परम्परा व परिवार में भेद ?

भक्त− महाराज जी ! वृन्दावन से ब्रजप्रेम दास जी हैं, वह प्रश्न पूछ रहे हैं कि उन्होंने सुना है कि गौड़ीय वैष्णव में परम्परा होती है । फिर उन्होंने सुना कि नित्यानन्द परिवार भी होता है, अद्वैत परिवार भी होता है, तो परम्परा और परिवार में भेद क्या होता है, वह जानना चाह रहे हैं ।

महाराज जी− परम्परा व परिवार में क्या भेद है, यह समस्त गौड़ीय वैष्णवों को जानना चाहिये । आप पायेंगे कि सभी सम्प्रदाय, चाहे रामानुज सम्प्रदाय हो, निम्बार्क सम्प्रदाय हो, सबका एक ही तिलक होता है, वे सब लोग एक ही तिलक लगाते हैं । सारे रामानुज सम्प्रदाय के एक तिलक लगायेंगे, निम्बार्क सम्प्रदाय के एक तिलक‌ लगायेंगे । और गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय में आप आते हो, देखते हो दसों प्रकार के तिलक हैं । तो क्या कोई गलत है या सही है, कैसे समझेंगे ? क्या सब सही हैं ? क्योंकि हर सम्प्रदाय में तो एक ही तिलक होता है ।

गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय में अनेक प्रकार के तिलक हैं । इसको कैसे समझें ?
देखिये, गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय मतलब वह सम्प्रदाय जो महाप्रभु की सेवा में रत है । गौड़ीय सम्प्रदाय मतलब जिनके दो स्वरूप हैं, एक स्वरूप से वे श्रीगौरा महाप्रभु के नित्य धाम श्रीनवद्वीप में उनकी सेवा करते हैं, और एक स्वरूप से ब्रज में युगल सरकार की सेवा करते हैं । नित्य नवद्वीप में जब महाप्रभु की सेवा की जाती है, तो उनके जो प्रमुख पार्षद हैं, वे directly सेवा कर रहे हैं, जैसे गदाधर पण्डित, श्रीवास पण्डित, अद्वैताचार्य, नित्यानन्द प्रभु, नरहरि सरकार ठाकुर, वक्रेश्वर पण्डित इत्यादि । ये सब उनके नित्य सिद्ध पार्षद हैं, ये उनकी direct सेवा में रत हैं । तो इन पार्षदों ने जैसे कि नित्यानन्द प्रभु हैं, अद्वैत प्रभु हैं, नरहरि सरकार ठाकुर इत्यादि हैं, इन्होंने जिन्हें दीक्षा दी, तो वह उनका परिवार हो गया । नरहरि सरकार ठाकुर ने किसी को दीक्षा दी, उन्होंने किसी को दीक्षा दी, तो वह नरहरि परिवार हो गया । फिर उनका अलग तिलक है । नित्यानन्द प्रभु ने किन्हीं को दीक्षा दी, उन्होंने किसी को दीक्षा दी, उन्होंने किसी को दीक्षा दी, तो नित्यानन्द परिवार हो गया ।

उसी प्रकार से अद्वैताचार्य ने किन्हीं को दीक्षा दी, फिर उन्होंने दीक्षा दी, वे आगे दीक्षा देते गये, तो अद्वैत परिवार हो गया । वैसे ही गदाधर परिवार है, वैसे ही श्रीवास पण्डित का परिवार है ।

जैसे हमने पहले भी एक बार बताया था, कि मान लीजिये, नित्यानन्द प्रभु ने तीन लोगों को दीक्षा दी− माधव दास, कृष्ण दास और श्याम दास । तो फिर कृष्ण दास ने अलग दीक्षा दी, श्याम दास ने अलग दीक्षा दी । तो ५०० साल से आज तक वह परम्परा‌ चल रही है । तो नित्यानन्द परिवार के अन्तर्गत वे सारी परम्परायें आ जायेगी, परन्तु कोई श्याम दास की परम्परा हो जायेगी, कोई माधव दास की परम्परा हो जायेगी । परिवार तो नित्यानन्द प्रभु का है, परम्परा जो हो जायेंगी− कोई श्याम दास के अन्तर्गत हो जायेगी, कोई माधव दास के अन्तर्गत हो जायेगी । तो जो प्रमुख नित्य सिद्ध पार्षद हैं, उनके परिवार हैं । नित्यानन्द प्रभु, अद्वैत प्रभु, इनके through परिवार आते हैं । और इनके अन्तर्गत जिनकी भी दीक्षा होती है, वह परम्परा के अन्तर्गत दीक्षा मानी जाती है ।

अब जैसे गौरकिशोर दास बाबाजी की अद्वैत परिवार के अन्तर्गत उनकी दीक्षा हुई है । तो वे सभी सेवायें अद्वैत परिवार के अन्तर्गत होकर करते हैं । उनका तिलक अद्वैत परिवार का है, वह बिल्कुल‌ अलग है । नरहरि सरकार ठाकुर का तिलक बिल्कुल अलग है । जैसे यह हमारा ग्रन्थ है “Be a Gauòéya Vaiñëava”, इसके पृष्ठ ११८ में बताया गया है; अलग-अलग तिलक बनाकर‌ दिखायें हैं । आप पायेंगे कि गदाधर पण्डित जी का तिलक बिल्कुल अलग है,‌ श्रीवास पण्डित का तिलक बिल्कुल अलग है । तो जो प्रमुख पार्षद हैं, उन सबके अलग-अलग प्रमुख तिलक हैं । और उनके परिवार में जो आयेगा, वह, वही का वही तिलक लगायेगा । इसलिये गौड़ीय वैष्णव समाज में अलग-अलग प्रकार के तिलक हैं । जैसे हमारा तिलक देखें, यह नित्यानन्द परिवार का तिलक है । गौरकिशोर दास बाबाजी का ऐसे circular सा होता है, वह है अद्वैत परिवार का तिलक । जो जिस परिवार से जुड़ता है, उसको उनका तिलक प्राप्त होता है । तिलक जो है, वह बिल्कुल ठीक है, यदि अटूट परम्परा से जुड़ा हुआ आ रहा है । ऐसा नहीं है कि हमारी परम्परा में कोई एक तिलक तो ऐसा लगा रहा है, एक कोई पीला लगा रहा है, एक तुलसी पत्ती का लगा रहा है, एक circular लगा रहा है, ऐसा नहीं है ।

अब जैसे गौरकिशोर दास बाबाजी हैं, वे अद्वैत परिवार के हैं । जगन्नाथदास बाबाजी हैं, वे नित्यानन्द परिवार के हैं । तो वे कभी भी एक परम्परा में नहीं हो सकते । परम्परा मतलब पहले वह परिवार से जुड़ी होनी चाहिये । परम्परा सही है या नहीं, उसका निर्णय सबसे पहले किया जायेगा कि आप देखें कि वह कौन से परिवार के अन्तर्गत आती है । यदि एक परम्परा में गौरकिशोर दास बाबाजी हैं, एक में जगन्नाथदास बाबाजी हैं, तो वह परम्परा किसी परिवार के अन्तर्गत आ ही नहीं सकती, क्योंकि गौरकिशोर दास बाबाजी अद्वैत परिवार के अन्तर्गत सेवा करते हैं ।

हमने पहले भी बताया कि नित्य लीला में नवद्वीप में रात्रि में श्रीवास आँगन में नित्य संकीर्तन होता है, नित्य संकीर्तन ! महाप्रभु अपने घर से सपार्षद श्रीवास आँगन जाते हैं और नित्य संकीर्तन होता है । महाप्रभु अपने पार्षदों के साथ वहीं पर शयन भी करते हैं । तो गौरकिशोर दास बाबाजी जब संकीर्तन में थक-हार कर शयन करते हैं, तो वे शयन करते हैं, जहाँ अद्वैत प्रभु ने शयन किया था, उसके पास में । नरहरि सरकार ठाकुर के परिवार में जितने भक्त हैं, वे उनके इर्द-गिर्द शयन करते हैं । और नित्यानन्द परिवार के अन्तर्गत, जैसे मान लों जगन्नाथदास बाबाजी, तो नित्यानन्द प्रभु के पास में वे शयन करेंगे, और उठेंगे भी वहीं ।

मंगला आरती नित्य नवद्वीप में सुबह कहाँ होती है ? श्रीवास आँगन में ही होती है । श्रीवास आँगन में मंगला आरती के लिये आप जाते हैं, तो जैसे साधक, जो हम होते हैं, पहले हम कुल्ला करते हैं, मुख पोंछते हैं । फिर अपने गुरुदेव का कुल्ला करवाते हैं, मुख पोंछते हैं, ऐसे हम अपनी पूरी गुरु परम्परा की सेवा करते हैं । जब हमने उन्हें कुल्ला करा लिया, मुख पोंछ दिया, तो नित्यानन्द परिवार में होने के कारण, हम नित्यानन्द प्रभु के पास पहले जायेंगे । फिर नित्यानन्द प्रभु के साथ होकर, हम सब इकट्ठे महाप्रभु के पास जायेंगे, उनके दर्शन और उनकी सेवा के लिये । जैसे हम नित्यानन्द परिवार के हैं, हमारे परिवार में ही जगन्नाथदास बाबाजी भी होंगे, तो महाप्रभु के पास हम सब साथ में जाते हैं ।

और जो गौरकिशोर दास बाबाजी हैं, वे अद्वैत परिवार में शयन करते हैं । क्योंकि वे अद्वैताचार्य के परिवार में हैं; इसलिये वे उनके पास शयन करते हैं । वे अपने गुरुदेव, श्रील नन्दकिशोर गोस्वामी को पहले उठायेंगे, उनका कुल्ला करवायेंगे, मुख प्रक्षालन करवायेंगे, उनके चरण धोयेंगें । तो फिर, गौरकिशोर दास बाबाजी अपने गुरु का, फिर अद्वैताचार्य जी के अन्तर्गत अपनी पूरी गुरु परम्परा की सेवा करेंगे । वे पहले अद्वैताचार्य जी के पास जायेंगे, उनको प्रणाम करेंगे, उनको जगायेंगे । फिर अद्वैताचार्य जी के साथ पूरी गुरु परम्परा, अद्वैताचार्य जी की परम्परा के सभी, including गौरकिशोर दास बाबाजी, इकट्ठे महाप्रभु के पास जायेंगे । फिर नित्यानन्द प्रभु का सारा झुण्ड आयेगा महाप्रभु के पास, नरहरि सरकार ठाकुर का भी आयेगा महाप्रभु के पास । सभी नित्य सिद्ध पार्षद जो हैं, वक्रेश्वर पण्डित, उनकी पूरी जो परम्परा है, वह पहले प्रमुख आचार्य, जिन नित्य सिद्ध पार्षद के अन्तर्गत हैं, उनके पास जाते हैं ।

तो परम्परा और परिवार में भेद मालूम होना बहुत ज़रूरी है । हम किसी प्रामाणिक परम्परा में हैं या नहीं, यह जानने के लिये पहले यह जानना पड़ेगा हम किसी प्रामाणिक परिवार में भी हैं या नहीं ?? यदि परिवार एक नहीं है, तो परम्परा निश्चित् रूप से अप्रामाणिक है । और जो प्रामाणिक परम्परा होती है, उसमें सभी के सभी भक्त सफेद वस्त्र डालते हैं, saffron cloth कोई भी नहीं डालता । नित्य नवद्वीप में रंगीन कपड़े केवल दो जन डालते हैं− एक हैं गौरा महाप्रभु, जो पीताम्बर डालते हैं, और एक हैं नित्यानन्द प्रभु, जो नीलाम्बर डालते हैं । अन्य सभी पार्षद, चाहे वे गदाधर पण्डित हों, श्रीवास पण्डित हों, जगन्नाथदास बाबाजी हों, गौरकिशोर दास बाबाजी हों, जितने भी पार्षद हैं, जितने भी सब भक्त हैं, सब लोग सफेद वस्त्र डालते हैं । Saffron cloth प्रामाणिक परम्परा में, प्रामाणिक परिवारों में होता ही नहीं है ।

अब कैसे पता चले कि परम्परा प्रामाणिक है या नहीं ? ऐसा नहीं है कि परम्परा में किसी ने जनेऊ डाला हुआ है, किसी ने लाल वस्त्र डाला हुआ है, किसी ने जनेऊ नहीं डाला, किसी ने गोल तिलक लगाया, किसी की सिद्ध प्रणाली हुई है, किसी की नहीं हुई है− ये सब इकट्ठा करके कोई परम्परा नहीं है ।

गौरकिशोर दास बाबाजी हैं, उनको उनके गुरुदेव ने सिद्ध प्रणाली दी । जगन्नाथदास बाबाजी महाराज है, उनको उनके गुरुदेव ने सिद्ध प्रणाली दी । उन्होंने आगे सिद्ध प्रणाली दी । भक्तिविनोद ठाकुर ने अपने पुत्र तक को सिद्ध प्रणाली दी । तो इस प्रकार से सारी परम्पराओं में जितने भी हैं, सिद्ध प्रणाली देते हुए आ रहे हैं । और यह षड्गोस्वामियों के समय से चल रही है । गोपालभट्ट गोस्वामी ने श्रीनिवासाचार्य जी को सिद्ध प्रणाली दी, यह प्रेमविलास ग्रन्थ में आप पढ़ सकते हैं ।

प्रामाणिक परम्परा‌ मतलब वही पथ; वही चीज़ें पालन हो रही हैं, जो अनादि काल से हो रही हैं ।
जैसे हमारे गुरुदेव हैं श्रील अनन्तदास बाबाजी, उनके गुरुदेव श्रील कुञ्जबिहारी दास बाबाजी, ऐसे हमें हमारे सारे गुरुवर्ग के नाम पता हैं, नित्यानन्द प्रभु तक ! तो इससे पता चलता है कि हम नित्यानन्द परिवार के अन्तर्गत हैं । तो यदि गौरकिशोर दास बाबाजी महाराज हैं, अगर हम उनकी परम्परा में हैं, तो हमें हमारे सारे गुरुवर्ग के नाम पता होने चाहिये, महाप्रभु तक । कैसे पता चलेंगे ? अद्वैताचार्य की परम्परा में हैं, तो गौरकिशोर दास बाबाजी के अगर कोई शिष्य कहते हैं कि “हम उनके शिष्य हैं”, तो उनके गुरुदेव का नाम क्या है, आपको वह भी नहीं पता ! उनके गुरुदेव कौन हैं ? गौरकिशोर दास बाबाजी के गुरुदेव कौन हैं ? नहीं पता ! उनके गुरुदेव के गुरुदेव कौन हैं, वह भी नहीं पता, उनके गुरुदेव कौन हैं, वह भी नहीं पता; तो यह सब जब पता होंगे, तो आप अद्वैत परिवार में हैं । ऐसा नहीं है कि हम गौरकिशोर दास बाबाजी महाराज से दीक्षित हैं, और हम नित्यानन्द परिवार के जगन्नाथदास बाबाजी की या भक्तिविनोद ठाकुर की photo लगा रहे हैं, यह अद्वैत परिवार की कोई परम्परा नहीं है । नित्यानन्द परिवार में गौरकिशोर दास बाबाजी नहीं हो सकते, और गौरकिशोर दास बाबाजी की परम्परा में जगन्नाथदास बाबाजी नहीं हो सकते !!

ये अलग परम्परायें हैं, अलग परिवार हैं । Famous Famous सिद्ध सन्तों को लेकर, इकट्ठा करके bonafide परम्परा या bonafide परिवार नहीं होता ।

और परम्परा बनायी नहीं जाती, कि हमें इनकी भक्ति अच्छी लगती है, तो हमने इकट्ठा करके इनको अपनी परम्परा में डाल लिया ! मतलब हम कितनी disrespect कर रहे हैं गौरकिशोर दास बाबाजी महाराज के गुरुओं की कि इतनी भी उनकी value नहीं है कि हम अपने Altar में उनकी photo डाल सकें । गौरकिशोर दास बाबाजी के गुरु उनके आराध्यदेव हैं, वे उनकी पूजा करते हैं, अपने गुरुदेव के नित्य सेवक हैं । नन्दकिशोर गोस्वामी के सेवक हैं गौरकिशोर दास बाबाजी ! धाम में भी उनके नित्य गुरु हैं । उनका नाम भी नहीं पता Iskcon, Gaudiya Math में किसी को, कि गौरकिशोर दास बाबाजी के गुरु कौन हैं !?! प्रामाणिकता का तो खैर प्रश्न ही नहीं उठता !

सन् २००९ में, हम १५० लोगों ने जब Iskcon छोड़ा था, कोई ऐसे ही नहीं छोड़ दिया था । मालूम चला, अरे ! कोई प्रामाणिक परिवार ही नहीं है ! बड़े-बड़े सिद्ध महात्माओं को इकट्ठा जोड़ दिया गया है । भोग लगाने की पद्धति कोई है ही नहीं । ‘नमः ॐ विष्णुपादाय’ से, ऐसे कोई भोग लगता है ??? भोग तो बीजमन्त्रों द्वारा लगता है, विधि विधान से भोग लगता है । पहले तीन प्रभु को भोग लगता है, उनके बाद उनका प्रसादी गदाधर, श्रीवास पण्डित को दिया जाता है, फिर गोस्वामिवर्ग को । ऐसा थोड़ी है कि ‘नमः ॐ.., नमो महावदान्याय’ बोलो और किसी को भी भोग लगा दो । हमें जब पता है प्रामाणिक भोग कैसे लगता है, प्रामाणिक परिवार क्या होता है, प्रामाणिक परम्परा क्या होती है, तभी तो हम सब ने, इतने सब लोगों ने Iskcon छोड़कर यहाँ राधाकुण्ड में आश्रय स्वीकार किया था ।