ४०० साल । अभी जो आया है last १०० साल, उसमें modern institutions आ गये, उसको थोड़ी देर के लिये, ठण्डे दिमाग से हटा दो । सोचो, इतने सिद्ध महात्मा हुए हैं प्रथम ४०० वर्ष में, तो वो कैसे भक्ति करते थे ? प्रश्न सिर्फ यही होना चाहिये ।

हम गौड़ीय वैष्णव बनना चाहते हैं ?
हाँ ।

तो हमें यह देखना चाहिये कि १०० साल पहले या २०० साल पहले कैसे गौड़ीय वैष्णव भक्ति करते थे ? तो उत्तर आ जायेगा, कोई confusion रहेगा ही नहीं । अब…अभी को देखेंगे तो, भेद, विभिन्न मत-मतान्तर स्थापित हो चुके हैं । और आप एक बात बताओ, अपने आप से पूछो, अनेक सिद्ध महात्मा हुए हैं शुरु के ४०० सालों में ? हाँ, हुए हैं ।

अच्छा… । तो आप एक बात बताओ– अचानक कोई व्यक्ति आये, वह बोले कि मुझे कोई भी सही नहीं लग रहा, सब गलत हैं । और अचानक वह व्यक्ति आकर बोले– यहाँ सब कुछ गलत है…नये तरीके से कपड़े पहनेंगे अब हम…नये तरीके का तिलक लगायेंगे…नये मन्त्र होंगे…पुराने मन्त्र जो चल रहे हैं, वो अब हम हटा देंगे…जो मन्त्र नहीं हैं, वो हम नये डाल देंगे… Philosophy change कर दें…भोग की पद्धति change कर दें…और भगवान् के साथ सम्बन्ध जो है…वो भी बोले कि वो पता चलेगा बाद में…चित्त शुद्ध हो जायेगा बाद में । अचानक से सब कुछ change कर दिया जाये, तो हमें कौन सा पथ अपनाना चाहिये ? जिस पथ से अनेकों सिद्ध महात्मा हो चुके हैं, और हो रहे हैं, जो ५०० साल से पुराना जो पथ है, जिसमें कोई बदलाव नहीं किया गया…

क्या हमें वो पथ अपनाना चाहिये या अचानक किसी एक व्यक्ति की वजह से कि उनको सही नहीं लगा कोई भी महात्मा, और उन्होंने कहा कि सब गलत है… सब भोग बदल दो… प्रणाली नहीं होगी…

भक्तिसिद्धान्त सरस्वती जी ने यही किया । जो आये, उनको कोई भी व्यक्ति सही नहीं लगा…कि कोई भी महात्मा ठीक नहीं हैं । तो उन्होंने क्या किया ? नये मन्त्र, गायत्री– ‘ऊँ भूर्भुव: स्व:’ है…यह गौड़ीय वैष्णवों का दीक्षा मन्त्र नहीं है । ४०० वर्ष…४०० वर्ष तक किसी ने कभी भी saffron कपड़ा नहीं डाला था…किसी ने नहीं डाला था । आप प्राचीन गौड़ीय वैष्णवों के मन्त्र में…आप देखेंगे, गुरु मञ्जरी मन्त्र…रूप मञ्जरी मन्त्र…ललिता सखी मन्त्र… अनंग मञ्जरी मन्त्र…क्या ये…अब ये मन्त्र दिये जा रहे हैं ?

जो गौरकिशोर दास बाबाजी हैं, भक्तिविनोद ठाकुर हैं, इनको इनके गुरुदेव ने सिद्ध प्रणाली दी थी…कि आपका ये मञ्जरी स्वरूप है, इस पर ध्यान करो । तो उन्होंने अपनी-अपनी सिद्ध प्रणाली पर ध्यान किया और सिद्धि प्राप्त की । उसी प्रकार से उन्होंने अपने शिष्यों को सिद्ध प्रणाली दी । जगन्नाथ दास बाबा को सिद्ध प्रणाली उनके गुरुदेव ने दी । उन्होंने आगे अपने शिष्यों को दी… । भक्तिविनोद ठाकुर ने… ।

सिद्ध प्रणाली क्या होती है ? कि उनके गुरुदेव बताते हैं कि आपका अमुक नाम है…मञ्जरी नाम, आपकी ये-ये सेवा है । तो…जो भक्तिविनोद ठाकुर ने अपने पुत्रों को दी…ललिता प्रसाद ठाकुर को… । उन्होंने अपने शिष्यों को दी…गदाधर दास जी को…इत्यादि-इत्यादि । तो वो परम्परा भक्तिविनोद ठाकुर की अभी भी चल रही है । गौरकिशोर दास बाबाजी हैं…उनको उनके गुरु ने सिद्ध प्रणाली दी । जगन्नाथदास बाबाजी का भी है…उन्होंने भी आगे अपने शिष्यों को सिद्ध प्रणाली दी । तो, ये तो अनादि सिद्ध परम्परा है । इसमें बदलाव की तो आवश्यकता ही नहीं है ।

केवल एक व्यक्ति को लगे कि ये सब कुछ गलत है और हम सब सही बातें छोड़कर, हम उनके पीछे लग जायें, क्या यह बुद्धिमता है ? आप अपने आप से पूछो । एक व्यक्ति को लग गया सब कुछ गलत…सब…जगन्नाथपुरी में सब सन्त गलत…वृन्दावन के सब सन्त गलत…राधाकुण्ड के सब सन्त गलत…नवद्वीप के सब सन्त गलत…कालना…कटुवा.. सब जगह के…मणिपुर…सब जगह के… सब सन्त गलत…उड़ीसा के… ।

और हम उस व्यक्ति को follow कर रहे हैं और जो जान…जिस स्रोत से हज़ारों सिद्ध महात्मा गौड़ीय वैष्णव…हमें उस मार्ग का पता ही नहीं है…वो क्या है ? हम सिर्फ़ यही कहेंगे कि सिर्फ़ अब आप जानना चाहते हो कि गौड़ीय वैष्णव क्या है, तो आप सिर्फ़ यह जानने की कोशिश करो कि १५० साल पहले Gauòéya Vaiñëavism क्या था ? हमने आज से, जो है….सब खिचड़ी मची हुई है…हमें कोई बस यह बता दे…१००-१५० साल पहले जब सब modern संस्थायें नहीं थी, तो कैसे भक्ति होती थी ? हम तो सिर्फ़ वही भक्ति कर रहे हैं, जो पहले से होती थी ।

Mix कुछ नहीं करना… कोई कपड़े नये… । अब यह तिलक है…हमारा तिलक जो है, यह नित्यानन्द परिवार का तिलक है । तो ऐसा तिलक तो नहीं है, जो पीला तिलक लगता है । तो तिलक भी नया लग…बन गया ।

क्या अपने गुरु द्वारा तिलक जो दिया जाता है, क्या उसे बदलना चाहिये ? जो गुरु ने तिलक दिया है, क्या उसे बदलना चाहिये ? क्या भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर से कोई यह प्रश्न पूछ सकता है कि गौरकिशोर दास बाबा ने आपको यह तिलक दिया था ?

आप जानना चाहेंगे, गौरकिशोर दास बाबाजी कौन सा तिलक लगाते हैं ? तो उनकी जो वास्तविक समाधि है, प्राचीन मायापुर में…वहाँ पर आप जाकर देख सकते हैं । वो तिलक लगाते हैं ऐसा… । हमारा तो ऐसा…तीखे से में है, उनका गोल से में होता है, और वो ही तिलक जो है…रघुनाथदास गोस्वामी अद्वैत परिवार के हैं… । ध्यान दें…जो तिलक गौरकिशोर दास बाबाजी लगाते हैं, वही लगाते हैं जो रघुनाथदास गोस्वामी लगाते थे…और वही तिलक लगाना चाहिये भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर को यदि उनके गुरु गौरकिशोर दास बाबाजी हैं ।

क्या अपना गुरु द्वारा प्रदत्त तिलक कोई बदल सकता है ? बदलना चाहिये ?
क्या आपके गुरु ने जो आपको मन्त्र दिये हैं, क्या आपको वो बदल लेने चाहिये ?
क्या आपके गुरुदेव ने आपको ये जो वस्त्र दिये, वो बदल देने चाहिये ?
क्या आपके गुरुदेव ने आपको जो मन्त्र दिये हैं, उसको हटाकर कोई और मन्त्र बना देने चाहिये ?
क्या इसे भक्ति कहते हैं ?
क्या इसे as-it-is परम्परा कहते हैं ?

परम्परा का क्या मतलब है ? जो ज्ञान हमें गुरु ने दिया…उनको उनके गुरु ने दिया…उनको उनके गुरु ने दिया, वही as-it-is दे देना, न अपना कुछ जोड़ना…न कुछ हटाना । जो गुरु ने दिया, उसको हटा दोगे, तो आनुगत्य ही हट जायेगा । जब आनुगत्य हट गया, तो भक्ति तो मर…खत्म हो गयी…मृत हो गयी ।

भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर से…उन्होंने जो किया…अच्छा है । भगवन् नाम किया, अच्छा है । पर अपने गुरु का तिलक कैसे कोई बदल सकता है…अपने गुरु द्वारा मन्त्र… आप…यह भी नहीं पता…आपके गुरु जो हैं, गौरकिशोर दास बाबाजी…आप कहते हैं… । तो उनके गुरु की आप फोटो भी नहीं रख सकते…अपने गुरु के गुरु की ? हमारा…इतना तो सोचना चाहिये…क्या किसी को अपने गुरु के गुरु के नाम भी नहीं पता होने चाहिये क्या ? अब हमारे गुरु हैं श्रील अनन्तदास बाबाजी महाराज । उनके गुरु हमें पता है कुञ्जबिहारी दास बाबाजी… ऐसे पूरी हमारी गुरु परम्परा पता है…तो किसी से पूछो…भक्तिसिद्धान्त महाराज जी के गुरु कौन ? गौरकिशोर दास बाबाजी ।

अच्छा…वो कह रहे हैं…अच्छा…उनके गुरु कौन ? पता ही नहीं किसी को । इसको परम्परा बोलते हैं ? वास्तविक शिष्य कभी भी अपने गुरु द्वारा प्रदत्त मन्त्र उपासना में कोई बदलाव नहीं करेगा । अगर बदलाव करेगा, तो परम्परा ही खण्डित हो जायेगी । आप खुद सोचो न…जो मन्त्र नये आ गये…पुराने हट गये… । जिस प्रकार से हम भोग लगाते हैं, उसी प्रकार से भोग लगाते थे गौरकिशोर दास बाबाजी…उसी प्रकार से भोग लगाते थे भक्तिविनोद ठाकुर…उसी प्रकार से भोग लगाते थे जगन्नाथदास बाबाजी । तो हम तो, यही तो कह रहे हैं…जो सब सिद्ध महात्मा लोग…भोग जैसे लगाते हैं, भक्ति करते हैं, वैसे ही करो । नयापन करने की क्या आवश्यकता आ गयी ? अगर कोई आपको नहीं नजर आया, तो यह थोड़े न है कि हम…हमको नजर नहीं आ रहा, तो मतलब संसार है नहीं । हो सकता है…हमारी दृष्टि में दोष हो…हमारी दृष्टि में कमी हो…हमें नजर नहीं आ रहा ।